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Tuesday, November 10, 2009

प्रिय-मिलन * Priya-Milan (Hindi Poem): Dr. Harekrishna Meher

प्रिय-मिलन 
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर 
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प्रियतम के साथ
जब निश्‍चित रूप से
होता है मेरा मिलन,
तब मेरे लिये
मुझे कम लगता है
सुखमय स्वर्ग-भुवन ॥
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मन का वृक्ष जब
उत्कण्ठा से विचलित था,
मेरा कोमल चञ्चल
धीरज-पल्लव टूट गया सर्वथा ॥
*
प्रियतम की अनुपस्थिति में
मेरी आँखें रातभर
प्रतीक्षा से बड़ी हो जाती थीं
अत्यन्त व्याकुल होकर ॥
*
कुमुदिनी प्रफुल्ल नहीं होती
चन्द्रमा के विरह से,
हृदय मेरा व्यथित हो उठता
प्रियतम के बिना वैसे ॥
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जब सुनाई पड़ी
कोयल की सुमधुर बोली,
तब लज्जा सहित विमोहित हो उठी
मेरी मौनता बड़ी भोली ॥
*
रोमाञ्चभरा मङ्गलमय सुरभित
शुभ्र मुस्कान-शोभित
प्रेम-पुष्प उन्हें
तब अर्पण कर दिया मैंने ॥"
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Ref : Aakhar-Kalash :
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Garimā Kavi Kī (गरिमा कवि की): Hindi Poem by Dr. Harekrishna Meher

Garimā Kavi Kī  (Hindi Poem)
By : Dr. Harekrishna Meher
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गरिमा कवि की 
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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विधाता से बढ़कर उसकी सृष्टि-रचना ;
भाती अद्‌भुत उसकी उद्‌भावना ।
गूंगे मुख से बहाता
वाणी-गंगा की अमृत-धार ।
पाषाण के अंगों में जगाता
मञ्जुल सञ्जीवनी अपार ॥

लेखनी में उसकी छा जाती
सहस्र सूर्य-रश्मियों की लालिमा ।
अंशुमाला उज्ज्वलता फैलाती ;
हट जाती तिमिर-पटल की कालिमा ॥

वही कवि तो है क्रान्तदर्शी,
सार्थक उसकी रचना मर्मस्पर्शी ।
अतीन्द्रिय अतिमानस के राज्यों में विहर
भाती उसकी प्रतिभा सुमनोहर ॥

रस-रंगों के संगम की तरंगों से,
जीवन की विश्वासभरी उमंगों से
लिखता रहता कवि निहार चहुँ ओर,
कभी मधुर सरस, कभी तीता कठोर ॥

उसकी कुसुम-सी कोमल कलम
जब करने लगती सर्जना,
निकलती कभी संगीत संग गूँज छमछम,
फिर कभी स्वर्गीय वज्रों की गर्जना ॥"
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Ref : Aakhar-Kalash :
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Thursday, April 24, 2008

बादल तू ही सुधा-जल तू ही (Devotional Hindi Song): Dr. Harekrishna Meher

भक्ति-गीत : बादल तू ही सुधा-जल तू ही
गीत एवं स्वर-रचना : डाहरेकृष्ण मेहेर
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Devotional Hindi Song 
Bādal Tū Hī Sudhā-Jal Tū Hī 
Lyrics and Tuning by : Dr. Harekrishna Meher
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बादल तू ही, सुधा-जल तू ही्,
शीतल तू ही, सुकोमल तू ही ।
प्रभु हे ! हरि तू ही हरे सब घाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (१)
*
अन्दर तू ही, उपेन्दर तू ही,
सुन्दर तू ही, समुन्दर तू ही ।
प्रभु हे ! तेरा रूप नयनाभिराम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (२)
*
निर्मल तू ही, समुज्ज्वल तू ही,
भक्त-आँखों का कज्जल तू ही ।
हरि हे ! तू ही सज्जन-शीश-ललाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (३)
*
भक्ति-सुधा का झरना बहे,
मन में रहे, ये रसना कहे ।
हरि हे ! सदा हरेकृष्ण हरेराम,
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (४)
*
इन्द्र-धनुषी सरगम तू ही,
जीवन-कला- सुसंगम तू ही ।
प्रभु हे ! तू ही ब्रह्म-नाद सुख-धाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (५)
*
ईश्वर तू ही, अनश्वर तू ही,
अम्बर तू ही, चराचर तू ही ।
प्रभु हे ! तुझे मेरा अनन्त प्रणाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (६)
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जग-निर्माता, तू ही विधाता,
सबसे है तेरा अनमोल नाता ।
हरि हे ! तू ही आदि मध्य परिणाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (७)
*
तुझे मैं चाहूँ , तुझको बुलाऊँ,
तेरे बिन कैसे शोक भुलाऊँ ?
प्रभु हे ! फिर कैसे रहूँ निष्काम ?
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (८)
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तेरे चरणों में खुशियाँ प्यारी,
तेरी माया है, ये दुनिया सारी ।
हरि हे ! ले भक्त-जनों को थाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (९)
*
जग में अकेला, तू ही निराला,
आनन्द-भरा सुबह का उजाला ।
प्रभु हे ! फिर तू ही शान्तिभरी शाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (१०)
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हर दुःख में भी, रहे सुख में भी,
हृदय में गूँजे, मेरे मुख में भी ।
हरि हे ! तेरा मंगलमय शुभ नाम ।
हरेराम घनश्याम, हरि हे श्रीराम ॥ (११)
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[Published in  'Sangeet', Music Magazine, 
September 2003, Geet-Gunjan Page-47,
Sangeet Karyalaya, Hathras, Uttar Pradesh, India.]
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Brief Biodata: 
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Wednesday, April 9, 2008

Hindi Devotional Song / नीलाचल-नायक हे !


My Hindi Devotional Song
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भक्ति-गीत : नीलाचल-नायक हे !
[गीत एवं स्वर-रचना : डा. हरेकृष्ण मेहेर ]


Nīlāchala- Nāyak He !
Lyrics and Tuning By : Dr. Harekrishna Meher
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नीलाचल-नायक हे !
जय पुरुषोत्तम ब्रह्म परम,
पुरी मन्दिर में तुम अनुपम ॥ (ध्रुव)
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लक्ष्मी-रमण हे श्रीजगन्नाथ !
भगिनी सुभद्रा बलराम साथ ।
भक्ति-सुमन की माला पहन,
तुम तो विराजित हो भगवन् ।
हे जगमोहन पतित-पावन
मन के मिटा दो सारे भरम ।
जय पुरुषोत्तम ब्रह्म परम ॥ [१]
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तुम तुलसी के रघुवर राम,
तुम चैतन्य के गिरिधर श्याम ।
रथ-यात्रा का शुभ अवकाश,
मन में जगाता दिव्य प्रकाश ।
चक्र-नयन के दर्शन करके
सफल हो जाये मेरा जनम ।
जय पुरुषोत्तम ब्रह्म परम ॥ [२]
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तुम करुणा के सिन्धु अपार,
दीन जनों के बन्धु उदार ।
नाम तुम्हारे हैं अनगिन,
और शरण नहीँ प्रभु तुम बिन ।
हे भूत-भावन पाप-विनाशन
कृपा करो हरि मैं हूँ अधम ।
जय पुरुषोत्तम ब्रह्म परम ॥ [३]

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[ Published in "Sangeet", Music Magazine,
September 2003, 'Geet-Gunjan' page-47.
Sangeet Karyalaya, Hathras, Uttar Pradesh, India.]
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