Tuesday, January 19, 2010

Sanskrit Poem: Svara-Mangala-Vandana (स्वरमङ्गला-वन्दना): Dr.Harekrishna Meher

Svara-Mańgalā-Vandanā 
('Prayer to the Auspicious Goddess of Musical Tune')
Sanskrit Poem By : Dr. Harekrishna Meher  
= = = = = = = = = = 
स्वरमङ्गला-वन्दना 
* रचयिता : डॉ. हरेकृष्ण-मेहेरः 
= = = = = = = = = = = = = = = 

हे शारदे ! त्वं तमसां निहन्त्री
सद्‍बुद्धि-दात्री शशि-शुभ्र-गात्री ।
देवीं सुविद्या-प्रतिभामयीं त्वां
नमामि नित्यं वर-दान-हस्ताम् ॥ (१)
*
आयाहि मातः ! स्वर-मङ्गला त्वं
राजस्व कण्ठे ललितं मदीये ।
तनुष्व रूपं सुपरिप्रकाशं
रागं सरागं मधुरं प्रकामम् ॥ (२)
*
कान्तिस्त्वदीया हि समुज्ज्वलन्ती
खेदावसादं विनिवारयन्ती ।
स्वान्तारविन्दं कुरुते प्रफुल्लं
मातर्नमस्ते वितरानुकम्पाम् ॥ (३)
*
विजयतां सुकृतामनुरागिणी
रुचिर-राग-रुचा स्वर-भास्वती ।
सरस-मङ्गल-वर्ण-तरङ्गिणी
सुमधुरा सुभगा भुवि भारती ॥ (४)
*
विराजते विनोदिनी पवित्रतां वितन्वती ।
सुमङ्गलं ददातु नो विभास्वरा सरस्वती ॥ (५)   

= = = = = = = = = = =  

Related Links : 
Stavarchana-Stavakam (स्तवार्चन-स्तवकम्) :
* * *
Contributions of Dr. Harekrishna Meher to Sanskrit Literature:  
Link :
*
Translated Kavyas by : Dr.Harekrishna Meher :
Link :
= = = = =  

Saturday, January 2, 2010

नववर्षर सद्‌भावना (Nava-Varshara Sadbhāvanā): HKMeher

Nava-Varshara Sadbhāvanā
(Best Wishes for New Year)
Oriya poem by : Dr. Harekrishna Meher
= = = = = = = = = = = = = = = =

नववर्षर सद्‌भावना (ओड़िआ कविता)
रचना : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
(राग- शङ्कराभरण)
= = = = = = = = = = = = = =

स्वागत घेन सादर हे नब बरष !
बितर आशिष सर्ब हृदये हरष ।
दिअ नब उद्दीपना,
कर्त्तव्ये रत हु‍अन्तु सर्बे शुद्धमना ॥ (१)
*
काळचक्रर घूर्ण्णने समस्त जगत,
लभ‌इ परिबर्त्तन सत्य ए सतत ।
नब नब उद्‍भाबना,
जन-हिते हेउ रचि समृद्धि कामना ॥ (२)
*
उद्‍भासित हेउ हृदे दिव्य प्रेम-ज्योति,
मानबिकतार माळे भ्रातृभाब-मोति ।
हेउ चिर बिभ्राजित,
सदाचार य़ोगुँ सदा मनुष्य पूजित ॥ (३)
*
सर्ब मुखे हेउ शान्ति-मन्त्र उच्चारण,
देशात्मबोध- भावना लभु जागरण ।
दुःख य़ाउ अपसरि,
हृदय-सिन्धुरे खेळु आनन्द-लहरी ॥ (४)
*
हिंसा द्वेष ईर्ष्या द्वन्द्व दूर हेउ मनुँ,
उत्साह-तत्पर सुस्थ रहु सर्ब तनु ।
मन्द कर्म तेजि नरे,
हु‍अन्तु सुनियोजित मङ्गळ कर्मरे ॥ (५)
*
देशे देशे प्रतिष्ठित हेउ सुसम्पर्क,
सत्कर्मे प्रेरणा देउ सहस्रांशु अर्क ।
साम्य-आलोक बितरि,
परिबेश सन्तुळित रहिब य़ेपरि ॥ (६)
*
बन्य जन्तु पशु पक्षी सुरक्षित भाबे,
बितान्तु जीबन निज प्रबृत्ति स्वभाबे ।
जळे स्थळे नभे दूर,
हेउ नित्य मनुष्यर अत्याचार क्रूर ॥ (७)
*
हसि उठु तरु-लता प्रकृति-प्रसादे,
धन-धान्यभरा देश रहु अप्रमादे ।
मनुँ दूर हेउ भय,
सकळे रहन्तु सौख्यमय निरामय ॥ (८)
*
प्रकृति-मानब मध्ये शाश्‍वत सम्बन्ध,
अबिच्छिन्न रहु निति बितरि सुगन्ध ।
हेउ दुर्नीतिर क्षय,
सत्य धरम न्यायर सदा हेउ जय ॥ (९)
*
बिकाशु हृदे मनुष्य मङ्गळ लक्षण,
बिबेक-चक्षुरे करु आत्म-समीक्षण ।
जागतिक प्रगतिर,
सर्बभूते सद्‍भाबना चिन्तन आजिर ॥ (१०)
* *
= = = = = = = = = = =

Presented in 'Banānī Kavi Sammilanī'
and included in the Book “Banānī -2010” (Collection of Oriya Poems)
Published by : Kalahandi Lekhak Kala Parishad, Bhawanipatna,
On the occasion of New Year’s Day Celebration 2010.)

* * * *