Friday, October 14, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-3 : Odia Version by Dr.Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
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Link:
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत गीतगोविन्द काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवादडॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-3 : Mugdha-Madhusudana)
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गीतगोविन्द : तृतीय सर्ग
(मुग्ध-मधुसूदन)
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[श्लोक-: कंसारिरपि संसार-वासना]
*
संसार-बासनार बन्धन-कारण
शाङ्कुळि-रूपा     प्रिया राधाङ्कु
हृदयरे करि धारण
कंसासुरर ध्वंसकारक श्रीहरि,
बरजिले तहिँ सर्ब बरज-नागरी
*
[श्लोक-: इतस्ततस्तामनुसृत्य]
*
प्रिया राधाङ्कु खोजिखोजि एणेतेणे,
कष्ट पाइले माधब कुञ्ज-बणे
कामशर-घाते जर्जर निज मानस,
केते अनुताप कले अन्तरे बिरस
तहुँ पहञ्चि    य़मुना कूळर
केळि-निकुञ्ज- सदन,
बिषादे मज्जिरहिले से मधुसूदन
*
[गीत-: मामियं चलिता विलोक्य]
*
बरज-कामिनी-   गणर गहणे
मोते हेरि,
चालिगले राधा सुन्दरी
बिचारि निजकु अपराधी मुहिँ दारुण,
अतिशय भये     तहिँ प्रियाङ्कु
करि पारिलि बारण
हाय ! हाय ! अति कोपे परा,
चालिगले प्रिया   आपणाकु मणि
हतादरा ()
*
बिरह-बिधुरा राधा एबे,
कि करुथिबे से   सखी आगे किस
कहुथिबे ?
य़ेते अछि धन जन गृह सुख अर्जन,
ताङ्करि बिना   सबुरे कि मो
प्रयोजन ? ()
*
भाबुअछि मुहिँ   कोपे होइथिब
लोहित बदन ताङ्क,
भ्रूकुटि तहिँरे थिबटि कुटिळ बाङ्क
बाते दोळायित रक्त-कमळ उपरे,
भ्रमरपन्ति भ्रमुथाए य़ेउँरूपरे ()
*
ताङ्कु निरते हृदये करिछि धारण,
प्रेमे बारबार कराउछि मुहिँ रमण
किलागि ताङ्कु   खोजुछि बिजन
बन मध्यरे तेबे ?
बृथारे किम्पा बिळाप करुछि एबे ? ()
*
कृशतनु प्रियेबिचारुछि मुहिँ
एकाळे तुमरि अन्तर,
असूया-बशरे जर्जर
जाणिनाहिँ सखिअभिमाने चालि
गल काहिँ,
तेणु तुमपाशे     अनुनय करि
पारुनाहिँ ()
*
अग्रते मोर     तुमे अबश्य
दृश्यमान,
तुमे गतागत    करुछ मोहरि
सन्निधान
पूर्ब पराये मोते बारे,
कर किलागि     प्रेमालिङ्गन
बिळासभङ्गी सहकारे ? ()
*
अपराध मोर   क्षमा कर राधा
सुन्दरि !
तुमठारे आउ   करिबिनि केबे
एहिपरि
पञ्चबाणरे       लाञ्छित एबे
मोर मन,
प्रियतमे दिअ दर्शन ’ ()
*
ग्राम रहिअछि केन्दुबिल्व नाम,
सिन्धु से अभिराम
तहिँ सम्भूत जयदेब कबिबर,
चन्द्रमा कळाकर
प्रिय-हरिङ्क    बिळाप-गीत
सरस गिरे,
बर्ण्णना कले     कबि सुभक्ति-
नम्र शिरे ()
*
[श्लोक-: हृदि विसलता-हारो]
*
आहे अनङ्गक्रोधरे पुष्प-
धनु धरि,
रिपु भाबि मोते  धाइँ आसुअछ
केउँपरि ?
हरिबोलि सिना नाम मोहर,
बास्तबरे नुहेँ मुँहर
लम्बि रहिछि      हृदयरे मोर
पद्म-नाड़र हार,
दर्पक ! नुहइ सर्पबर
कण्ठदेशे मो     प्रसरिछि नीळ
सरोज-दळर शोभा,
नुहे से गरळ-आभा
मो देहरे एत   रहिछि तापित
चन्दन-लेप शुष्क रेणु,
नुहइ बिभूति भस्म तेणु
हर प्रसिद्ध जगते अर्द्धनारीश्वर,
प्रेयसी राधिका-   बिरहे बाधित
मो कळेबर
तुमे शङ्कर-भ्रमे शङ्कित हे मार !
शर मो शरीरे
कर नाहिँ आउ प्रहार
*
[श्लोक-: पाणौ मा कुरु चूत]
*
आहे मन्मथ ! रतिरमण !
कर नाहिँ करे    आम्र-मुकुळ-
शर धारण
यदिबा करुछ हस्तगत,
तेबे कर नाहिँ  आपणा धनुरे
संय़ोजित
परास्त करि        अछ समस्त
जगतकु हेळे महिमारे,
कि बा पौरुष    एबे मूर्च्छित
जनकु प्रहार करिबारे ?
प्रणयिनी मृग- नयनी नायिका
राधाङ्कर,
कामदोळायित      कटाक्ष-शर
दुर्निबार
ताहारि बिषम   ज्वाळारे दग्
स्वान्त मोहर सन्तापित,
तिळे सुस्थता लभिपारिनाहिँ अद्यापि
*
[श्लोक-: भ्रूचापे निहितः कटाक्ष]
*
भीरु गो ! तुमर
भूरु-कार्मुके खचित,
कटाक्ष-शर
करु मो मर्म आहत
कृष्णबरण तब कुञ्चित अळका,
मोते बधिबार उद्यम करु राधिका !
रागरञ्जित बिम्बाधर तुमर,
जन्माउ पछे        मोह चित्तरे
नाहिँ आपत्ति मोहर
तुम सुचरित बर्त्तुळ कुच-मण्डळ,
काहिँकि मोहरि    प्राण सङ्गते
खेळा करुअछि चञ्चळ ?
*
[श्लोक-: तानि स्पर्शसुखानि ते]
*
मुहिँ अनुभब     करुछि ताङ्क-
शरीर-परश-हरष,
दर्शन करु       अछि नेत्रर
चपळ भङ्गी सरस
आघ्राण मुहिँ    करुछि बदन-
पद्म-सुरभि प्रियङ्कर,
श्रबण करुछि      आहुरि ताङ्क
अमियमय से बक्र गिर
करुछि ताङ्-       बिम्ब-अधरु
सुमधुर रस आस्वादन,
मोहरि पञ्च        इन्द्रिय-गण
सुख आहरणे संलगन
मानस मो एहि प्रकार,
एकाग्रभाबे     प्रियरे मज्जि
लभे आनन्द अपार
कलेबि एरूपे समस्त उपभोग,
किभळि बृद्धि   लभुअछि आहा !
मोहरि बिरह-रोग ?
*
[श्लोक-: भ्रूपल्लवं धनुरपाङ्ग-]
*
कामिनीङ्कर     भूरु-पल्लब
कम्य काम-कमाण,
तरङ्गायित    चारु अपाङ्ग-
भङ्गी अटइ बाण
तहिँ आकर्ण्ण     बिस्तार-रूप
धनुगुण अछि दुर्बार
एइ समस्त       अस्त्रबळरे
परास्त सारा संसार
मो उपरे ताहा  प्रहारि सहसा
बिजय करिबा इच्छारे,
बीर दर्पक        अर्पिछि सते
जङ्गम-देबी राधाठारे
                                                          * * *
गीतगोबिन्द सुन्दर,
रचिले सरसे    शिरी-जयदेब
कबिबर
तृतीय सर्ग हेला एथि समापन,
बहिअछि नाममुग्ध-मधुसूदन
ओड़िआ भाषारे पद्यानुबाद एहार,
हरषे रचिले श्रीहरेकृष्ण-मेहेर
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* गीतगोविन्द तृतीय सर्ग सम्पूर्ण *

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