Oriya Poem 'Surabhita Pushpa Prati '
(To the Fragrant Flower)
*
By : Dr. Harekrishna Meher
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(For convenience of general readers,
Oriya letters have been shown here in Devanagari script)
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सुरभित पुष्प प्रति (ओड़िआ कविता)
* रचना : डक्टर् हरेकृष्ण मेहेर
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अनुराग-भरा मुग्ध नयने
थरे तोते देले चाहिँ रे,
अन्तरे य़ेउँ हरष जनमे
पटान्तर ता नाहिँ रे ॥ (१)
*
क्षण-भङ्गुर सकळ बस्तु
बोलि तु शिक्षा बितरु,
बुझिबे मानबे संशय तेजि
आपणा चित्त भितरु ॥ (२)
*
बहु काळ य़ाए निर्गुण होइ
बञ्चिबा अटे बिफळ,
क्षणक सुद्धा सुगुण थिले त
बिकशे कीर्त्ति बिमळ ॥ (३)
*
समय-कबळे सबु लाबण्य
ढळिब अङ्गुँ तोहरि,
माधुर्य़्य आउ न थिबटि आहा !
थिला ता पूर्बे य़ेपरि ॥ (४)
*
चिरदिन लागि तिष्ठि पारे कि
तुच्छ बड़िमा गरब ?
सम्पद-मदे अन्तिम काळे
शिरीहीन हुए सरब ॥ (५)
*
दुनिआकु देउ क्षणक हेले बि
सुबासित गुण तोहरि,
सहृदय-मन पुलकि उठइ
रसमय भाबे बिहरि ॥ (६)
*
तोहरि कोमळ सुन्दर-पणे
नाहिँ तिळे छळ कपट,
पर-उपकारे परमेश्वर -
सृष्टि होइछि प्रकट ॥ (७)
*
बिबेकी बुझइ तोर महत्त्व
परकाशे निज आदर,
खळ जन सिना निन्दे ए भबे
न सहि बित्त परर ॥ (८)
*
धरा-उद्याने तो चारु शुभ्र
छबिरे मुग्ध मरम,
भाबुक कबि त लेखनी चळाए
पाइ उल्लास परम ॥ (९)
*
मोहुछि रुचिर दिब्य छबि तो
जगते सर्ब जीबन,
तोर मधुरिमा झराउ निरते
पीयूष बिन्दु पाबन ॥ (१०)
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Written on Date 5-10-1985.
(Published in “Bindu”, November 1985,
Upanta Sahitya Sansad, Badbil, Keunjhar.
*
Revised Published in ‘Chaiti Chadhei',
October-December 2003, Jaipatna, Orissa)
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(To the Fragrant Flower)
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By : Dr. Harekrishna Meher
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(For convenience of general readers,
Oriya letters have been shown here in Devanagari script)
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सुरभित पुष्प प्रति (ओड़िआ कविता)
* रचना : डक्टर् हरेकृष्ण मेहेर
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अनुराग-भरा मुग्ध नयने
थरे तोते देले चाहिँ रे,
अन्तरे य़ेउँ हरष जनमे
पटान्तर ता नाहिँ रे ॥ (१)
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क्षण-भङ्गुर सकळ बस्तु
बोलि तु शिक्षा बितरु,
बुझिबे मानबे संशय तेजि
आपणा चित्त भितरु ॥ (२)
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बहु काळ य़ाए निर्गुण होइ
बञ्चिबा अटे बिफळ,
क्षणक सुद्धा सुगुण थिले त
बिकशे कीर्त्ति बिमळ ॥ (३)
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समय-कबळे सबु लाबण्य
ढळिब अङ्गुँ तोहरि,
माधुर्य़्य आउ न थिबटि आहा !
थिला ता पूर्बे य़ेपरि ॥ (४)
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चिरदिन लागि तिष्ठि पारे कि
तुच्छ बड़िमा गरब ?
सम्पद-मदे अन्तिम काळे
शिरीहीन हुए सरब ॥ (५)
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दुनिआकु देउ क्षणक हेले बि
सुबासित गुण तोहरि,
सहृदय-मन पुलकि उठइ
रसमय भाबे बिहरि ॥ (६)
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तोहरि कोमळ सुन्दर-पणे
नाहिँ तिळे छळ कपट,
पर-उपकारे परमेश्वर -
सृष्टि होइछि प्रकट ॥ (७)
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बिबेकी बुझइ तोर महत्त्व
परकाशे निज आदर,
खळ जन सिना निन्दे ए भबे
न सहि बित्त परर ॥ (८)
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धरा-उद्याने तो चारु शुभ्र
छबिरे मुग्ध मरम,
भाबुक कबि त लेखनी चळाए
पाइ उल्लास परम ॥ (९)
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मोहुछि रुचिर दिब्य छबि तो
जगते सर्ब जीबन,
तोर मधुरिमा झराउ निरते
पीयूष बिन्दु पाबन ॥ (१०)
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Written on Date 5-10-1985.
(Published in “Bindu”, November 1985,
Upanta Sahitya Sansad, Badbil, Keunjhar.
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Revised Published in ‘Chaiti Chadhei',
October-December 2003, Jaipatna, Orissa)
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some hart touch kabita. likes to know about other poems by him
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