Tuesday, October 18, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-12 (Last): Odia Version: Dr.Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
*
Link:
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत गीतगोविन्द काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवादडॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda ; Canto-I2 : Suprita-Pitambara)
*
गीतगोविन्द : द्वादश सर्ग
(सुप्रीत-पीताम्बर)
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[श्लोक-: गतवति सखीवृन्दे]
*
कुञ्ज- बाहारे     सखीए बिदाय
नेला परे,
राधाङ्क मन     हरष भजिला
रसभरे
अधिक लज्जा       बशे मन्मथ-
कामनारे परिपूरित
मृदुळ मन्द हसित,
प्रसरि सरसे धीरधीर
धौत करिला मधुर अधर ताङ्कर
थिला सज्जित        नूतन पत्रे
रचित शय़्या सुकुमार,
तृषित नेत्रे   निरेखि ताहाकु
चाहुँथिले राधा बारबार
प्रियतमाङ्कु एपरि लक्ष्य करि,
मधुर बाक्य निबेदिले प्रियहरि
*
[गीत-: किशलय-शयनतले कुरु]
*
नबपल्लब-      रचित रुचिर
कोमळ शय़्या उपरे,
स्थापन कर गो   तुमरि पयर-
कमळ रम्यरूपरे
प्रतिस्परधा करइ शय़्या एहि ,
बल्लभि ! तुम पाद-पल्लब सहित
एबे से अराति-पराजय,
अनुभब करु निश्चय ।
कान्ते ! राधिके ! सन्तत,
कृष्ण तुमरि अनुगत
मुहूर्त्तक समये,
एइ नारायण        पाशे अनुकूळ
     प्रसन्न हुअ हृदये ()
*
दूर पथ गमि     आसिछ सजनि !
मोहरि हस्त-सरसिजे,
एथिपाइँ तुम          पदय़ुग-सेबा
करिबि सादर मुहिँ निजे
तुमरि पयरे       नूपुर य़ेपरि
अनुगत,
सेपरि सेबारे   प्रबर मुहिँ
अबिरत
घेनाकरि मोते      प्रिये ! उपकार
कर बारे,
किछि मुहूर्त्त सेबिबा अर्थे शय़्यारे ()
*
राधा गो ! रम्य आधार,
अटइ तुमर बदन-चन्द्र सुधार
इन्दुरु सुधाबिन्दु झरइ य़ेउँपरि,
तुमरि मुखरु         अनुकूळ बाणी
स्यन्दित हेउ सुन्दरि !
आमरि मध्ये        मिळन-बाधक
बिरह-कारक य़ेसन,
रहिछि तुमरि उरज-रोधक बसन
एथिपाइँ तुम       बक्षदेशरु
अपसारित,
करिदेउछि मुँ    आच्छादन
     अबाञ्छित ()
*
बल्लभि ! अति       दुर्लभ तुम
य़ुगळ उरज-कळस,
व्यग्र सते बा   लभिबा पाइँ से
प्रियालिङ्गन सरस
होइछि आबेगे रोमाञ्चित,
कर से बेनिकि  उरसे मोहर संय़ोजित
हृदयरु एबे सत्वर,
     काम-सन्ताप दूर कर ()
*
तुमरि दास मुँ     रहिअछि सेबा
परायण,
सकळ बिळास     बरजि तुमरे
करिछि मानस अर्पण
बिरह-दहन दहुअछि देह मोहरि,
भामिनि गो ! मधु         सुधारस पान
कराअ अधरु तुमरि
प्रेयसि गो ! मुहिँ मृतप्राय,
जीबदान कर         हेउ कृतार्थ
    अभिप्राय ()
*
मुखरित कर     चन्द्रमुखि गो !
मणिमय चारु मेखळा,
तुमरि कण्ठ-     स्वर सम ताळे
करु सुन्दर से खेळा
कोकिळ-कूजन सकळ,
मोहरि उभय          कर्ण्णपुटरे
प्रबेशि करिछि बिकळ
दीर्घकाळर अबसाद,
शान्त कर गो      कान्ते ! बितरि
    मधुनाद ()
*
कोप अकारणे       परकाश करि
मो उपरे,
व्याकुळता आउ   जगाअ नाहिँ मो
मानसरे
मोहरि मुखकु    चाहिँला बेळकु
सते बा लज्जाभरे,
मुदि हेउअछि         नेत्र तुमरि
सखि गो ! सम्मुखरे
लज्जा एकाळे परिहर,
रतिकेळिखेद-       चिन्ता मनरु
     दूर कर ()
*
शिरीजयदेब-   कबि-बिरचित
एइ गीत,
प्रतिपदे करे       प्रियहरिङ्क
हृदयानन्द प्रकाशित
रसिकजनर          अन्तरे एइ
मधुर गिर,
सञ्जात करु       मञ्जुळ रति-
         रसभाब-सुख हर्षभर ()
*
[श्लोक-: प्रत्यूहः पुलकाङ्कुरेण]
*
चिरबाञ्छित         कामना पूरिला
बेनिङ्कर,
हेला आरम्भ          केळि-सम्भोग
परस्पर
निबिड़ प्रणय-      आलिङ्गनरे
हेबा परे दुहेँ मग्न,
धीरे पहञ्चि        घन रोमाञ्च
तहिँरे साजिला बिघ्न
बिलोकन थिला      तृष्णापूरित
अनुरागे अतिशय,
साजिला अळप      नेत्र-पलक
तहिँरे अन्तराय
उभयङ्कर           सरस अधर
सुधापान बेळे अधीर,
उभा हेला आसि   बाधक रूपरे
नर्म आळाप मधुर
चरमानन्द            प्रतिबन्धक
रूपे होइबारु उपगत,
तहिँ अनङ्ग-      कळा-संग्राम
हेला सुरङ्गे समापत
क्रिया-कळाप      अळप बाधक
होइले सुद्धा परिणामे,
हृदे बितरिला      प्रमोद अपार
सुखद मदन-संग्रामे
*
[श्लोक-: दोर्भ्यां संयमितः]
*
प्रिय-बान्धबी       राधिकाङ्कर
बाहुबन्धने बन्दी होइ,
अळप कष्ट          पाइले कृष्ण
उरसिज-भारे छन्दि होइ
नखमुने हेला चिह्नित कळेबर,
बिक्षत हेला दन्ताघाते अधर
ताड़ना हेतुरु     प्रियतमाङ्क
नितम्बर,
पीड़ित होइले पीताम्बर
कर्षण य़ोगुँ        हस्ते चिकुर
हेला नमित,
मधुर अधर     रसपाने हेले
सम्मोहित
एपरि प्रणये           अबर्ण्णनीय
तृप्ति लभिले रसिकबर,
प्रतीत हुअइ    आहा ! बिपरीत
अद्भुत गति कामदेबर
*
[श्लोक-: माराङ्के रतिकेलि]
*
मार-चिह्नित         सरस सुरति
केळिर समर उद्यमे,
प्रियतमङ्कु       जिणिबा इच्छि
राधिका सेकाळे सम्भ्रमे
साहसर सह      अनङ्ग-भाब-
भङ्गी बहि,
बिबिध चेष्टा          आरम्भिले से
हरिङ्क उर उपरे रहि
अळप समये ताङ्कर,
निश्चळ होइ रहिला जघन-परिसर
मृदुळ ताङ्क  भुज-लता
भजिला सहजे  शिथिळता
उर-परिसर     बिचळित हेला
कम्प घेनि,
निमीळित हेला नेत्र बेनि
प्रिय-सङ्गते रचिलेबि रति-उत्सब,
नारी पक्षरे           पौरुष-रस
हेब काहुँ अबा सम्भब ?
*
[श्लोक-: तस्याः पाटल-पाणिजाङ्कित]
*
प्रेयसीङ्कर        उर-परिसर
पाटळ पुष्प सम,
नख-चिह्नरे शोभुथिला मनोरम
निद्राआबेशे रङ्गिम थिला नयन,
दिशुथिला मृदु अधर-लालिमा मळिन
लुळायित थिला     अय़तने चारु
अळकाबळी,
झरि य़ाइथिला      कुसुम-माल्य
तहिँ मउळि
जघन-देशरु रशना सङ्गे दुकूळ,
खसि रहिथिला शिथिळ
प्रियतमाङ्क एमिति पञ्च बिकार,
प्रभातबेळारे होइला नेत्रगोचर
कामर पञ्च         शररूप बहि
से बिमोहन,
अद्भुतभाबे      बिद्ध करिला
माधब-मन
*
[श्लोक-: अथ श्रान्तं रतिक्लान्तं]
*
तदनन्तरे           श्रान्त आबर
सुरति केळिरे क्ळान्त,
होइ रहिथिले कान्त
स्वाधीन-पतिका    राधा सुन्दरी
पुणि थरे,
बेश-बिभूषित    हेबा पाइँ निज
कळेबरे
बिकार बरजि मानसे,
प्रिय-सम्मुखे परकाश कले सरसे
*
[गीत-: कुरु यदुनन्दन ! चन्दन]
*
लीळामय गोपीनायक,
यदुबंशर           शुभाबतंस
हृदयानन्द-दायक
केळि-चापल्य       करन्ते हरि
ताङ्कु निरेखि प्रेमभरे,
व्यकत करिले       मधुर बाक्य
प्रेयसी राधिका ए रूपरे
तुमरि हस्त कोमळ,
चन्दनरु बि शोभइ अधिक शीतळ
मो बेनि उरज अनङ्गर,
मङ्गळ घट        तुल्य अटइ
नटनागर !
हस्तरे घेनि तहिँरे हे य़दुनन्दन !
कस्तूरिकार         रुचिर पत्र
        करिदिअ मुदे अङ्कन ()
*
कटाक्ष-रूप         दर्पक-शर
निक्षेपिबारे सफळ,
मोहरि नेत्रय़ुगळ
हरि हे ! तहिँरे     लागिबारु तुम
सराग अधर-चुम्बन,
अञ्जन लिभि घषि होइअछि अय़तन
भ्रमरकान्ति-जिणा सुरम्य कज्जळ,
घेनि निज करे         लगाइ आदरे
       करिदिअ ताहा उज्ज्वळ ()
*
कर्ण्णय़ुग मो            नेत्र-मृगर
ऊर्मिळ गति-रोधकारी,
तहिँ पिन्धाइ         दिअ आनन्दे
कुण्डळ य़ुग मनोहारी
कन्दरपर         बन्धन-फाश-
लीळाकु बेनि बहिब,
आहे मङ्गळ-बेशधर प्रिय केशब ! ()
*
केळति-केळिरे       बिञ्चि होइछि
कुञ्चित मोर केशपाश,
सखीगण एहा       देखिले करिबे
केते कौतुक परिहास
ताहा सज्जित करिदिअ एबे सम्मुखे,
पद्मजिणा         रम्य बिमळ
मोर मुखे
कृष्ण मधुप-पन्ति-रूपकु बहि,
शोभा पाउ ताहा प्रिय-अन्तर मोहि ()
*
हे अरबिन्द-बदन !
भालपट मोर चन्द्रमारूप शोभन
श्रमज घर्म-बिन्दु-जळ,
शुष्क होइछि तहिँ सकळ
कस्तूरी रस           घेनि हस्तरे
तहिँरे तिळक सुन्दर,
लगाइदिअ हे प्रियबर !
से कळाकरे सुशोभित,
कळङ्क-रूप बहिब सुचारु अङ्कित ()
*
कामर केतन-       चामर-कान्ति
बहन करिछि मोहर,
नीळ कुन्तळ मनोहर,
सुरति-आबेगे बिगळित होइरहिछि,
रम्य मयूर-पुच्छर शोभा बहिछि
मान-भञ्जन !      मान-रञ्जन !
एइ मञ्जुळ केशपाशे,
खञ्जिदिअ हे         कुसुम-पुञ्ज
      प्रिय-बेशे ()
*
जघनस्थळी पृथुळ रम्य रसभरा,
अनङ्ग-      मतङ्गजर
अटइ निबास-कन्दरा
एबे करिदिअ तहिँ सज्जित
सुसञ्च मणि-काञ्ची सहित,
झीन अम्बर       अळङ्कारादि
मनोरम,
आहे मङ्गळ    भाबना-निळय
          प्रियतम !’ ()
*
कबिजयदेब भणिले मधुर बाणी,
श्रीहरि-पयर-    स्मरण-पीयूष
बितरि चित्तहारिणी,
कळिकाळगत      सकळ पातक
तापराशि करे बिनाश,
एहा आपणार     आभरण साजि
        हृदे कर दया प्रकाश ()
*
[श्लोक-: रचय कुचयोः पत्रं]
*
बिरचना कर     मो कुचबेनिरे
पत्राबळी,
गण्ड-य़ुगळे        मण्डित कर
चित्राबळी
मञ्जुमेखळा खञ्जिदिअ मो जघने,
सुगन्धमाळा      पिन्धाइ केश-
बन्ध सजाअ य़तने
करय़ुगे कर       चारु कङ्कण
अळङ्कृत,
कर मो य़ुग्म      पयरे नूपुर
  सज्जीभूत
प्रियतमा राधा- बचने एपरि
प्रीत हृदयरे   पीतबास हरि
समुचित रूपे तत्पर,
   बेश बिरचिले सुन्दर
*
[श्लोक-: यद्गान्धवकलासु कौशल]
*
सङ्गीत सह       बिबिध कळारे
य़ेते निपुणता रहिअछि,
बिष्णु बिषये        धिआन भक्ति
चिन्तन अछि य़ाहा किछि
अछि शृङ्गार-       रस-बिषयक
तत्त्वर य़ेते बिबेचना,
काव्यराजिरे       य़ेते रहिअछि
भाबलीळा आदि बर्णना
सेहि समस्त  बस्तुमान,
गीतगोबिन्दे बिद्यमान
एहि काव्यरु         बिबुधबृन्द
हृदयङ्गम करि,
स्वगुण शुद्धि        करन्तु निजे
मने आनन्द भरि
प्रभु कृष्णरे         एकाग्र भाबे
कराइ निजकु मज्जित,
बिरचिले गीति-   काव्य रुचिर
    जयदेब कबि पण्डित
*
[श्लोक-: साध्वी माध्वीक ! चिन्ता]
*
मधुरसभरा      मदिरा गो ! तुम
बिषयरे,
आउ उत्तमचिन्ता आसे चित्तरे
आगो शर्करा ! तुमे परा,
होइल एणिकि कर्करा
द्राक्षा ! तुमकु       आदरे के आउ
निरीक्षण करिबे ?
अमृत हे ! तुमे
मृत होइगल एबे
नीर हेल एबे क्षीर हे !
स्वाद तुम आउ  रहे
माकन्द ! तुमे कान्दुथाअ बिकळे,
प्रेयसी-अधर ! चालिय़ाअ रसातळे
य़ेतेकाळ य़ाए        जयदेबङ्क
हृद्यगान
लळित मधुर पद्यमान,
चउदिगे होइ बिद्यमान
शृङ्गारभरा        भाबराशिकि
भबे करुथिब सद्य दान
*
[श्लोक-१० : श्रीभोजदेव-प्रभवस्य]
*
भोजदेब य़ार   पूज्य पिअर,
माता बामादेबी बन्द्य य़ार,
सेहि जयदेब        कबि बिरचिले
गीतगोबिन्द  काव्यसार
पराशर आदि           मित्रगणर
मधुर कण्ठ सुस्वरे,
प्रसारित हेउ    गीतिकाव्य-
प्रतिभा सकळ बिश्वरे
* * *
शिरीजयदेब कबि-बिरचित
गीतगोबिन्द  काव्य बिदित,
द्वादश सर्ग          समापत हेला
नामसुप्रीत-पीताम्बर’,
श्रीहरेकृष्ण          मेहेर रचिले
मधुर ओड़िआ भाषान्तर
प्रकृति-रूपिणी राधा सुन्दरी,
पुरुष-रूप से गोबिन्द हरि
उभयङ्कर      लीळामय गाथा
आदिरसभरे बर्ण्णिता,
एथि समुदाय        द्वादश सर्गे
काव्य लभिला पूर्ण्णता
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* गीतगोविन्द द्वादश सर्ग सम्पूर्ण *
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कवि-जयदेव-कृत श्रीगीतगोविन्द काव्यर
श्रीहरेकृष्ण-मेहेर-कृत ओड़िआ पद्यानुवाद सम्पूर्ण 
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(अनुवाद-समय : २०११, भवानीपाटना)
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