Saturday, October 15, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-9 : Odia Version: Dr. Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
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Link:
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत गीतगोविन्द काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवादडॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-9 : Mugdha-Mukunda)
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गीतगोविन्द : नवम सर्ग
(मुग्ध-मुकुन्द)
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[श्लो-: तामथ मन्मथ-खिन्नां]
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कृष्णे बिदा  देलापरे तहुँ
सुरति-रसरु राधा,
बञ्चिता हेले   लभिले हृदये -
पञ्चशरर बाधा
बिषादित मने      हरिङ्क छळ
व्यबहार,
चिन्ता कले से बारबार
एपरि कळह-   अन्तरिता से
राधिकाङ्कर सम्मुखरे,
प्रि-सहचरी     बचन भाषिले
एकान्तरे
*
[गीत-: हरिरभिसरति हति]
*
देख गो राधिके ! धीर धीर
मळ मरुत बहुअछि केते सुन्दर
रचिअछन्ति अभिसार हरि कुञ्जरे,
ताङ्कु बरजि         न्य अधिक
कि सुख पाइब निज घरे ?
मानिनि गो ! हरि प्रि तुमर,
ताङ्क निकटे      मने अभिमान
आउ कर ()
*
ताळफळरु बि शोभे अतिशरसभर,
गुरु बर्त्तुळ उरज-कळश तुम्भर
सुन्दर एइ य़ुगळ,
काहिँपाइँ तुमे    करुछ एहाकु
बिफळ ? ()
*
प्रिहरिङ्क सुगुण,
बखाणिछि तुम    आगे बारबार
किन्तु तुमे शुण
अतिरमणी प्रितम तुम निश्चित,
ताङ्कु तेजिबा अनुचित ()
*
काहिँकि करुछ
बिषादित मन निजर ?
व्याकुळे किलागि
रोदन करुछ आबर ?
निरेखि तुमर आचरण,
उपहास केते       करुअछन्ति
तरुणीगण ()
*
नीर-सिञ्चित  नीरज-दळरे
रचित कोमळ  शय्य़ा उपरे
दरशन कर हरिङ्कर,
नेत्रयुगळ सार्थ कर ()
*
मानसे किलागि कष्टभार,
जगाउछ तुमे बारम्बा ?
बृथा अभिमान तुम बिरहर कारण,
एणु सुन्दरि !   कर एबे मोर
हितबाणी धीरे श्रबण ()
*
हरि करन्तु      गमन तुमरि
सन्निधिरे,
सम्भाषण से     करन्तु नाना
मधुर गिरे
काहिँपाइँ निज हृदय,
बिरह-दुःखे करुछ दग्ध अथ? ()
*
कबि देब-रचित
श्रीहरिङ्कर अति सुन्दर चरित
देउ आनन्द रसभर,
हृदये रसिकबृन्दर ()
*
[श्लोक-: स्निग्धे यत् परुषासि]
*
सेनेह कले से  तुमे कर्कश
आचरिल,
प्रणति कले से   तुमे निश्चळ
रहिगल
अनुरागभरा  कहिले से केते
मधु कथा,
द्वेष कल तुमे प्रकाशि बिराग सर्बथा
तुम तोष पाइँ उन्मुख हेले हरि,
बिमुख होइल तुमे तहिँ अपसरि
आगो सुन्दरि !   आचरिल सबु
बिपरीत,
कर्मफळ समुचित
एलागि तुमकु चन्दन लागे गरळ,
शीतळ चन्द्र लागे खरांशु प्रबळ
तुषार लागुछि   हुताशन य़ेणु
हरिपाशे तुमे बिमना,
केळि-आनन्द लागुछि तीब्र बेदना
                                                         * * *
गीतगोविन्द काव्य रस-बैभब,
बिरचिले मुदे  कबिबर शिरी
देब
नबम सर्ग हेला इति,
लभिछि मुग्-मुकुन्दनामे परिचिति
म्य ओड़िआ      द्यरूपरे
अनुबाद कले एहार,
श्रीहरेकृष्ण मेहेर

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* गीतगोविन्द नवम सर्ग सम्पूर्ण *
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