प्रिय-मिलन
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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प्रियतम के साथ
जब निश्चित रूप से
होता है मेरा मिलन,
तब मेरे लिये
मुझे कम लगता है
सुखमय स्वर्ग-भुवन ॥
*
मन का वृक्ष जब
उत्कण्ठा से विचलित था,
मेरा कोमल चञ्चल
धीरज-पल्लव टूट गया सर्वथा ॥
*
प्रियतम की अनुपस्थिति में
मेरी आँखें रातभर
प्रतीक्षा से बड़ी हो जाती थीं
अत्यन्त व्याकुल होकर ॥
*
कुमुदिनी प्रफुल्ल नहीं होती
चन्द्रमा के विरह से,
हृदय मेरा व्यथित हो उठता
प्रियतम के बिना वैसे ॥
*
जब सुनाई पड़ी
कोयल की सुमधुर बोली,
तब लज्जा सहित विमोहित हो उठी
मेरी मौनता बड़ी भोली ॥
*
रोमाञ्चभरा मङ्गलमय सुरभित
शुभ्र मुस्कान-शोभित
प्रेम-पुष्प उन्हें
तब अर्पण कर दिया मैंने ॥"
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Ref : Aakhar-Kalash :
रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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प्रियतम के साथ
जब निश्चित रूप से
होता है मेरा मिलन,
तब मेरे लिये
मुझे कम लगता है
सुखमय स्वर्ग-भुवन ॥
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मन का वृक्ष जब
उत्कण्ठा से विचलित था,
मेरा कोमल चञ्चल
धीरज-पल्लव टूट गया सर्वथा ॥
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प्रियतम की अनुपस्थिति में
मेरी आँखें रातभर
प्रतीक्षा से बड़ी हो जाती थीं
अत्यन्त व्याकुल होकर ॥
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कुमुदिनी प्रफुल्ल नहीं होती
चन्द्रमा के विरह से,
हृदय मेरा व्यथित हो उठता
प्रियतम के बिना वैसे ॥
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जब सुनाई पड़ी
कोयल की सुमधुर बोली,
तब लज्जा सहित विमोहित हो उठी
मेरी मौनता बड़ी भोली ॥
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रोमाञ्चभरा मङ्गलमय सुरभित
शुभ्र मुस्कान-शोभित
प्रेम-पुष्प उन्हें
तब अर्पण कर दिया मैंने ॥"
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Ref : Aakhar-Kalash :
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