Amara Kabi (Oriya Poem)
By : Dr. Harekrishna Meher
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अमर कवि (ओड़िआ कविता)
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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लेखिय़ाए य़ेते अमर कबि,
अपूरुब भाब
By : Dr. Harekrishna Meher
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अमर कवि (ओड़िआ कविता)
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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लेखिय़ाए य़ेते अमर कबि,
अपूरुब भाब
जागि उठे मने
अनुपम तार दिव्य छबि ॥
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बिधातारु बळि
अनुपम तार दिव्य छबि ॥
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बिधातारु बळि
ताहारि सृष्टि
अद्भुत तार उद्भाबनी,
मूक-मुखे भाषा-
अद्भुत तार उद्भाबनी,
मूक-मुखे भाषा-
पीयूष झराए
पाषाण-अङ्गे सञ्जीबनी ॥
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काव्याकाशे ता
पाषाण-अङ्गे सञ्जीबनी ॥
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काव्याकाशे ता
बिकाशे नियत
बिमळ-बर्ण्ण बिबस्वान,
द्रबिय़ाए हेळे
बिमळ-बर्ण्ण बिबस्वान,
द्रबिय़ाए हेळे
कोटि तमिस्र
आसि हेले ताहा सन्निधान ॥
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अति-मानबर
आसि हेले ताहा सन्निधान ॥
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अति-मानबर
अति-मानसर
अतीन्द्रियर राष्ट्रपरे,
अबिरत सेइ
अतीन्द्रियर राष्ट्रपरे,
अबिरत सेइ
कबिर अमर
आत्मा बिहरे हर्षभरे ॥
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सहज शकति
आत्मा बिहरे हर्षभरे ॥
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सहज शकति
प्रतिभार बळे
क्रान्त-दरशी कबिर मन,
तार अनल्प
क्रान्त-दरशी कबिर मन,
तार अनल्प
शिल्प-कळारे
ए त आदर्श निदर्शन ॥
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से शकति घेनि
ए त आदर्श निदर्शन ॥
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से शकति घेनि
गढ़ि उठे तार
नब्य भब्य काब्य-कळा,
तेणु बरेण्य-
नब्य भब्य काब्य-कळा,
तेणु बरेण्य-
गणे से गण्य
कृति ता निरत पुण्य-फळा ॥
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जगते सत्य़
कृति ता निरत पुण्य-फळा ॥
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जगते सत्य़
शिब सुन्दर
उपासना करे रूपाङ्कने,
प्राणे भरिदिए
उपासना करे रूपाङ्कने,
प्राणे भरिदिए
पुलक-आलोक
सम्मोहि रस- उद्बेळने ॥
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लेखिय़ाए केते अमर कबि,
कुसुम- कोमळ
सम्मोहि रस- उद्बेळने ॥
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लेखिय़ाए केते अमर कबि,
कुसुम- कोमळ
लेखनीर मुने
निनादइ शत दिव्य़ पबि ॥
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निनादइ शत दिव्य़ पबि ॥
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(Included in ‘BANĀNĪ’, Anthology of Oriya Poems,
Published by Kalahandi Lekhak Kala Parishad,
Bhawanipatna, Orissa, India. 2009)
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1 comment:
I like your poem Very much sir.
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