मूलहिन्दीगीत : फूलों के रंग से, दिल की कलम से *
चलचित्र : प्रेम पुजारी (१९७०) *
गीतकार : नीरज *
सङ्गीतकार : सचिन देव बर्मन् *
गायक : किशोर कुमार *
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फूलों के रंग से, दिल की कलम से,
तुझको लिखी रोज पाती ।
कैसे बताऊं, किस किस तरह से
पल-पल मुझे तू सताती ।
तेरे ही सपने लेकर के सोया,
तेरी ही यादों में जागा ।
तेरे खयालों में उलझा रहा यूं
जैसै कि माला में धागा ।
हां, बादल-बिजली चन्दन-पानी
जैसा अपना प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।।
हां, इतना मदिर, इतना मधुर
तेरा मेरा प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।। (१)
*
सांसों की सरगम, धड़कन की बीना,
सपनों की गीताञ्जली तू ।
मन की गली में महके जो हरदम
ऐसी जूही की कली तू ।
छोटा सफर हो, लम्बा सफर हो,
सूनी डगर हो या मेला ।
याद तू आये मन हो जाये
भीड़ के बीच अकेला ।
हां, बादल-बिजली चन्दन-पानी
जैसा अपना प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।।
हां, इतना मदिर, इतना मधुर,
तेरा मेरा प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।। (२)
*
पूरब हो पश्चिम, उत्तर हो दक्षिण,
तू हर जगह मुस्कुराये ।
जितना ही जाऊं मैं दूर तुझसे
उतनी ही तू पास आये ।
आंधी ने रोका, पानी ने टोका,
दुनिया ने हंसकर पुकारा ।
तस्वीर तेरी लेकिन लिये मैं
कर आया सबसे किनारा ।
हां, बादल-बिजली चन्दन-पानी
जैसा अपना प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।।
हां, इतना मदिर, इतना मधुर,
तेरा मेरा प्यार ।
लेना होगा जनम हमें
कई कई बार ।। (३)
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मूलहिन्दीगीतम् : फूलों के रंग से दिल की कलम से *
(चलचित्रम् : प्रेम पुजारी)
मूलस्वरानुकूल-संस्कृतानुवादक: - डॉ. हरेकृष्ण-मेहेरः
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वर्णै: सुमानां हृदय-लेखन्या
लिखितं ते नित्यं हि पत्रम् ।
कीदृग् वदेयं किं-किं-प्रकारै:
दत्से सदा मे नु कष्टम् ।
स्वप्नान् तवैवं नीत्वा सुप्तोऽहम्,
स्मृत्यां प्रबुद्धस्तवैवम् ।
त्वद्-भावनायां निबद्धोऽहमित्थम्,
लग्नं यथा माल्ये सूत्रम् ।
आम्, मेघ-शम्पावत्, चन्दन-जलवत्,
नैजं प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जन्म निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।
आम्, इयद् हि रम्यम्, इयद् हि मधुरम्,
ते मे प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जन्म निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।। (१)
*
तान: श्वासानां स्पन्दस्य वीणा
स्वप्नानां गीताञ्जलिस्त्वम् ।
या स्वान्त-वीथ्यां नियतं सुगन्धा
एवं हि यूथी-कलिस्त्वम् ।
यात्रा नु लघ्वी, यात्रा नु दीर्घा
शून्यायनं यद् वाकीर्णम् ।
स्मृत्यामेषि त्वम्, चित्तं भवेद् मे
संमर्द-मध्ये निस्सङ्गम् ।
आम्, मेघ-शम्पावत्, चन्दन-जलवत्,
नैजं प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जननं निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।
आम्, इयद् हि रम्यम्, इयद् हि मधुरम्,
ते मे प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जन्म निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।। (२)
*
प्राची प्रतीची उदीच्यवाची,
सर्वत्र भासि स्मिता त्वम् ।
यावद् गच्छेयं त्वत्तो हि दूरम्,
तावत् त्वमायासि पार्श्वम् ।
वात्या सरोधा, तोयं सबाधम्,
जगदाह्वयद् वै सहासम् ।
किन्तु त्वहं ते नीत्वा सुचित्रम्,
आगच्छं हित्वा समस्तम् ।
आम्, मेघ-शम्पावत्, चन्दन-जलवत्,
नैजं प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जन्म निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।
आम्, इयद् हि रम्यम्, इयद् हि मधुरम्,
ते मे प्रेमेदम् ।
नेष्यावो नौ जन्म निश्चितम्,
मुहुर्मुहुस्स्वम् ।। (३)
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(Translated for popularisation and service to Sanskrit and the nation.)
* Translated in August 2023.
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‘Chalachitra-Gita-Sanskritaayanam’: चलचित्र-गीत-संस्कृतायनम् :
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