Saturday, October 15, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-1 : Odia Version: Dr. Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher 
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत ‘गीतगोविन्द’ काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवाद :  डॉहरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-1 : Samoda-Damodara)
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गीतगोविन्द : प्रथम सर्ग (सामोद-दामोदर)
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* अनुवादकीय
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     ओड़िशार बरपुत्र महाकबि जयदेबङ्क संस्कृत गीतिकाव्य  ‘गीतगोविन्दसमग्र बिश्वसाहित्यरे एक अनुपम लोकप्रिय कृति पृथिबीर बहुभाषारे एहि काव्यर अनुबाद होइसारिछि भारतीय पौराणिक परम्परारे चर्च्चित श्रीकृष्ण श्रीराधाङ्कर शृङ्गारकेळि-बर्ण्णना एहि काव्यर मुख्य बिषय समुदाय द्वादश सर्गरे श्लोकराजि सह चबिशटि गीतरे एहि काव्य पूर्ण्णता लाभ करिछि काव्यर नायक हेउछन्ति श्रीकृष्ण नायिका श्रीराधा प्रेमीयुगळङ्क परस्पर मान-अभिमान, मानभञ्जन, बिरह, मिळन प्रभृति बिषय एथिरे चित्रित कृष्णलीळापरक संस्कृत भागबत-ग्रन्थरे श्रीराधाङ्कर नामोल्लेख नाहिँ कबि जयदेब ब्रह्मबैबर्त्त-पुराण आदिरु राधाङ्कर नामसूचना पाइ एक स्वतन्त्र गीतिकाव्य रचनारे प्रबृत्त होइथिबार जणाय़ाए भारतीय बाङ्मयरे सामबेदरु गीतिकाव्यर धारा अद्यापि प्रबाहित होइआसुछि संस्कृत साहित्यर आलोचकमानङ्क मतरे गीतगोबिन्द हेउछि सर्बप्राचीन रागकाव्य  एबं एहा परबर्त्ती काळरे अनेक कबिङ्कु गीतिकाव्य-रचना क्षेत्ररे बिशेष प्रभाबित करिआसिछि

   ख्रीष्टीय- द्वादश शताब्दीरे कबि जयदेब ओड़िशाभूमिर केन्दुबिल्व ग्रामरे जन्मग्रहण करिथिले कबि निजे काव्यर तृतीय सर्गरे निजकुकेन्दुबिल्व-समुद्र-सम्भव-रोहिणीरमण’ (अर्थात् केन्दुबिल्व-रूपक समुद्ररु जात जयदेव-रूपक चन्द्र) बोलि लेखिय़ाइछन्ति कबिङ्कर स्थान-निरूपणादि प्रसङ्ग नेइ बहु भारतीय तथा बिदेशीय लेखकमानङ्क मध्य़रे पूर्बरु नाना मतभेद तर्कबितर्क होइथिले सुद्धा अन्तिम सिद्धान्त हेउछि य़े जयदेब ओड़िशार कबि अटन्ति अनेक संस्कृत-गबेषक इतिहास-प्रणेतागण कबिङ्कु उत्कळबासी बा ओड़िशाबासी बोलि दर्शाइछन्ति तेणु सम्बन्धरे एठारे बिस्तृत आलोचना अनाबश्यक

    ओड़िशी सङ्गीत एबं ओड़िशी नृत्यर मुख्य आधार हेउछि गीतगोविन्द काव्य महाप्रभु श्रीजगन्नाथङ्क मन्दिररे एहि काव्यर गीत-गायन परम्पराक्रमे प्रचळित कबि जयदेबङ्क निजस्व गीतगायन एबं निज सहधर्मिणी पद्माबतीङ्क नृत्यचाळनार मधुर समन्वय गीतगोविन्द काव्यरे सूचित कबि निजर गीतगुड़िकर परिबेषण लागि बिभिन्न साङ्गीतिक राग, यथा माळब, गुर्ज्जरी, बसन्त, रामकिरी, माळबगौड़, गुण्डकिरी, कर्णाट, देशाख्य, देशबराड़ी, बराड़ी, भैरवी प्रभृति सहित बिभिन्न ताळ, य़था रूपक, निःसार, यति, एकताळी, अष्टताळी प्रभृतिर सूचना देइछन्ति एहि काव्यरे श्रीराधा, श्रीकृष्ण एबं सखीङ्क उक्तिरे नाटकीय छटा मध्य पाठकमानङ्कर दृष्टि आकर्षण करिथाए

    गीतगोविन्द काव्यरे कबि जयदेब निज रचनाकुमधुर-कोमल-कान्त-पदावलीबोलि बर्ण्णना करिछन्ति एहि काव्यरे संस्कृतर बिभिन्न बर्ण्णछन्द मात्राछन्दर प्रयोग दृष्टिगोचर होइथाए बर्ण्णछन्दमानङ्क मध्यरे शार्दूलविक्रीड़ित, वसन्ततिलक, द्रुतबिलम्बित,  वंशस्थ, शिखरिणी, मालिनी, हरिणी, स्रग्धरा, पृथ्वी, पुष्पिताग्रा, उपेन्द्रवज्रा अनुष्टुप् रहिछि मात्राछन्दरे पारम्परिक आर्य्या छन्द सहित निजर उद्भाबित बिभिन्न गीतिछन्दर व्यबहार करिछन्ति मौळिकता-सम्पन्न सर्जनाशीळ कबि जयदेब एथिरे प्रयुक्त काव्यगुण मध्यरे प्रसाद माधुर्य्य़ बिशेष अनुभूत होइथाए बैदर्भी रीति सह गौड़ीरीतिर समन्वय काव्यरे परिलक्षित हुए काव्याळङ्कारगुड़िक मध्यरे  अनुप्रास, यमक, उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष, रूपक, अर्थान्तरन्यास आदि प्रयुक्त होइछि

    गीतगोविन्दर प्रत्येक सर्ग कबिङ्क द्वारा स्वतन्त्र नामरे नामित होइछि केतेक टीकारे एहि नामकरणर पाठान्तर दृष्टिगोचर होइथाए सर्गक्रमरे नामगुड़िक एहिपरि - : सामोद-दामोदर, : अक्लेश-केशव, : मुग्ध-मधुसूदन, : स्निग्ध-माधव बा स्निग्ध-मधुसूदन, : साकाङ्क्ष-पुण्डरीकाक्ष, : कुण्ठ-वैकुण्ठ बा सोत्कण्ठ-वैकुण्ठ बा धृष्ट-वैकुण्ठ, : नागर-नारायण, : विलक्ष्य-लक्ष्मीपति, : मुग्ध-मुकुन्द, १०: चतुर-चतुर्भुज, ११: सानन्द-गोविन्द बा सानन्द-दामोदर, १२: सुप्रीत-पीताम्बर

    भारतीय आलोचकबृन्द संस्कृत काव्यराजिरे बिशेषकाव्यगुणर निरूपणपूर्बक दर्शाइछन्ति : ‘उपमा कालिदासस्य़ भारवेरर्थगौरवम् नैषधे पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः कबि काळिदासङ्क रचनाबळीरेउपमाअळङ्कार, भारविङ्कर किरातार्जुनीय-महाकाव्यरेअर्थगौरव’, श्रीहर्षङ्क नैषधचरित-महाकाव्यरेपदलालित्यएबं माघकबिङ्क शिशुपालवध-महाकाव्यरे त्रिगुणर अर्थात् उपमा-अर्थगौरव-पदलालित्यर समन्वय बिशेष भूमिका बहन करिछि श्लोकर पाठान्तररेदण्डिनः पदलालित्यम्मध्य रहिछि य़दि गीतिकाव्य-बिचाररे काव्यगुण निरूपण कराय़ाए, तेबे जयदेबङ्क कृतिकु लक्ष्य रखिगोविन्दे पदलालित्यम्बोलि कहिले अत्युक्ति हेब नाहिँ मङ्गळाचरण, सर्गबन्ध, बिषय-बस्तु, नायक-नायिका, रसभावादिर समाबेश, प्रकृतिचित्रण, बिबिध छन्द-अळङ्कार प्रयोग इत्यादि शास्त्रोक्त लक्षण अनुसारे केतेके गीतगोविन्दकु महाकाव्य बोलि मध्य बिबेचना करिथान्ति

    संसाररे मनुष्यर चारि पुरुषार्थ रहिछि, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष -  एहि चतुर्बर्ग मध्यरेकाम महत्त्वपूर्ण्ण भूमिका रहिछि दम्पतिङ्कर सौन्दर्य्य़, आकर्षण, मिळन एबं सृष्टिर क्रम अद्याबधि रहिआसिछि कामप्रबृत्तिकु साहित्यशास्त्ररे मुख्यस्थान प्रदान कराय़ाइछि रतिस्थायीभाव नेइशृङ्गार रस निरूपण होइछि एबं एहा आदिरस भाबरे बिबेचित काव्यकबितारे शृङ्गार-लीळार उन्मुक्त चित्रण अनेक स्थळरे समालोचनार शरव्य होइथाए किन्तु प्रसङ्गानुसारे साहित्यरे एपरि चित्रण दोषाबह नुहे बोलि काव्यशास्त्रीमानङ्क मत गीतगोविन्दरे मुख्यरस हेउछि शृङ्गार बिप्रलम्भ सम्भोग, उभय शृङ्गार एथिरे चित्रित कबि जयदेब ताङ्क गीतगोविन्दरे मूळरु हिँ सूचाइदेइछन्ति य़े  राधाकृष्णङ्क रतिकेळि-बर्ण्णना हेउछि समग्र काव्यर मुख्यबस्तु कबि कहिछन्ति : श्रीवासुदेव-रतिकेलि-कथा-समेतमेतं करोति जयदेव-कविः प्रबन्धम् तेणु कामशास्त्र-सम्मत शृङ्गारिक बर्ण्णना एहि काव्यरे प्राचुर्य्य़ लाभ करिछि फळरे कबिङ्क लेखनीरे रतिचित्रणकु अरुचिकर बा निन्दनीय बोलि समीक्षा करिबार अबकाश नाहिँ राधा प्रकृतिरूपिणी कृष्ण पुरुष उभयङ्क प्रेम अप्राकृत एबं अलौकिक कबिङ्क लेखनीरे  कृष्ण दशाबतारधारी परमपुरुष रूपरे बर्ण्णित ताङ्क भाषारे : दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः

      गीतगोविन्द काव्यर बिभिन्न संस्करणरे केतेक पद्य श्लोक  प्रक्षिप्त थिबार, केतेक श्लोकर आगपछ स्थान-परिबर्त्तन होइथिबार एबं केतेक शब्दर पाठान्तर थिबार परिलक्षित होइथाए एहि काव्यर सर्वाङ्ग-सुन्दरी, रसिकप्रिय, रसमञ्जरी, श्रुतिरञ्जनी, बालबोधिनी आदि बिभिन्न टीकारे मध्य पाठान्तर उपलब्ध होइथाए केतेक श्लोक प्रक्षिप्त लागिबार मुख्यकारण एहा होइपारे य़े सेगुड़िक प्रसङ्गरु दूरेइय़ाइछि बा मूळरचना-शैळीरु भिन्न जणापड़ुछि एबं अधिकांश सर्गान्त श्लोक मङ्गळ-बाचक बा नमस्कारात्मक बा आशीर्बादात्मक भाबकु बहन करिछि प्रस्तुत मदीय गीतगोविन्द-पद्यानुबादरे केतेक प्रचळित श्लोक अन्तर्भुक्त होइछि बर्त्तमान मुखपत्ररे प्रकाश पाउथिबा अनुबादरे समस्त प्रक्षिप्तर उपस्थापना प्रासङ्गिक होइ पारे तेणु भबिष्यतरे पुस्तक-आकाररे गीतगोविन्द काव्यर प्रकाशन समयरे तथाकथित प्रक्षिप्त श्लोकगुड़िक सह पद्यानुबाद पाठकङ्कर अबगति पाइँ संय़ोजित कराय़िब

     गीतगोविन्द काव्यरे लालित्य-माधुर्य्य़ आदि काव्यिक गुण सह साङ्गीतिकता, छन्दोबद्धता, शृङ्गार-रस-प्राचुर्य्य़, आनुप्रासिकता, आळङ्कारिकता, भगवद्-बिषयिणी भक्ति प्रभृति अनेक तत्त्वर समाबेश घटिछि काव्यर द्वादश तथा अन्तिम सर्गरे प्रदत्त एक श्लोकरे कृष्णभक्त जयदेबङ्क कबि-प्रतिभार बिशेषत्व उपलब्ध होइथाए सम्बन्धरे निम्नोक्त श्लोक प्रणिधानय़ोग्य

यद् गान्धर्वकलासु कौशलमनुध्यानं यद् वैष्णवं
यच्छृङ्गार-विवेक-तत्त्वमपि यत् काव्येषु लीलायितम्
तत् सर्वं जयदेव-पण्डित-कवेः कृष्णैकतानात्मनः
सानन्दं परिशोधयन्तु सुधियः श्रीगीतगोविन्दतः

श्लोकटिर मदीय ओड़िआ पद्यानुबाद एहिपरि :

सङ्गीत सह     बिबिध कळारे
य़ेते निपुणता रहिअछि,
बिष्णु बिषये       धिआन भक्ति
चिन्तन अछि य़ाहा किछि
अछि शृङ्गार-     रस-बिषयक
तत्त्वर य़ेते बिबेचना,
काव्यराजिरे     य़ेते रहिअछि
भाबलीळा आदि बर्ण्णना
सेहि समस्त  बस्तुमान,
गीतगोबिन्दे बिद्यमान
एहि काव्यरु        बिबुधबृन्द
हृदयङ्गम करि,
स्वगुण शुद्धि        करन्तु निजे
मने आनन्द भरि
प्रभु कृष्णरे         एकाग्र भाबे
कराइ निजकु मज्जित,
बिरचिले गीति-    काव्य रुचिर
जयदेब कबि पण्डित ॥

     गीतगोविन्द काव्यर मदीय ओड़िआ पद्यानुबाद २०११ मसिहार बिभिन्न समयरे रचित होइथिला परे अल्प केतेक स्थळरे शब्दर सामान्य परिबर्त्तन कराय़ाइछि काव्यर मूळभाबराजिकु निज अनुबादर पदाबळी माध्यमरे सम्पूर्ण्ण अक्षुण्ण रखिबार पूर्ण्ण प्रयास कराय़ाइछि य़े कौणसि अनुबादरे मूळ गीतर श्लोकराजिर साङ्गीतिकताकु अबिकळ सुरक्षित रखिबा सम्भबपर नुहे किन्तु मूळभाबर कौणसि व्यतिक्रम घटाइ निज भाषारे स्पष्ट परिप्रकाश करिबा हिँ महत्त्वपूर्ण्ण बिषय आनुप्रासिकता प्रसङ्गरे मदीय अनुबादगत निजस्व पदलाळित्य   माधुर्य्य़पूर्ण्ण अभिव्यक्ति मध्य पाठके अनुभब करिपारिबे बोलि आशा कळा-सङ्गीत-साहित्य आदि क्षेत्ररे परमेश्वरङ्क प्रच्छन्न प्रेरणा आशीर्बाद निहित थाए बोलि मोर बिश्वास सुय़ोगर अभाबय़ोगुँ अनुबादटि प्रकाशित होइपारि थिला एबे अनुकूळ समय आसिछि

   ओड़िशार लोकप्रिय स्वनामधन्य मुखपत्रबर्त्तिका दशहरा बिशेषाङ्क- २०१६ रे गीतगोविन्द काव्यर मदीय संपूर्ण्ण पद्यानुबाद स्थानित हेउछि एथिपाइँ गुणग्राही संपादक-मण्डळी समेत बिशेष रूपे मुख्यसंपादक डक्टर् नबकिशोर मिश्र महोदयङ्क प्रति मोर आन्तरिक कृतज्ञता ज्ञापन करुछि सुधीबर्ग एहि सुमधुर काव्यर रसास्वादन करि आनन्दित हेले मोर श्रम सार्थक मने करिबि

* हरेकृष्ण मेहेर

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गीतगोविन्द काव्य
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[उपक्रम]

पबित्रधाम        ओड़िशा भूमिरे
प्राची तटिनीर सन्निधिरे,
मसिहा द्वादश शताब्दीरे 
केन्दुबिल्व ग्रामर निबासी कबिबर,
कृष्ण-भकत       जयदेब से 
श्रीमती पद्माबती-बर 
गीतगोविन्द       काव्य रचिले
सारा बिश्वरे सुबिश्रुत,
श्रीराधाकृष्ण-      युगळ मूरति
बर्ण्णना आदिरसाप्लुत 
संस्कृत गिरे       समुदाय बार
सर्गे रहिछि चबिश गीत,
मध्ये मध्ये         बिबिध छन्दे
श्लोकराजि एथि समन्वित 
शृङ्गार सह भकति-रसर ङ्गीतरे,
गीतगोबिन्द         परमानन्द
बितरण करे निरन्तरे 
ओड़िआ पद्ये        ताहारि हृद्य
रूप आङ्किबा लागि,
श्रीहरेकृष्ण-        मेहेर-मानस
होइअछि अनुरागी  
प्रीति लभन्तु        श्रीजगन्नाथ
सुपरसन्न महाप्रभु,
काव्य पठन         श्रबणे रसिक
भक्तसमाज सौख्य लभु ॥ 

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  * अनुवाद *
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(Gita-Govinda : Canto-1 : Samoda-Damodara)
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गीतगोविन्द : प्रथम सर्ग
(सामोद-दामोदर
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[श्लोक-१ मेघैर्मेदुरमम्बरं वनभुवः]
*
अम्बुदराजि आबोरि देइछि अम्वर,
दिशुछि तमाळतरुमाळे भरा
बनभूइँ श्याम रङ्गर 
रजनीकाळे  काह्नु एका,
भारि भय करे आगो राधिका !
एथिपाइँ तुमे सङ्गे य़ाइ,
निजे हिँ एहाकु   सदनरे दिअ
पहञ्चाइ 
नन्द-बदनुँ एइ गिर शुणि अनुरागे,
आगेइले राधामाधब युगळ
पथ-निकुञ्जतरु दिगे 
गोपन सकळ शृङ्गार-केळि बेनिङ्कर,
बिजयाङ्कित     बिराजे बिजने
य़मुनार तीरे निरन्तर 
*
[श्लोक-२ वाग्देवता-चरित-चित्रित]
*
बाणीदेबीङ्क-  चरित चर्च्चिबारे
चित्रित य़ार होइछि चित्त-सदन,
ये पद्माबतीपयर-युग्मताळे
चारणबिधाने चक्रबर्त्ती राजन 
करुछन्ति से        जयदेब कबि
एहि काव्यर बिरचना,
गर्भित एथि       शिरी-बासुदेब-
रतिकेळिकथा बर्ण्णना 
*
[श्लोक-३ यदि हरिस्मरणे सरसं]
*
मन रसभर        यदि तुम्भर
हरि-सुमरणा करिबारे,
बिबिध बिळास    कळा बिषयरे
कौतुक यदि अछि बारे 
शुण तेबे कबि जयदेबङ्क गिर,
मधुर कोमळ   कमनीय पद
बिन्यासे सुरुचिर 
*
[श्लोक-४ वाचः पल्लवयत्युमापतिधरः]
*
बिस्तारिबारे     काव्ये शबद
आड़म्बर,
उमापतिधर धुरन्धर 
जटिळ कठिन कबिता झटति निपुण,
बिरचिबा लागि     प्रशंसनीय
कबि अटन्ति शरण 
शृङ्गार-रस-    भरा उत्तम
बिषय-बस्तु सुबर्ण्णन,
करणे प्रबीण कबि आचार्य्य़ गोबर्द्धन 
ताङ्क सहित प्रतिस्पर्द्धा करिबा पाइँ,
प्रसिद्ध केहि व्यक्ति नाहिँ 
धोयी नामे कवि-महीपति
लभिअछन्ति श्रुतिधर बोलि परिचिति 
प्रसङ्गोचित      शुद्ध कबिता
बिरचित केउँपरि हेब,
तत्त्वकथा  जाणन्ति एका जयदेब 
*
[गीत-१ प्रलय-पयोधिजले]
*
प्रळय-काळीन      सिन्धुजळरे
महिमा निजर बिस्तारि,
नौकारूपरे   अनायासे तुमे
उद्धार कल बेद चारि 
प्रभु हे केशब हे मत्स्य अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
मही बहिबारु      संजात बहु
क्षतचक्ररे अतिशय,
कठोर बिशाळ     पृष्ठरे तुम
बसुधा लभिछि आश्रय ।
प्रभु हे केशब कच्छप अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
तब दन्तर अग्रभागे,
बिजड़ित होइ      सारा धरित्री
एपरि लागे 
कळाकर-कळेबरे,
कळङ्क-रेखा मज्जित य़ेरूपरे 
प्रभु हे केशब हे बराह अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
कर-पद्मरे नख तुमरि,
शोहे बिचित्र शृङ्ग धरि 
से  हिरण्यकशिपुर बपु-रूपक
भ्रमरर हेळे साजिछि दारुण दारक 
प्रभु हे केशब नरहरि अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
बड़ बिचित्र बामन !
आपणार तिनि    पाद बिस्तारि
छळिअछ बळि राजन 
तुमरि चरण-नखकोणर,
जळे पबित्र करिअछ तिनि लोक निकर 
प्रभु हे केशब हे बामन अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
क्षत्रियगण बिनाशि हेळे,
स्नान कराइछ     जगतकु तुमे
ताङ्क रकतपूर्ण्ण जळे 
पातक हरिछ लोकर,
संसार-ताप शान्त करिछ आबर 
प्रभु हे केशब परशुरामाबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
घोर संग्रामे करिछ राबण संहार,
दशदिगे दिग-    पति-बृन्दकु
सुन्दर बळि उपहार 
करिअछ तार दश मस्तक अर्पित,
थिला  बस्तु ताङ्करि बहु काङ्क्षित 
प्रभु हे केशब रघुपति अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
कमनीय नीळबरण,
बस्त्र करिछ शुभ्र शरीरे धारण 
शोभा बहिअछि    से  नीरभरा
अभ्रर आभा सरि,
तब हळ-घात     भये बिह्वळा
यमुनार प्रभा परि 
प्रभु हे केशब !  हळधर अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
य़ज्ञ-करमे  बिधान करे ये
पशुबधर,
एपरि सकळ    बेद-बचनकु
तुमे निजर,
दयापरायण हृदयरे,
दरशाइ आहा निन्दा करिछ बिश्वरे 
प्रभु हे केशब हे बुद्ध अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  ()
*
म्ळेच्छगणर       उच्छेद लागि
धरिअछ करे नाशकारी,
धूमकेतु परि  घोर बिकराळ
तरबारी 
प्रभु हे केशब हे कल्कि अबतार !
जगदीश हरि !     प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  (१०)
*
शिरी-जयदेब-कबि-बिरचित
उदारगुणरे  पूरित  गीत,
सौख्यदाय़क    मङ्गळकारी
सार  मर्त्त्य-भुबने,
श्रबण कर हे सुमने 
केशब तुमे हे बहिछ दशाबतार,
जगदीश हरि !   प्रसरु जगते
तब जय-जयकार  (११)
*
[श्लोक-५ वेदानुद्धरते जगन्ति वहते]
*
चारिबेद कल उद्धार,
पृष्ठे बहिल महीभार 
दन्त-शिखरे कल धरित्री धारण,
कल हिरण्यकशिपु दैत्य दारण 
बळिराजाठारे छळना कल,
क्षत्रिय-कुळ संहारिल 
बधिल असुर राबण,
करे कल हळ धारण 
करुणा करिल बिस्तार,
म्ळेच्छगणकु कल मूर्च्छित संहार 
कृष्ण तुमे    बहिछ एपरि
दशाबतार,
चरणे तुमरि नमस्कार 
*
[गीत-२ श्रित-कमला-कुच-मण्डल]
*
आश्रिअछि य़े   प्रियतमा रमा-
उरसिज-परिसर,
कर्ण्णे शोहे य़ा कुण्डळ मनोहर 
राजे लम्बित    कमनीय य़ार
बनमाळा कळेबरे,
प्रभु ए रूपरे  पूज्य तुमे हे !
जय जय देब हरे !  ()
*
बिभाकर रबि-मण्डळर य़े भूषण,
हरे संसार-कषण 
मुनिमानङ्क     मानस-सरे य़े
हंस रूपे बिहरे,
प्रभु ए रूपरे      पूज्य तुमे हे !
जय जय देब हरे !  ()
*
दळन करिछ दर्प काळिय सर्पर,
सन्तोष कराइछ लोकङ्क अन्तर 
अंशुमान य़े           य़दुबंशर
कञ्ज बिकाशिबारे,
प्रभु ए रूपरे    पूज्य तुमे हे !
    जय जय देब हरे !  ()
*
मधु दैत्यर बधकारी,
मुर दानबकु अछ मारि 
नरकासुरर अन्तकर,
गरुड़-बाहने तुमे बिहर 
आदि कारण य़े       देबबृन्दर
आनन्द बिहिबारे,
प्रभु ए रूपरे    पूज्य तुमे हे !
      जय जय देब हरे !  ()
*
बिमळ पद्म-पत्र समान नेत्रधारी,
भब-बन्धन-मोक्षकारी 
त्रिभुबन-रूप     भबनर य़ेहु
आधार स्वरूप धरे,
प्रभु ए रूपरे      पूज्य तुमे हे !
      जय जय देब हरे !  ()
*
जानकीङ्कर   हृदे  य़े शोभित
अळङ्कार,
संहारक य़े     दूषण नामक
राक्षसर 
दशकण्ठकु          बिलुण्ठित ये
करिछि संग्रामरे,
प्रभु ए रूपरे       पूज्य तुमे हे !
       जय जय देब हरे !  ()
*
नब नीरधर     तुल्य य़ाहार
मनोहर कळेबर,
मन्दर-गिरिधर !
इन्दिरा-मुख-    इन्दु पाइँ य़े
चकोर रूपे बिहरे,
प्रभु ए रूपरे     पूज्य तुमे हे !
      जय जय देब हरे !  ()
*
प्रणाम करुछुँ पयर-य़ुगे तुमरि,
जाण तुमे एहिपरि 
प्रणत जनरे     प्रिय कल्याण
बिधान कर शुभरे,
       जय जय देब हरे !  ()
*
शिरीजयदेब कबिङ्क बिरचित,
उज्ज्वळ रसाणित 
एहि मङ्गळ      गीत आनन्द
देउ तब हृदयरे,
        जय जय देब हरे !  ()
*
[श्लोक-६ पद्मापयोधर-तटी-परिरम्भ]
*
पद्मा-उरज      तटे करिबारु
प्रेमालिङ्गन गहन,
कुङ्कुम-लेप    य़ोगे अङ्कित
य़ेउँ उरदेश शोभन 
कामकेळि-खेद-  जनित घर्म
नीरबिन्दुरे  जर्जर से,
व्यकत करइ     सते उच्छळ
हृद-अनुराग मज्जि रसे 
से मधुबइरी     माधबङ्कर
उर सुचारु,
तुममानङ्क       मनस्कामना
पूर्ण्ण करु 
*
[श्लोक-७ वसन्ते वासन्ती-कुसुम-सुकुमारै]
*
मधुर माधबी सुमन सम
कोमळ निजर     अङ्ग-राजिरे
सहि निजे बहु परिश्रम 
चारु बसन्त ऋतुरे
राधा सुन्दरी आतुरे,
भ्रमि काननरे अनुक्षण
करुथिले नाना  मते हरिङ्कि
अन्वेषण 
प्रबळ मदन-सन्तापजात चिन्तारे
व्याकुळता भजि अन्तरे,
लभि तहिँ बाधा अधिका
अधीरा थिले से राधिका 
 दशा बिलोकि सहचरी,
परकाश कले    बचन सरसे
ताङ्क पुरते एहिपरि 
*
[गीत-३ ललित-लबङ्ग-लता-परिशीलन]
*
लाबण्यमय प्रिय लबङ्ग-बल्लरीर
अङ्ग सकळ  परशि मळय मृदु समीर,
बहइ एकाळे मन्दमन्द सुगन्धित 
भृङ्ग-राजिर मधु गुञ्जन सङ्गतरे
कोकिळ-कुळर पञ्चम राग मधुस्वरे,
मञ्जुळ सारा कुञ्ज-कुटीर गुञ्जरित 
बिहरन्ति       रसमय मधु
समयरे हरि हर्षभर,
सजनि गो से    तरुणीगणर
गहणरे निति नृत्यपर 
बिरहीगणर अन्तरे,
ऋतु बसन्त       बहु सन्ताप
जात करे  ()
*
काम-कामनारे बिह्वळा एबे सकळ,
पान्थ-कामिनी    बिरहे बिळाप
करुअछन्ति बिकळ 
बकुळ तरुर सुमन-गन्धे आकुळ,
भ्रमरपन्ति      तहिँ करन्ति
        गुणुगुणु रागे चहळ  ()
*
नबपल्लबे       पूरित तमाळ
तरुबर एकाळरे,
बिस्तार करे       कस्तूरी सम
सुबास चौदिगरे 
बिदारिबा लागि तरुणजनर हृदय,
निदारुण काम-   नखर कान्ति
बहिछि पलाश-निचय ॥ ()
*
मन्मथ-मही-     अधिपर हेम
दण्ड छबि आहरि,
केशर सुमन    बिकशिछि एबे
दर्शक मन हरि 
भ्रमरपन्ति-शोभित पाटळि पुष्पमान,
रतीशर शर-     पूर्ण्ण तूणीर-
       कान्तिकि बहि बिद्यमान  ()
*
लज्जा बरजि       काम-उत्सबे
य़ुबाए मज्जिबारु,
ता देखि कुसुम     छळे हसन्ति
तरुण करुण तरु 
कुन्त-बदन-     आकार केतकी-
कुसुम-रूपक दन्त मेलि,
दिगङ्गनाए          हसन्ति एबे
       बिरहीमर्म भेदिबे बोलि  ()
*
 मधु समय      माधबी फुलर
महकरे मनोहारी,
बिकशित नब-  माळिका जातीर
गन्ध चहटे भारि 
मुनिमानङ्क         मानस मध्य
बिमुग् करे कुसुमाकर,
  अहेतुक           बन्धु अटइ
      युबक-युबतीमानङ्कर  ()
*
पुष्पित अतिमुक्त लतार आलिङ्गन,
लभि पुलकित       बकुळपूर्ण्ण
आम्रपादप कि शोभाबन 
सुन्दर एइ बृन्दाबनर कानन,
परिसर परि-      व्यापत य़मुना
नदी-अम्बुरे पाबन  ()
*
कबि जयदेब-बिरचना,
रसमय मधुसमयर बन-बर्णना ।
श्रीहरि-चरण     सुमरणा एका
सार बोलि दिए कहि,
मन्मथभाब        बिकार एथिरे
पद निए मन मोहि  ()
*
[श्लोक-८ दर-विगलित-मल्ली-वल्ली]
*
ईषत गळित       मल्ली-लतार
पुष्पराजिर रजरु,
प्रसारित बासे     कराइ बनकु
सौरभमय सुचारु 
मधुर पबन बहइ धीर,
केतकीफुलर     सुरभि अटइ
मित्र तार 
निजे होइ ताहा सहित सम्मिळित,
बिषम-सायक      रतिकान्तकु
कराइ उज्जीबित 
समीरण एइ बसन्तरे,
बिरही जनर     मानस आतुरे
दग् करे 
*
[श्लोक-९ उन्मीलन्-मधुगन्ध-लुब्ध]
*
बिकशित मधु     गन्धलोभरे
भ्रमरदळ,
दोळाउछन्ति   धीरे बसि मृदु
चूत-बकुळ 
खेळा करन्ति तहिँ आबर
पिक-पङ्कति परकाशि कुहु मधुस्वर 
किन्तु  राब     कोळाहळभाब
शल्य साजि,
व्यथा जन्माए       पथिकजनर
कर्ण्णे बाजि 
 बासन्तिक दिबसराजिकि पान्थकुळ,
कौणसि मते     बिताइथान्ति
होइ आकुळ 
धिआन आचरि एकाग्रतार मुहूरते,
लभि से पराण-   प्रतिमा आपणा
प्रियतमाङ्कु सङ्गते 
मिळन-रसर आनन्दरे
मातिरहन्ति एकान्तरे 
*
[श्लोक-१० अनेकनारी-परिरम्भ]
*
बहु गोपीङ्क       प्रेमालिङ्गन
केळिभङ्गीरु प्रकाशित
रम्य लळित      बिबिध बिळास
लीळाराजिरे य़े लाळायित 
से मुरबैरी  अनतिदूरे
रहिअछन्ति  कुञ्ज-पुरे 
बोलि सहचरी    अङ्गुळि य़ोगे
निर्देशि आपणार,
राधासम्मुखे         मधुर बचन
भाषिले पुनर्बार 
*
[गीत-४ चन्दन-चर्चित-नीलकलेवर]
*
चारु चन्दन बिलेपन,
भूषित करिछि हरिङ्क नीळ अपघन 
दिशे बनमाळा सुन्दर,
करिअछन्ति परिधान पीत अम्बर 
केळिकाळे शोहे चञ्चळ
ताङ्करि मणि-कुण्डळ 
से मणि-किरणे     कपोळ-य़ुगळ
दीप्यमान,
मधुर मन्द         हास्य बदने
बिद्यमान 
आगो बिळासिनी राधिका !
केळिपरायणा मुग्धहृदया गोपिका
युबतीबृन्द सङ्गते एइ बृन्दाबने,
हरि अछन्ति          बिळासे मगन
हर्षमने  ()
*
के गोपनागरी प्रणयानुरागे
आपणार पीन  बक्षोज य़ुगे
करिछि कृष्णे आलिङ्गन,
हृदय उभय संलगन 
प्रिय-गायनकु अनुसरि,
उच्चे गायन       करुछि मधुर
       पञ्चम राग सुन्दरी  ()
*
मुग्धा तरुणी आन केहि,
कृष्ण-बदन-       पद्मकु चाहिँ
रहिछि अधिक आशा बहि 
बिळास-लीळारे चपळ
रम्य नयन य़ुगळ,
खेळाइ सरसे आपणार
करुछि पञ्चशायकर भाब सञ्चार  ()
*
केउँ गोपनारी   किछि गोपनीय
कहिबा छळे
बाङ्क ठाणिरे       माधबङ्कर
कर्ण्णमूळे,
मिळाइ निजर सुबदन
देउछि मधुर चुम्बन 
नितम्बिनी से  रस-बिभोळे
       पुलक-पूरित प्रिय-कपोळे  ()
*
कामकेळिकळा-    कौतूहळरे
केउँ गोपिका,
देखि हरिङ्कि      मञ्जु बेतस
कुञ्जे एका 
परिहित पीत   बास करे धरि
भिड़ि नेउअछि धीरे,
य़मुना-सरित तीरे  ()
*
केउँ गोपी माति रास-रसरे,
नृत्य रचइ प्रिय-हरिङ्क सङ्गतरे 
मोहन बंशी     मधु निस्वन
सहित चारु
करतळे निज    लय सङ्गते
ताळ देबारु,
तहिँ चञ्चळ कङ्कण बाजि परस्पर
प्रसरइ नाद कि सुन्दर 
नृत्यबिभोरा सेहि य़ुबती,
प्रशंसा तार करन्ति हरि हर्षमति  ()
*
केउँ नागरीकि     हरि करन्ति
आलिङ्गन,
काहा कपोळरे    करन्ति पुणि
चुम्बदान 
आन केउँ गोपी सहित
कामकेळिरे से मोहित 
ईषत-हास्य मुखे परकाशि आहुरि,
केउँ तरुणीकि अनाइँछन्ति श्रीहरि 
मोहन भङ्गी    करि से रसिक
धीर धीर,
पुणि चालन्ति      पछे पछे केउँ
युबतीर  ()
*
जयदेब- कबि-रचित,
प्रभु हरिङ्क      अद्भुत एहि
गोपनीय केळि चरित 
बृन्दाबनर लीळाकुञ्जरे कळित,
कीर्त्तिकर  लळित 
सभिङ्क पाइँ शुभङ्कर,
हेउ जगतरे निरन्तर  ()
*
[श्लोक-११ विश्वेषामनुरञ्जनेन]
*
जगाइ सबुरि       हृदे आनन्द
प्रेम अनुराग बहि,
कृष्ण एकाळे       केळि-तत्पर
देख आगो प्रियसहि !
नीळ अम्बुज       सम सुकुमार
श्यामळ अङ्गे निजर,
प्रसारुछन्ति       सरस पीरति-
उत्साह मनसिजर 
सम्मुखे निज     स्वेच्छारे गोप
अङ्गनागण प्रेमे मगन,
प्रियतमङ्कु         अङ्गे अङ्गे
करुअछन्ति आलिङ्गन 
 बसन्तरे        क्रीड़ा करन्ति
मुग्ध मानसे हरि,
शृङ्गार सते      साक्षाते उभा
रम्य शरीर धरि 
*
[श्लोक-१२ अद्योत्सङ्ग-वसद्‌-भुजङ्ग]
*
निज कोळगत बिबिध उरग-बर्गर,
गरळ-कबळे  सते अबा अति
उद्बेग लभि सत्वर,
शान्त शीतळ तुषारे
अबगाहिबार आशारे,
पबन मळय पर्बतर,
धीरे धीरे हिमगिरि अभिमुखे
हेउअछि आजि अग्रसर 
सरस आम्र     तरुशिखे जात
कळिका कुसुम दर्शने
बहु उल्लास लभि मने,
कोकिळ-समूह मुह्यमान,
कुहुकुहु करि         प्रसारुछन्ति
सुमधुर कळ उच्चतान 
* * *
गीतगोबिन्द सुरुचिर,
काव्य रचिले  शिरीजयदेब  कबिबर 
प्रथम सर्ग  समापत,
होइछि ‘सामोद-दामोदर’ नाम बर्णित ।
श्रीहरेकृष्ण मेहेर ओड़िआ भाषारे,
अनुबाद एइ  रचिले पद्य आकारे 
= = = = =
गीतगोविन्द प्रथम सर्ग सम्पूर्ण *
= = = = = 

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