Wednesday, December 28, 2011

Mahendra Bhatnagar’s Poem विद्युत्‌पात हेबाकु देबुँ नाहिँ (Oriya Version : Harekrishna Meher
























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मूल हिन्दी कविता : बिजलियाँ गिरने नही देंगे
रचयिता : डॉ. महेन्द्र भटनागर
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कुछ लोग
चाहे जोर से कितना
बजाएँ युद्ध का डंका
पर, हम कभी भी
शान्ति का झंडा
जरा झुकने नहीं देंगे ।
हम कभी भी
शान्ति की आवाज को
दबने नहीं देंगे ।

क्योंकि हम
इतिहास के आरम्भ से
इन्सानियत में,
शान्ति में
विश्वास रखते हैं,
गौतम और गान्धी को
हृदय के पास रखते हैं ।
किसीको भी सताना
पाप सचमुच में समझते हैं,
नहीं हम व्यर्थ में पथ में
किसी से जा उलझते हैं ।

हमारे पास केवल
विश्व-मैत्री का,
परस्पर प्यार का सन्देश है,
हमारा स्नेह
पीड़ित ध्वस्त दुनिया के लिए
अवशेष है ।

हमारे हाथ
गिरतों को उठाएंगे,
हजारों
मूक, बंदी, त्रस्त, नत,
भयभीत, घायल औरतों को
दानवों के क्रूर पञ्जों से बचाएंगे ।

हमें नादान बच्चों की हँसी
लगती बड़ी प्यारी,
हमें लगतीं
किसानों के
गडरियों के
गलों से गीत की कड़ियाँ मनोहारी ।
खुशी के गीत गाते इन गलों में
हम
कराहों और आहों को
कभी जाने नहीं देंगे ।


हँसी पर खून की छींटें
कभी पड़ने नहीं देंगे ।
नये इनसान के मासूम सपनों पर
कभी भी बिजलियाँ गिरने नहीं देंगे ।
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Hindi Poem of Dr. Mahendra Bhatnagar
Oriya Translation By : Dr. Harekrishna Meher
(Bidyutpaata hebaaku debun naahin)
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विद्युत्‌पात हेबाकु देबुँ नाहिँ
(मूल हिन्दी कविता –
बिजलियाँ गिरने नहीँ देंगे : डॉ. महेन्द्र भटनागर)

ओड़िआ भाषान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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किछि लोक य़ेते जोर्‌रे
य़ुद्धर डिण्डिम पिटुथान्तु पछे,
आमे केबेहेले
शान्तिर वैजयन्तीकु
टिकिए बि नइँबाकु देबुँ नाहिँ ।
आमे केबे बि
शान्तिर उदात्त उच्चारणकु
दमित हेबाकु देबुँ नाहिँ ॥

कारण हेउछि,
आमे इतिहासर प्रारम्भरु
विश्वास रखिछुँ
मानविकतारे
आउ शान्तिरे ।
गौतम आउ गान्धीङ्कु
आमे रखिछुँ
आपणार हृदय निकटरे ।
काहारिकि पीड़ा देबा
आमे बास्तबरे पाप बोलि बुझुँ ।
काहारि सङ्गे
तुच्छाटारे रास्तारे
आमे कळिद्वन्द्व करुँना ॥

आमठारे रहिछि
बार्त्ता केबळ विश्वमैत्रीर,
परस्पर प्रेमर ।
पीड़ित ध्वस्त दुनिआ लागि
अबशिष्ट रहिछि
आमरि आन्तरिक स्नेह ॥

आमरि हात
कराइब निश्चित
पतितमानङ्कर उत्थान ।
हजार हजार
मूक बन्दी त्रस्त नत
भयभीत आहत
महिळामानङ्कु सुरक्षा करिब
दानबमानङ्कर क्रूर पञ्झारु ॥

निरीह निष्कपट
शिशुमानङ्कर हस
आमकु बहुत भल लागे ।
कृषकमानङ्कर
आउ मेषपाळकमानङ्कर कण्ठरु
निर्गत गीत-पङ्क्ति
आमकु लागे
बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी ।
आनन्दर गीत गाउथिबा
एइ कण्ठमानङ्करे
दुःखर उच्छ्वास आउ य़न्त्रणाकु
केबेहेले प्रबेश कराइ देबुँ नाहिँ ॥

हस उपरे रक्तर छिटा पड़िबाकु
केबेहेले देबुँ नाहिँ ।
नूतन मणिषर निश्छळ स्वप्न उपरे
केबेहेले बिद्युत्पात
हेबाकु देबुँ नाहिँ ॥

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