The Ambrosial
Original Oriya Poem
'Amrutamaya' (अमृतमय)
By
Poet Gangadhara Meher
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English and Hindi Translations
By
Dr. Harekrishna Meher
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मूल ओड़िआ कविता : कवि गंगाधर मेहेर
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अमृतमय
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मुँ त अमृत सागर- बिन्दु,
नभे उठिथिलि तेजि सिन्धु ।
खसि मिशिछि अमृत धारे,
गति करुछि से अकूपारे ।
पथे शुखिगले पाप- तापरे,
होइ शिशिर खसिबि ता परे ।
अमृतमय अमृत रय
सहित मिशिबि सागरे ॥
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Translated into English
By
Dr. Harekrishna Meher
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The Ambrosial
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Verily I'm a drop
of the ocean of nectar.
Shunning the ocean I had risen up
in the firmament afar.
Coming down now
I've joined the ambrosial flow
and towards the ocean
ahead I'm in motion.
If I evaporate therein
on the way by the heat of sin,
in the form of dew later on
I'll descend below.
With the nectarean immortal flow,
I'll mingle in the ocean.
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हिन्दी अनुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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अमृतमय
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मैं तो बिन्दु हूँ
अमृत-समुन्दर का,
छोड़ समुन्दर अम्बर में
ऊपर चला गया था ।
अब नीचे उतर
मिला हूँ अमृत- धारा से ;
चल रहा हूँ आगे
समुन्दर की ओर ।
पाप-ताप से राह में
सूख जाऊँगा अगर,
तब झरूँगा मैं ओस बनकर ।
अमृतमय अमृत-धारा के संग
समा जाऊँगा समुन्दर में ॥
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[Original Poem Extracted from
' Arghya-Thālī ' ( अर्घ्यथाली ),
Anthology of Poems
authored by Poet Gańgādhara Meher]
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