शिव-ताण्डव-स्तोत्र /
ओड़िआ पद्यानुवाद : हरेकृष्ण मेहेर
*
'Siva-Tandava-Stotra' authored by Ravana is very popular in view of the devotional worship of the Auspicious God Siva in Indian culture. Observing the 'Tandava' Dance of Lord Siva, His devotee Ravana, the ten-headed demon-king of Lanka, is supposed to have composed the hymns of praise with gorgeous setting of words having heroic inspirations. This Stotra finds a place of prominence in delineating both theistic and literary values.
ओड़िआ पद्यानुवाद : हरेकृष्ण मेहेर
*
'Siva-Tandava-Stotra' authored by Ravana is very popular in view of the devotional worship of the Auspicious God Siva in Indian culture. Observing the 'Tandava' Dance of Lord Siva, His devotee Ravana, the ten-headed demon-king of Lanka, is supposed to have composed the hymns of praise with gorgeous setting of words having heroic inspirations. This Stotra finds a place of prominence in delineating both theistic and literary values.
The Sanskrit metres used in this Stotra are ‘Pañcha-Chāmaram’ (1 -14 verses)
and ‘Vasanta-Tilakam’ (15th verse).
and ‘Vasanta-Tilakam’ (15th verse).
*
The metrical Oriya Translation of this Stotra was done by me on 7th November 1977, while I was studying in Banaras Hindu University, Varanasi. Its First Edition was published in 1978 by Bani Bhandar, Berhampur, Orissa and later on several editions have seen the light of the day.
*My ORIYA TRANSLATION is presented here
along with the ORIGINAL SANSKRIT SLOKAS.
(For convenience in reading,
Oriya letters have been shown in Devanagari Script)
*
रावण-विरचितं शिव-ताण्डव-स्तोत्रम् /
ओड़िआ पद्य-रूपान्तर : हरेकृष्ण मेहेर
= = = = = = = = = = = = = = = = = =
[१]
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम् ।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनादवड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥
*
जटा-रूपी बनुँ बिनिःसृत गङ्गा-
निर्झरणे परिपूत,
कण्ठ-देशे निज लम्बाइ बिशाळ
सर्प-माळा अदभुत ।
डिबि डिबि डिबि डम्बरु बाइ य़े
कले प्रचण्ड ताण्डब,
निरते आम्भर कल्याण करन्तु
से प्रभु पार्बती-धब ॥ (१)
_ _ _ _ _ _ _
[२]
जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प-निर्झरी-
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराजमान-मूर्द्धनि ।
धगद्धगद्धग-ज्वलल्ललाट-पट्ट-पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥
*
जटाजूट रूपी कटाहरे बेगे
भ्रमित स्वर्ग-गङ्गार,
तरळ तरङ्ग- भङ्गीरे रुचिर
उत्तमाङ्ग शोहे य़ार ।
धक धक धक बह्नि जळुअछि
य़ार ललाट पटरे,
से चन्द्र-मउळि शिब ठारे मोर
मन रमु निरन्तरे ॥ (२)
_ _ _ _ _ _ _
[३]
धराधरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु-बन्धुर-
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोदमान-मानसे ।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्द्धरापदि
क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥
*
गिरीश-जेमार बिळास-बान्धब
शिरोमणिर भास्वती,
दीप्ति बळे दिग समुज्ज्वळ देखि
प्रसन्न सदा य़ा मति ।
य़ार कृपा-दृष्टि निबारण करे
अशेष बिपत्ति घोर,
एपरि कौणसि दिगम्बर तत्त्वे
मानस बिहरु मोर ॥ (३)
_ _ _ _ _ _ _
[४]
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्-फणा-मणि-प्रभा-
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे ।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्-त्वगुत्तरीय-मेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्त्तु भूत-भर्त्तरि ॥
*
जटाजूट-गत सर्पङ्कर फणा-
मणिर आभा पिङ्गळ,
दिगङ्गना-मुखे बोळिदिए सुखे
कुङ्कुम-लेप मङ्गळ ।
प्रमत्त हस्तीर दोळायित चर्म-
उत्तरीये स्निग्ध बर्ण,
भूतेश्वर ठारे अद्भुत भाबरे
बिनोद करु मो मन ॥ (४)
_ _ _ _ _ _ _
[५]
सहस्रलोचन-प्रभृत्यशेष-लेख-शेखर-
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधूसराङ्घ्रि-पीठ-भूः ।
भुजङ्गराज-मालया निबद्ध-जाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥
*
महेन्द्र प्रमुख देबता समस्त
प्रणाम कले बिनीत,
किरीटरु पुष्प- रेणु पाते य़ार
पाद-पीठ धूसरित ।
नागराज-हारे बिभूषित य़ार
जटाजूट परिसर,
चिर अइश्वर्य़्य दिअन्तु से प्रभु
शिब शशाङ्क-शेखर ॥ (५)
_ _ _ _ _ _ _
[६]
ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्ग-भा-
निपीत-पञ्चसायकं नमन्निलिम्प-नायकम् ।
सुधा-मयूख-लेखया विराजमान-शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः ॥
*
ललाट-अङ्गने ज्वळित अनळ-
स्फुलिङ्ग- तेजे किञ्चित,
पुष्पेषु कामकु भस्म करिछि य़े
सुरपति- सुपूजित ।
सुधामय चन्द्र- कळा- बिमण्डित
मुकुटरे शोभाबन,
बिराट- ललाट से शिब-मस्तक
हेउ ऐश्वर्य्य़- साधन ॥ (६)
_ _ _ _ _ _ _
[७]
कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्वलद्-
धनञ्जयाहुतीकृत-प्रचण्ड-पञ्चसायके ।
धराधरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्पनैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रति-र्मम ॥
*
कराळ ललाट- पटे धक धक
प्रकाशि अनळ द्युति,
परचण्ड बीर पञ्चशरकु य़े
ध्वंसिले करि आहुति ।
उमा-पयोधरे पत्र-भङ्गी पाइँ
चित्रकर एकमात्र,
त्रिनेत्र से प्रभु ठारे प्रीति लभु
मति मोर दिबारात्र ॥ (७)
_ _ _ _ _ _ _
[८]
नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्द्धर-स्फुरत्-
कुहू-निशीथिनी-तमःप्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः ।
निलिम्प-निर्झरीधरस्तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥
*
नब मेघमाळा- आच्छादित घोर
अमाबास्या त्रिय़ामार,
ब्यापक निबिड़ अन्धकार सम
श्यामबर्ण्ण कण्ठ य़ार ।
गज-चर्मधर देब बिश्वम्भर
चन्द्र-कान्ति-समुज्ज्वळ,
दिअन्तु से हर मन्दाकिनी-धर
सुख सम्पद मङ्गळ ॥ (८)
_ _ _ _ _ _ _
[९]
प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
बलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥
*
बिकशित नीळ राजीब-राजिर
श्यामळ प्रभा समान,
कळङ्क छबिरे सुचिह्नित य़ार
कण्ठ- देश राजमान ।
मदन- दाहक त्रिपुर- नाशक
भब-भय-निबारक,
ध्याये दक्ष-य़ज्ञ- गजान्धक- ध्वंसी
य़म-भीति-संहारक ॥ (९)
_ _ _ _ _ _ _
[१०]
अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब-मञ्जरी-
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधुव्रतम् ।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥
*
गर्ब-बिरहिता पर्बत- दुहिता
शोभा रूपी कदम्बर,
कळिका-मधुर मकरन्द-धारा
आस्वादने य़े भ्रमर ।
भजे काम-ध्वंसी त्रिपुर-बिनाशी
संसार-बन्ध-निबारी,
दक्षय़ज्ञ- गज- अन्धक- संहारी
अन्तकर अन्तकारी ॥ (१०)
_ _ _ _ _ _ _
[११]
जयत्वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्गम-श्वसद्-
विनिर्गमत्- क्रम-स्फुरत्- कराल-भाल-हव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्त्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः ॥
*
अत्यन्त चञ्चळ भ्रमित सर्पङ्क
फुफुकार शबदरे,
ललाटर भीम अग्नि क्रमे क्रमे
ब्यापे य़ार मस्तकरे ।
धिमि धिमि धिमि मृदङ्गर मन्द्र
मङ्गळ नाद क्रमरे,
प्रचण्ड ताण्डबे बिभोळ शिबङ्क
जय हेउ सन्ततरे ॥ (११)
_ _ _ _ _ _ _
[१२]
दृषद्-विचित्र-तल्पयो-र्भुजङ्ग-मौक्तिक-स्रजो-
र्गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्षयोः ।
तृणारविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥
*
पाषाणे आबर मञ्जुळ शयने
सर्पे तथा मुक्ता-हारे,
अमूल्य रतने तथा मृत्तिकारे
मित्रे अबा शत्रु ठारे ।
तृणराशि अबा तरुणी-गणरे
प्रजा तथा राजा ठारे,
सम भाब रखि केबे बामदेब
शिबङ्कु भजिबि बारे ॥ (१२)
_ _ _ _ _ _ _
[१३]
कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥
*
केबे अबा मुहिँ निबास बिरचि
स्वर्णदी- कुञ्ज अन्तरे,
दुर्बुद्धि उपेक्षि मस्तकरे थापि
कराञ्जळि बिनयरे ।
बिलोळ नयने सुललाट चन्द्र-
मौळि- पदे रखि लय,
'शिब शिब' मन्त्र उच्चारि बदने
सुखे य़ापिबि समय ॥ (१३)
_ _ _ _ _ _ _
[१४]
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन् नरो विशुद्धिमेति सन्ततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु य़ाति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम् ॥
*
एरूपे कथित उत्तमोत्तम ए
स्तब पढ़े य़ेउँ जन,
स्मरण करइ अबा बर्ण्णइ से
रहे निति शुद्ध मन ।
अचिरे शङ्कर- भक्ति लभे मोदे,
न पाए बिरुद्ध गति,
प्राणीङ्कर मोह नाश य़ाए य़ेणु
शिबे हेले दृढ़ मति ॥ (१४)
_ _ _ _ _ _ _
[१५]
पूजावसान-समये दशवक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥
*
पूजा- शेषकाळे सन्ध्या-बेळे य़े बा
दशानन- बिरचित,
ए शिब-पूजन- बिषयक स्तब
पाठ करे शुद्ध-चित्त ।
शम्भु-आराधने रथ-गज-अश्व-
सम्पन्न सतत स्थिर,
बिपुळ ऐश्वर्य़्य लभे से साधक
हर-प्रसादे अचिर ॥ (१५)
_ _ _ _ _ _ _
(Translator 's Conclusion)
*
महादेबङ्कर ताण्डब दर्शने
बिमुग्ध लङ्काधिपति,
बिरचिले श्लोके ए शिब-ताण्डब
प्रकाशि दृढ़ भकति ।
काशी-बिश्वनाथ सर्ब मनोरथ
करिबे शुभे पूरण,
ध्याये हरेकृष्ण मेहेर से हर-
मञ्जुळ- पद्म-चरण ॥
_ _ _ _ _ _ _
( इति श्री-रावण-कृतं शिव-ताण्डव-स्तोत्रं सम्पूर्णम् )
* * *
For Roman Transliteration, please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2009/02/siva-tanava-stostram-devanagari-roman.html
* * *
2 comments:
If you dont mind write all these in english.because i cant understand this.because i dont have the corresponding font.otherwise pls tell which site should i visit to get the complete lyrics of sivathaandavam......
For Roman Transliteration of Siva-Tandava-Stotra, please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2009/02/siva-tanava-stostram-devanagari-roman.html
Post a Comment