Tuesday, October 18, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-11 : Odia Version: Dr.Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
*
Link:
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत गीतगोविन्द काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवादडॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-11 : Sananda-Govinda)
*
गीतगोविन्द : एकादश सर्ग
(सानन्द-गोविन्द)
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[श्लोक-: सुचिरमनुनयेन]
*
बहुबेळ य़ाए    नाना अनुनय-
बाणी माध्यमे भाब भरि,
हरिणनयनी       प्रणयनीङ्कि
प्रीत कराइले प्रियहरि
चळिगले तहुँ      चारु निकुञ्ज-
शय़्या पाशे,
बिभूषित कले    निजकु मोहन
रम्य बेशे
एणे राधाङ्क      हृदयरु सारा
अबसाद हेला दूर,
मञ्जु भूषणे        थिला सज्जित
ताङ्करि कळेबर
लोचन लुचाए       अन्धारभरा
सन्ध्यासमय सुमधुर,
एतेबेळे जणे  सजनी बोइले
राधिका-आगरे एइ गिर
*
[गीत-: विरचित-चाटुवचन]
*
मुग्धे राधिके ! प्रेमबिधिरे,
अभिसार कर मधुअरिङ्क सन्निधिरे
तुम आगे से      प्रकाशिछन्ति
केते चाटुबाणी बिमोहन,
तुमरि पादरे     प्रणमि आदरे
करिअछन्ति निबेदन
एबे मञ्जुळ      बेतस-कुञ्जे
केळि-शय़्यारे उपगत,
प्रियकान्त से      तुम एकान्त
अनुगत ()
*
बहिछ राधिके ! सुन्दर
बिपुळ जघन-    भार सङ्गते
उन्नत पीन पयोधर
सुकुमार निज    पयर चळाइ
धीर धीर,
पराजित कर
गति-माधुरीकि हंसीर
प्रियपाशे आपणार,
कर मुदे अभिसार
रमणीय मणि-नूपुर,
सखि गो ! तुमरि   चरणरे हेउ
रुणुझुणु करि मुखर ()
*
शुण रसबति !    युबतीगणर
बिमोहन,
मुरारिङ्कर रम्य मुरली-निस्वन
से बजान्ति रसभरे,
सुमधुर लागे कर्ण्णरे
कोमळ कुसुम-कमाणधर
कमनीय-रूप  कामदेबर
प्रेम-सन्देश       कोकिळबृन्द
करुअछन्ति गान
एमानङ्कर    पाशे भाब कर
     सुन्दरि ! तेजि मान ()
*
सजनि ! तुमरि
बेनि ऊरु गज-शुण्डर,
शोभाकु आहरि
दिशे अतिशय सुन्दर
बाते दोळायित    मृदु पल्लब-
हस्त चळाइ आपणा,
बल्लरीगण          देउअछन्ति
सतेबा तुमकु प्रेरणा
आगेइ चाल गो !
बल्लभ पाशे निजर,
अम्बुज-मुखि !
      आउ बिळम्ब कर ()
*
मनोहारी हार    शोभापाए य़हिँ
निर्मळ नीरधार रूपरे,
सखि ! एइ तुम         उन्नत कुच-
कळस बेनिकि पचार थरे
सते अबा से त   मार-ऊर्मिरे
कम्पित होइ  सूचाउछि धीरे,
सत्वरे प्रिय मधुसूदन
       करिबे तुमकु आलिङ्गन ()
*
करिबा अर्थे एबे अनङ्ग-संग्राम,
प्रस्तुत होइ   अछि शुभाङ्गि !
तनु तुम्भरि अभिराम
सखीसमाजरे गोचर,
होइछि कथा तुमर
चण्डि गो ! तुमे    सरसे मेखळा-
नाद-डिण्डिम बजाइ,
उत्साहभरे          अभिसार कर
मनरु लज्जा हजाइ ()
*
मन्मथ-बाण      पराये तीक्ष्ण
सुन्दर नखे शोभित,
तुम करे एइ     सखीकि आश्रि
चरण बढ़ाअ तुरित
मनोरम लीळा सहकारे,
गमन कर गो ! अभिसारे
रुणुझुणु करि कर-कङ्कणे मधुनाद,
प्रिय-हरिङ्कि      जणाइदिअ गो !
आपणा गमन संबाद ()
*
कबिबर शिरी       जयदेबङ्क
बिरचित एइ गीत आगे
सुमधुर गान-अनुरागे,
मोहिनी रमणी    प्रति उदासीन
भाबना जागे,
गळारे गृहीत      मुक्ताहार बि
मळिन लागे
श्रीहरि-रसरे     मज्जित मन
य़ाहाङ्कर,
गीत ताङ्क     कण्ठे बिराजु
     निरन्तर ()
*
[श्लोक-: सा मां द्रक्ष्यति वक्ष्यति]
*
प्रेमभरे मोते      प्रिया निरेखिबे
करि कुञ्जे आगमन,
मन्मथ-कथा करिबे सरसे बर्ण्णन
करि से मोहरि     अङ्गे अङ्गे
आलिङ्गन,
केते आनन्दे हेबे मगन
सुरति-बिळासे मज्जित,
होइ प्रियतमा     करिबे चित्त
प्रमुदित
एभळि उङ्कि अनेक भाबना ताङ्करि,
देब उद्बेग हृदे भरि
करिबे तुमरि रम्यरूप से दर्शन,
तनुरे ताङ्क सञ्चरिय़िब कम्पन
देहे रोमाञ्च जागिब,
मन आनन्द लभिब
घर्म-जळरे जरजर,
हेब ताङ्करि कळेबर
तुमे निकुञ्जे       आसिअछ बोलि
करिबा अर्थे सुआगत,
हेबे से दुआरे उपगत
तुमकु पाइ मूर्च्छित
हेउथिबे प्रिय निश्चित
तिमिर-पुञ्ज गहन,
व्यापि रहिथिब       तहिँ मञ्जुळ
केळि-निकुञ्ज--सदन
*
[श्लोक-: अक्ष्णोर्निक्षिपदञ्जनं]
*
केळि अभिसारे    केते चळन्ति
चञ्चळ सुनिपुण,
मदने आर्त्त धूर्त्त नायिकागण
चतुर्दिगरे          सारा निकुञ्ज
घेरा एते घोर अन्धकारे,
सखि गो ! चित्ते    प्रतीत हुअइ
परकारे
प्रति अङ्गरे       सेहि अङ्गना
मानङ्कु सते आलिङ्गन,
करे अन्धार सान्द्र घन
कज्जळ साजि        सज्जित करे
बेनि नयन,
कर्ण्णरे नीळ       बर्ण्ण तमाळ
गुच्छमान
सुनीळ कमळ    माळिका सुरुचि
मस्तकरे,
कस्तूरिकार          चित्र बिरचे
बक्षोजरे
नीळ रङ्गर       परिधान परि
अन्धकार सुन्दर,
निशीथबेळारे    आबोरिथाए से
अबळाङ्कर कळेबर
*
[श्लोक-: काश्मीर-गौर-वपुषां]
*
कुङ्कुम सम        गौर-बरणा
नागरीगण,
अभिसार बेळे     रचिथाआन्ति
नाना भूषण
ताङ्करि मणि-अळङ्कार
प्रकाशे दीप्ति चमत्कार
तमाळ-पुष्पदळ परि नीळबरन,
दिशे परा एइ घन अन्धार शोभन
प्रेमरूप हेम-परीक्षक तिमिर,
श्यामळ निकष-रूप बहिअछि रुचिर
घर्षण कले      कषटि पथरे
य़ाएटि देखा,
बिकाशि कान्ति चमके शुद्ध स्वर्णरेखा
*
[श्लोक-: हारावली-तरल-काञ्चन]
*
गळे मोतिहार कमनीय,
मेखळासूत्र सुबर्णमय रमणीय ।
बाहुरे शोभित केयूर,
कर-कङ्कण रुचिर
एइ समस्त         मणिभूषणर
दीप्ति आहरि समुज्ज्वळ,
दिशुथिला सेइ     केळिनिकुञ्ज
सुमञ्जुळ
प्रिय-हरिङ्कि सादर अनाइँ से दुआरे,
प्रेयसी राधिका मज्जित हेले लज्जारे
सहचरी तहिँ  कथा जाणि,
व्यकत करिले       राधा-अग्रते
मधुर बाणी
*
[गीत-: मञ्जुतर-कुञ्जतल-केलि]
*
अति मञ्जुळ कुञ्ज-तळ,
केळिसदन सुनिर्मळ
भितरे प्रबेश     कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि     बिळासरे हुअ
निमज्जिता
सुरति-रसर आतुरता य़ोगुँ तुमरि,
मुख सुरम्य      दिशुअछि आगो !
      बिकाशि हास्य माधुरी ()
*
नव्य अशोक-किशळय-राजि-निर्मित,
मृदुळ शय़्या होइछि सदने प्रस्तुत
कम्पुछि आगो !    तुमरि उच्च
उरज-कळस बेनि,
तहिँ मणिहार    दोळित हेउछि
चञ्चळ गति घेनि
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि    बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
तुमे गो सुमन    सम सुकुमार
कळेबरा,
बिमळ कुञ्ज-      सदन एकाळे
शोभाभरा
सुबास कुसुम बिञ्चित नाना प्रकार,
शृङ्गारमय  आगार
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि     बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
शृङ्गार केळिरस अनुकूळ मधुर,
गायनरे तुमे        सखि गो ! एकाळे
होइअछ केते बिभोर
बहिबारु धीरे
मृदुळ मळय पबन,
भरा सुरभिरे
सुशीतळ एहि सदन
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि    बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
बहिछ तुमे गो ! जघन पृथुळ,
एणु से अळस धीर-गतिशीळ
बिस्तृत बहु लतासमूहर नूतन
कोमळ पत्रे आच्छादित सदन
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि    बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
अनङ्ग-शरे सरस
भाबरे बिभोर एबे तुम्भर मानस
प्रसूनराजिर  मधुरस पाने
आनन्द-मने   मिळिन्दमाने
करन्ति मधु गुञ्जन,
नादे मुखरित सदन
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि    बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
सखि गो ! दन्त-      पन्ति तुमरि
सुमनोहर,
आपणा कान्ति     य़ोगे बिहिअछि
रमणीय रूप माणिक्यर
कोकिळपन्ति      करुअछन्ति
मञ्जुळ मधु कूजन,
से कळनादरे गुञ्जरित सदन
भितरे प्रबेश      कर गो राधिके !
सुसज्जिता,
हरि पाशे मिळि    बिळासरे हुअ
निमज्जिता ()
*
कबिराज शिरीजयदेबङ्क गीत,
श्रीमती पद्माबतीङ्क बहु
सौख्य बिधाने रचित
हे मुरारि नारायण !
कर शतशत कल्याण बितरण ()
*
[श्लोक-: त्वां चित्तेन चिरं]
*
तुमकु आपणा अन्तरे बहि निरत,
श्रान्त हेलेणि     कान्त अतीब
रतिबर-बाणे आरत
राधा गो ! तुमरि   सुधारसभरा
बिम्वाधर,
पान करिबाकु    अभिळाषी एबे
पीताम्बर
मुदे ताङ्करि        अङ्करे हुअ
शुभाळङ्कार बिमोहन,
सङ्कोचरे कि प्रयोजन ?
तुमरि रम्य          भूरुभङ्गीर
अळपमात्र सङ्केतरे,
क्रीत किङ्कर      परि सेबारत
हेबे से पयर-पङ्कजरे
*
[श्लोक-: सा ससाध्वस-सानन्दं]
*
राधिका-हृदय एकाळे शङ्का-आकुळ,
पुणि आनन्दे बिभोळ
तृष्णापूरित ताङ्क युगळ नयन,
हेब बोलि प्रिय-कृष्ण सहित मिळन
पयर-य़ुग्मे नूपुर
रुणुझुणु करि मधुर,
प्रबेशिले तहुँ    राधा सुन्दरी
धीरे धीरे,
कुञ्ज-सदन मध्यरे
*
[गीत-: राधावदन-विलोकन]
*
राधा कले अबलोकन,
बिराजिछन्ति       कान्त केशब
सुपरसन्न बदन
झलसि रहिछि मुखे आनन्द अपार,
बहिअछन्ति        कन्दरपर
सुन्दर रूप आकार
बहुदिनुँ प्रिया सङ्गरे,
मज्जिबा पाइँ    कामना जागिछि
अनङ्ग-केळिरङ्गरे
प्रियतमाङ्क      दरशने हरि-
हृदयरे नाना प्रकार,
जाग्रत हेला       सरागे प्रबळ
मन्मथभाब बिकार
पूर्णिमा-कळा-     निधि दरशने
प्रसारि उच्च लहरी,
चपळ मुदित        सिन्धु पराय
    शोभिले सेकाळे श्रीहरि ()
*
ताङ्करि उर प्रदेशे,
अतीब बिमळ     तरळ मुक्ता
हार लम्बिछि सुबेशे
य़मुनार नीर प्रबाहरे,
बिमळ शुभ्र      भासमान फेन
पुञ्ज य़ेपरि मन हरे ()
*
श्यामळ कोमळ   तनु दिशुअछि
केड़े शोभन,
तहिँ परिधान       करिअछन्ति
पीत बसन
मूळ य़ार पीत      परागपुञ्ज-
सम्भारे परिबेष्टित,
एपरि रम्य        नीळारबिन्द
         सम गोबिन्द सुशोभित ()
*
बेनि लोचनरे चञ्चळ,
चारु अपाङ्ग-     भङ्गीकि घेनि
शोभुअछि मुख उज्ज्वळ
करुछि से राधा-हृदयगत,
मन्मथ-राग  उद्दीपित
बिराजित हरि मनोहर,
शरद ऋतुरे      य़था निर्मळ
सरोबर
य़हिँ बिकशित    नीळ उत्पळ
मध्यरे रहि चपळ,
खेळा करन्ति खञ्जन खगयुगळ ()
*
बिकाशिबा पाइँ     केशबङ्कर
मुख-पङ्कज उज्ज्वळ,
सूर्य़्य पराय       प्रते हेउथिला
श्रबणर बेनि कुण्डळ
मन्दहासर       दीप्तिकि लभि
समुद्भासित सुन्दर,
अधर-पत्र ताङ्कर
करुथिला तहिँ राधिका-हृदये बाञ्छित,
सुरति-लाळसा बर्द्धित ()
*
बिबिध पुष्पे      बिभूषित थिला
कुन्तळ नीळ बरण,
बारिद य़ेभळि      शोभे कळेबरे
बाजिले चन्द्रकिरण
भाले चन्दन-      बिन्दु तिळक
दिशुथिला केड़े निर्मळ,
घन अन्धार         मध्ये उदित
    य़ेपरि इन्दु-मण्डळ ()
*
प्रिया राधाङ्क दरशने,
जागिला ताङ्क     घन रोमाञ्च
अपघने
सङ्गे सुरतिकेळिर,
बिबिध कळारे    मज्जिबा लागि
मन हेउथाए अधीर
नानाबिध मणि-रश्मिराशिरे भास्वर,
आभरण य़ोगे      तनु हरिङ्क
     दिशुथिला बहु सुन्दर ()
*
कबि जयदेब-   बिरचित बाणी
बैभब य़ोगुँ य़ाहाङ्कर,
बर्द्धित होइ       अछि बेनिगुण
शुभाळङ्कार सुसम्भार
सकळ पुण्य-उदयर,
से अमूल्य सार अटन्ति बिश्वर
सेहि बरेण्य      हरिङ्कि बहि
चिरकाळ निज हृदे,
भक्तगण हे !     प्रणति जणाअ
ताङ्क चरणे मुदे ()
*
[श्लोक-: अतिक्रम्यापाङ्गं श्रवण]
*
प्रियतमङ्क मङ्गळमय दरशने,
प्रिय-बल्लभी       बहु उल्लास
लभिले आपणा सुनयने
करि अपाङ्ग अतिक्रम,
श्रुतिपथ य़ाए      प्रसरिबा लागि
आचरिबा हेतु परिश्रम
सते बा पतित      हेला राधाङ्क
नयन य़ुगळ बिस्फारित,
तरळ-तारका-परिशोभित
बहे य़ेउँपरि स्वेद-जळ,
तहुँ अजस्र           प्रमोद-अश्रु
झरिला आबेगे अबिरळ
*
[श्लोक-: भजन्त्यास्तल्पान्तं कृत]
*
राधा उत्सुक अन्तरे
उभा हुअन्ते कोमळ शय़्याप्रान्तरे,
सहचरीगण       आपणा कर्ण्ण-
कण्डु हेबार छळनारे
दरहास चापि बदनरे,
सेइ निकुञ्ज-गृहरु बाहारि जाणिजाणि,
प्रस्थान कले तक्षणि
मन्मथशर-आबेगरे भरा शोभन
प्रिय-बदनकु चाहिँलामात्रे बहन,
हरिणनेत्री राधिकाङ्कर हृद्गता,
लज्जा सते बा       पळाइला दूरे
होइ निजे तहिँ लज्जिता  
* * *
जयदेब कबि     लेखिले काव्य
गीतगोबिन्द सुधारस,
पूर्ण्ण होइला       एठारे सर्ग
एकादश
नामसानन्द-गोविन्दबोलि परिचित,
ओड़िआ पद्य   अनुबाद हरे-
कृष्ण-मेहेर-बिरचित
= = = = =

* गीतगोविन्द एकादश सर्ग सम्पूर्ण *
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