Garimā Kavi Kī (Hindi Poem)
By : Dr. Harekrishna Meher
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गरिमा कवि की
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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विधाता से बढ़कर उसकी सृष्टि-रचना ;
भाती अद्भुत उसकी उद्भावना ।
गूंगे मुख से बहाता
वाणी-गंगा की अमृत-धार ।
पाषाण के अंगों में जगाता
मञ्जुल सञ्जीवनी अपार ॥
लेखनी में उसकी छा जाती
सहस्र सूर्य-रश्मियों की लालिमा ।
अंशुमाला उज्ज्वलता फैलाती ;
हट जाती तिमिर-पटल की कालिमा ॥
वही कवि तो है क्रान्तदर्शी,
सार्थक उसकी रचना मर्मस्पर्शी ।
अतीन्द्रिय अतिमानस के राज्यों में विहर
भाती उसकी प्रतिभा सुमनोहर ॥
रस-रंगों के संगम की तरंगों से,
जीवन की विश्वासभरी उमंगों से
लिखता रहता कवि निहार चहुँ ओर,
कभी मधुर सरस, कभी तीता कठोर ॥
उसकी कुसुम-सी कोमल कलम
जब करने लगती सर्जना,
निकलती कभी संगीत संग गूँज छमछम,
फिर कभी स्वर्गीय वज्रों की गर्जना ॥"
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By : Dr. Harekrishna Meher
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गरिमा कवि की
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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विधाता से बढ़कर उसकी सृष्टि-रचना ;
भाती अद्भुत उसकी उद्भावना ।
गूंगे मुख से बहाता
वाणी-गंगा की अमृत-धार ।
पाषाण के अंगों में जगाता
मञ्जुल सञ्जीवनी अपार ॥
लेखनी में उसकी छा जाती
सहस्र सूर्य-रश्मियों की लालिमा ।
अंशुमाला उज्ज्वलता फैलाती ;
हट जाती तिमिर-पटल की कालिमा ॥
वही कवि तो है क्रान्तदर्शी,
सार्थक उसकी रचना मर्मस्पर्शी ।
अतीन्द्रिय अतिमानस के राज्यों में विहर
भाती उसकी प्रतिभा सुमनोहर ॥
रस-रंगों के संगम की तरंगों से,
जीवन की विश्वासभरी उमंगों से
लिखता रहता कवि निहार चहुँ ओर,
कभी मधुर सरस, कभी तीता कठोर ॥
उसकी कुसुम-सी कोमल कलम
जब करने लगती सर्जना,
निकलती कभी संगीत संग गूँज छमछम,
फिर कभी स्वर्गीय वज्रों की गर्जना ॥"
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Ref : Aakhar-Kalash :
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