‘Koshali Meghaduta’
By : Dr. Harekrishna Meher
(Complete ‘Koshali Lyrical Translation of Poet Kalidasa’s
Sanskrit Kavya ‘Meghadutam’)
= = = = = = = = = = = =
Published by :
‘Trupti’, Bhubaneswar-2, Orissa, India, 2010.
[ISBN : 13 978-93-80758-03-9]
* *
'Koshali Meghaduta' Book :
http://hkmeher.blogspot.com/2010/08/koshali-meghaduta-book-inaugurated.html
*
For this ‘Koshali Meghaduta’ book,
Translator Dr. Harekrishna Meher
was honoured with
‘Dr.Nilamadhab Panigrahi Award’-2010
conferred by
Sambalpur University, Jyoti Vihar, Sambalpur, Orissa.
Ref :
http://hkmeher.blogspot.com/2011/08/nilamadhab-panigrahi-samman-to.html.
= = = = = = = =
For Purba Megha, Part-1 of Koshali Meghaduta,
Please see : Link :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-1-purba-megha.html
*
*
For this ‘Koshali Meghaduta’ book,
Translator Dr. Harekrishna Meher
was honoured with
‘Dr.Nilamadhab Panigrahi Award’-2010
conferred by
Sambalpur University, Jyoti Vihar, Sambalpur, Orissa.
Ref :
http://hkmeher.blogspot.com/2011/08/nilamadhab-panigrahi-samman-to.html.
= = = = = = = =
For Purba Megha, Part-1 of Koshali Meghaduta,
Please see : Link :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-1-purba-megha.html
*
Uttara Megha, Part-2 of Koshali Meghaduta
is presented here.
= = = = = = = = = =
is presented here.
= = = = = = = = = =
संस्कृत मेघदूत-काव्य : महाकबि कालिदास
कोशली गीत रूपान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
*
कोशली मेघदूत
- - - - - - -
(उत्तर मेघ)
= = = = = = = = = = = = = = =
[67]
से अलका पुरीर् सबु
उँचा उँचा महल्,
तोर् बागिर् गुन् बहिछे
छुइँ करि बादल् ।
सेन सुन्द्री माईकिना करुथिसन् खेला,
तोर् कोलेने जेन् पर्कार् बिज्ली चंचला ।
शोभा पाएसि चित्र सेने
केते रंग् रंगिआ,
तोर् गाग्रे नाना रंगर्
इन्दर् धनु भलिआ ।
संगीत् लागि बाजुथिसि मुर्दुंग बाइद,
कान्के मधुर् धीर् गँभीर् जेन्ता तोर् शबद ।
झल्झल्सि महल् जाकर् भूइँतल्,
खञ्जा हेइछे धोब् उजल्
खोब् मणि रतन् ।
ढल्ढल्सि तोर् देहि भितरे,
बादल् भाइ ! बुन्दा बुन्दा
पानि जेन्ति जतन् ॥
*
[68]
हाते लीला- पदम् थिसि सेने सुन्द्रीलोकर्,
खोचिथिसन् मुँड़र् बाले कुन्द फुल् सुन्दर् ।
लोध्र फुलर् पराग् चूरुन्
रेति रेति करि,
दिशुथिसि पँर्रा बरन्
ताँकर् मुहुर् शिरी ।
शिरीष् फुल् काने थिसन् लगेइ,
नूआँ कुरुबक फुले
सुन्दर् ताँकर् खोषा ।
मांगे निजर् ajei थिसन् कदम् फुल्,
फुटिथिसि जेन्टा भाइ !
कले तुइ बर्षा ॥
*
[69]
फुल् गछेने सबु दिने फुटिथिसि जतन्,
बास्न लोभे भम्रामाने गुन्गुनोउथिसन् ।
पदम् लता सुन्दर् सदा
पदम् फुल् धरि,
हँस्माने घुन्सि बागिर्
ताके थिसन् घेरि ।
सदा उजल् पुएँक् मेलि कएँ कएँ,
शबद् केते करुथिसन्
पोषिआँ मजूर्माने ।
सञ्ज् बेला जन्-उकिआ सबु दिन्,
दिशुथिसि केड़े सुन्दर्
अन्धार् नाइँ सेने ॥
*
[70]
दुस्रा कारन् नाइँ, केबल् हेइ करि खुसि,
से नगरर् लोक्मन्कर् आँखिर् पानि झर्सि ।
प्रेम् जोगुँ हेले एका
प्रिय प्रिया मिलन्,
ताप् आएसि देहे ताँकर्
नाइँ उन्जा कारन् ।
प्रेम्-झगर् एका बिरह करैसि,
निज निजर् भित्रे सेने
नाइँ कारन् दुसर् ।
सबु बेल्के बयस् एका य़उबन्,
अन्य बयस् नाइँ काहार्
सेने जक्षमन्कर् ॥
*
[71]
से पुरे त बिराट् बिराट् अछे सबु महल्,
तले लागिछे फटिक् मणि सफेद् केते उजल् ।
चिक्चिकुछे सेने एन्ति
छबि तरामन्कर्,
फुल् बागिर् जना पड़्सि
बिछेइ हेइ सुन्दर् ।
बाज्ले सेन धीरे धीरे मुर्दंग,
बादल् भाइ ! तोर् गंभीर्
शबद् लेखेँ शुभ्सि ।
आनन्द्-मने कल्प-मधु पिइसन्,
य़क्षमाने सुन्द्री संगे
केलि रंगे रसि ॥
*
[72]
देब-बाञ्छित् सुन्द्री सुन्द्री जख्य-टुकिल् माने,
गुपत्-मणि खेल् खेल्सन् सेने हरष् मने ।
हात्-मुठाने धरि करि
मणि देले फिकि,
गंगा नदीर् सुना बाएल्
भित्रे जाएसि लुकि ।
नुरि नुरि फेर् रख्सन् बाहार् करि आनि,
इ पर्कार् मजा देसि खेल् लुक्लुकानि ।
मन्दाकिनीर् बुन्दा बुन्दा पानिके,
धरिकिना धीरे धीरे
बहेसि पबन् शीतल् ।
मन्दार् गछ बहुत् अछे खँड़िथि,
खरातप नाइँ बाजे
छाइ सेतार् बहल् ॥
*
[73]
प्रेमीमाने चंचल् हाते कर्बा लागि केलि,
प्रियार् बसन् ढिला कर्सन् अँटार् गएँठ् खोलि ।
बिम्बाधरी सुन्द्रीमाने
बुड़ि लाजे लाजे,
बिभोर् हेइ निज्के सेने
गुपत् रख्बा काजे ।
झअट् करि चूरुन् धरि मुठाथि,
फिकि देसन् रतन्-बती-
शिखा उप्रे पाखर् ।
मातर् बती-शिखा उँचा बड़ा तेज्,
नाइँ लिभे, हेतिर् लागि
बेकार् चेष्टा ताँकर् ॥
*
[74]
पबन् जोगुँ बादल्माने बुलि बुलि धीरे,
चघिजाएसन् केते महलर् उँचा भूइँ उप्रे ।
सेमाने त तोर् समान्
आरे जलधर् भाइ !
पाएन् बर्षा करि पार्सन्
जाहिँ ताहिँ थाइ ।
बुन्दा बुन्दा पानि भिजेइ सेमाने,
सेथि काँथिर् चित्रमन्के
करि देसन् खराप् ।
हेतिर् दोषे डरि करि पलैसन्,
झर्का बाटे कुहुला रूपे
लुकि करि चुप्चाप् ॥
*
[75]
रातिर् बेले धोब् चन्दर् किरन् पड़्सि घरे,
सेथिर् य़ोगुँ तोर् आबरन् घुचि जाएसि दूरे ।
सेन मण्डप् सूतामन्थि
चन्दर्कान्त मनि,
झुलि करि रहिथिसि
शीतल् गुन् जानि ।
बुन्दा बुन्दा पाएन् धीरे थिपेइ,
मझि राति माएझि-लोकर्
थकान् मिटेइ देसि ।
पतिमन्कर् बाहाँर् प्रेम् आलिंगन्,
पाएला परे नरम् देहे
दुखा जेते हेसि ॥
*
[76]
मजा कर्सन् पर्ति दिन् कामी जक्षमाने,
अल्कापुरीर् केते सुन्दर् भँटार् बगिचाने ।
जक्ष-रजार् उद्यान् आए
‘बइभ्राज’ तार् नाँ,
सेन सरगर् अप्सरादल्
आसि हेसन् जमा ।
सेमान्कर् संगे मिशि नाना कथा हेइ,
केते खुसि गप कर्सन् मन्के रसेइ ।
कामीलोकर् पाखे सदा रहिछे,
अचलाचल् धन् रतन्
सेतार् नाइँ गन्ति ।
सांगे रहि किन्नर्माने गाएसन्,
सेने मधुर् उँचा सुरे
कुबेर् रजार् कीर्ति ॥
*
[77]
स्तिरीमाने राति केन् केन् बाटे जाइथिले,
इ कथाटा जना पड़्सि बेल् उदे हेले ।
तन्द्रा हेइ चाल्बा य़ोगुन्
मुँड़र् बाले लाग्ला,
मन्दार् फुल् पड़ि जाएसि
हेइ करि ढिला ।
काने खोच्ला पदम् फुलर् कअँलिआ,
पतर् खँड़् ठाने ठाने
पड़िथिसि तले ।
कोशली गीत रूपान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
*
कोशली मेघदूत
- - - - - - -
(उत्तर मेघ)
= = = = = = = = = = = = = = =
[67]
से अलका पुरीर् सबु
उँचा उँचा महल्,
तोर् बागिर् गुन् बहिछे
छुइँ करि बादल् ।
सेन सुन्द्री माईकिना करुथिसन् खेला,
तोर् कोलेने जेन् पर्कार् बिज्ली चंचला ।
शोभा पाएसि चित्र सेने
केते रंग् रंगिआ,
तोर् गाग्रे नाना रंगर्
इन्दर् धनु भलिआ ।
संगीत् लागि बाजुथिसि मुर्दुंग बाइद,
कान्के मधुर् धीर् गँभीर् जेन्ता तोर् शबद ।
झल्झल्सि महल् जाकर् भूइँतल्,
खञ्जा हेइछे धोब् उजल्
खोब् मणि रतन् ।
ढल्ढल्सि तोर् देहि भितरे,
बादल् भाइ ! बुन्दा बुन्दा
पानि जेन्ति जतन् ॥
*
[68]
हाते लीला- पदम् थिसि सेने सुन्द्रीलोकर्,
खोचिथिसन् मुँड़र् बाले कुन्द फुल् सुन्दर् ।
लोध्र फुलर् पराग् चूरुन्
रेति रेति करि,
दिशुथिसि पँर्रा बरन्
ताँकर् मुहुर् शिरी ।
शिरीष् फुल् काने थिसन् लगेइ,
नूआँ कुरुबक फुले
सुन्दर् ताँकर् खोषा ।
मांगे निजर् ajei थिसन् कदम् फुल्,
फुटिथिसि जेन्टा भाइ !
कले तुइ बर्षा ॥
*
[69]
फुल् गछेने सबु दिने फुटिथिसि जतन्,
बास्न लोभे भम्रामाने गुन्गुनोउथिसन् ।
पदम् लता सुन्दर् सदा
पदम् फुल् धरि,
हँस्माने घुन्सि बागिर्
ताके थिसन् घेरि ।
सदा उजल् पुएँक् मेलि कएँ कएँ,
शबद् केते करुथिसन्
पोषिआँ मजूर्माने ।
सञ्ज् बेला जन्-उकिआ सबु दिन्,
दिशुथिसि केड़े सुन्दर्
अन्धार् नाइँ सेने ॥
*
[70]
दुस्रा कारन् नाइँ, केबल् हेइ करि खुसि,
से नगरर् लोक्मन्कर् आँखिर् पानि झर्सि ।
प्रेम् जोगुँ हेले एका
प्रिय प्रिया मिलन्,
ताप् आएसि देहे ताँकर्
नाइँ उन्जा कारन् ।
प्रेम्-झगर् एका बिरह करैसि,
निज निजर् भित्रे सेने
नाइँ कारन् दुसर् ।
सबु बेल्के बयस् एका य़उबन्,
अन्य बयस् नाइँ काहार्
सेने जक्षमन्कर् ॥
*
[71]
से पुरे त बिराट् बिराट् अछे सबु महल्,
तले लागिछे फटिक् मणि सफेद् केते उजल् ।
चिक्चिकुछे सेने एन्ति
छबि तरामन्कर्,
फुल् बागिर् जना पड़्सि
बिछेइ हेइ सुन्दर् ।
बाज्ले सेन धीरे धीरे मुर्दंग,
बादल् भाइ ! तोर् गंभीर्
शबद् लेखेँ शुभ्सि ।
आनन्द्-मने कल्प-मधु पिइसन्,
य़क्षमाने सुन्द्री संगे
केलि रंगे रसि ॥
*
[72]
देब-बाञ्छित् सुन्द्री सुन्द्री जख्य-टुकिल् माने,
गुपत्-मणि खेल् खेल्सन् सेने हरष् मने ।
हात्-मुठाने धरि करि
मणि देले फिकि,
गंगा नदीर् सुना बाएल्
भित्रे जाएसि लुकि ।
नुरि नुरि फेर् रख्सन् बाहार् करि आनि,
इ पर्कार् मजा देसि खेल् लुक्लुकानि ।
मन्दाकिनीर् बुन्दा बुन्दा पानिके,
धरिकिना धीरे धीरे
बहेसि पबन् शीतल् ।
मन्दार् गछ बहुत् अछे खँड़िथि,
खरातप नाइँ बाजे
छाइ सेतार् बहल् ॥
*
[73]
प्रेमीमाने चंचल् हाते कर्बा लागि केलि,
प्रियार् बसन् ढिला कर्सन् अँटार् गएँठ् खोलि ।
बिम्बाधरी सुन्द्रीमाने
बुड़ि लाजे लाजे,
बिभोर् हेइ निज्के सेने
गुपत् रख्बा काजे ।
झअट् करि चूरुन् धरि मुठाथि,
फिकि देसन् रतन्-बती-
शिखा उप्रे पाखर् ।
मातर् बती-शिखा उँचा बड़ा तेज्,
नाइँ लिभे, हेतिर् लागि
बेकार् चेष्टा ताँकर् ॥
*
[74]
पबन् जोगुँ बादल्माने बुलि बुलि धीरे,
चघिजाएसन् केते महलर् उँचा भूइँ उप्रे ।
सेमाने त तोर् समान्
आरे जलधर् भाइ !
पाएन् बर्षा करि पार्सन्
जाहिँ ताहिँ थाइ ।
बुन्दा बुन्दा पानि भिजेइ सेमाने,
सेथि काँथिर् चित्रमन्के
करि देसन् खराप् ।
हेतिर् दोषे डरि करि पलैसन्,
झर्का बाटे कुहुला रूपे
लुकि करि चुप्चाप् ॥
*
[75]
रातिर् बेले धोब् चन्दर् किरन् पड़्सि घरे,
सेथिर् य़ोगुँ तोर् आबरन् घुचि जाएसि दूरे ।
सेन मण्डप् सूतामन्थि
चन्दर्कान्त मनि,
झुलि करि रहिथिसि
शीतल् गुन् जानि ।
बुन्दा बुन्दा पाएन् धीरे थिपेइ,
मझि राति माएझि-लोकर्
थकान् मिटेइ देसि ।
पतिमन्कर् बाहाँर् प्रेम् आलिंगन्,
पाएला परे नरम् देहे
दुखा जेते हेसि ॥
*
[76]
मजा कर्सन् पर्ति दिन् कामी जक्षमाने,
अल्कापुरीर् केते सुन्दर् भँटार् बगिचाने ।
जक्ष-रजार् उद्यान् आए
‘बइभ्राज’ तार् नाँ,
सेन सरगर् अप्सरादल्
आसि हेसन् जमा ।
सेमान्कर् संगे मिशि नाना कथा हेइ,
केते खुसि गप कर्सन् मन्के रसेइ ।
कामीलोकर् पाखे सदा रहिछे,
अचलाचल् धन् रतन्
सेतार् नाइँ गन्ति ।
सांगे रहि किन्नर्माने गाएसन्,
सेने मधुर् उँचा सुरे
कुबेर् रजार् कीर्ति ॥
*
[77]
स्तिरीमाने राति केन् केन् बाटे जाइथिले,
इ कथाटा जना पड़्सि बेल् उदे हेले ।
तन्द्रा हेइ चाल्बा य़ोगुन्
मुँड़र् बाले लाग्ला,
मन्दार् फुल् पड़ि जाएसि
हेइ करि ढिला ।
काने खोच्ला पदम् फुलर् कअँलिआ,
पतर् खँड़् ठाने ठाने
पड़िथिसि तले ।
छिट्कि करि पड़िथिसि मोतिफल्,
छाति उप्रे पिन्ध्ला हारर्
सूता छिड़िगले ॥
*
[78]
सेन साक्षात् महेश्वर माहापुरु बिजे,
जक्ष-पति कुबेर् रजार् बन्धु से त निजे ।
इ कथाके कामदेब
भाबि करि डरे,
भमर्-गुन लाग्ला धनु
हाते नेइँ धरे ।
भूरु-लतार् मोहनी भंगी संगे त,
बाँक् चाहाँनी सुन्दरी चतुर्
माईकिना-मान्कर् ।
भेदि पार्सि कामी पुरुषर् हुरुद्के,
हेतिर् लागि सफल् हेसि
काम् कामदेबर् ॥
*
[79]
अब्लालोकर् बेश्भूषा अलंकार् बेसि,
कल्प तरु एक्ला निजे सबु जोगेइ देसि ।
बाँक् चाहाँनीर् आदेश्कारी
मद, चित्र बसन्,
नाना बानिर् फुलर् कढ़ि
माला आदि भूषन् ।
देहे सजेइ हेबार् काजे अलंकार्,
देसि आरु कहँलिआ
पतर् केते रकम् ।
सेतार् संगे लाल् रंगर् अलता,
रँचेइ हेबार् लागि ताँकर्
नरम् पाद-पदम् ॥
*
[80]
सेने कअँल् पतर् बागि शाम्ला घोड़ा अछन्,
सूरुज् देबर् घोड़ामन्के बल् देखेइ पार्सन् ।
हातीमाने अछन् उँचा
बड़् पर्बत् परा,
तोर् सरि से जोर् बर्षेइ
देसन् मद धारा ।
बीर्मन्कर् देहे शोभा पाएसि,
खँड़िआ चिन्हा केते पर्कार्
अलंकार् साजि ।
राबण् संगे लढ़िथिले सेमाने,
हेतिर् जोगुँन् दाग् रहिछे
खँडार् चोट् बाजि ॥
*
छाति उप्रे पिन्ध्ला हारर्
सूता छिड़िगले ॥
*
[78]
सेन साक्षात् महेश्वर माहापुरु बिजे,
जक्ष-पति कुबेर् रजार् बन्धु से त निजे ।
इ कथाके कामदेब
भाबि करि डरे,
भमर्-गुन लाग्ला धनु
हाते नेइँ धरे ।
भूरु-लतार् मोहनी भंगी संगे त,
बाँक् चाहाँनी सुन्दरी चतुर्
माईकिना-मान्कर् ।
भेदि पार्सि कामी पुरुषर् हुरुद्के,
हेतिर् लागि सफल् हेसि
काम् कामदेबर् ॥
*
[79]
अब्लालोकर् बेश्भूषा अलंकार् बेसि,
कल्प तरु एक्ला निजे सबु जोगेइ देसि ।
बाँक् चाहाँनीर् आदेश्कारी
मद, चित्र बसन्,
नाना बानिर् फुलर् कढ़ि
माला आदि भूषन् ।
देहे सजेइ हेबार् काजे अलंकार्,
देसि आरु कहँलिआ
पतर् केते रकम् ।
सेतार् संगे लाल् रंगर् अलता,
रँचेइ हेबार् लागि ताँकर्
नरम् पाद-पदम् ॥
*
[80]
सेने कअँल् पतर् बागि शाम्ला घोड़ा अछन्,
सूरुज् देबर् घोड़ामन्के बल् देखेइ पार्सन् ।
हातीमाने अछन् उँचा
बड़् पर्बत् परा,
तोर् सरि से जोर् बर्षेइ
देसन् मद धारा ।
बीर्मन्कर् देहे शोभा पाएसि,
खँड़िआ चिन्हा केते पर्कार्
अलंकार् साजि ।
राबण् संगे लढ़िथिले सेमाने,
हेतिर् जोगुँन् दाग् रहिछे
खँडार् चोट् बाजि ॥
*
[81]
से अल्का पुरीथि मोर् घर तुइ देख्बु,
जक्षपतिर् राज्महलर् उत्तर् आड़े जान्बु ।
दुआरे अछे इन्दर् धनु
बागि सुन्दर् तोरन्,
दुरुन् तुइ पार्बु चिन्हि
सेटा मोर् भबन् ।
घर्-तराने बढ़ेइछे घरनी,
सान् मन्दार् गछ गुटे
पोओ बागिर् पालि ।
झोपा झोपा फुल् फुटि झुलुछे,
सेन हात्के टेकि करि
तलुन् हेबा तोलि ॥
*
[82]
से भबनर् भित्रे सान् पोख्री गुटे अछे,
केते मर्कत् पथ्रे सेतार् पाउँच् बना हेइछे ।
सुना-बरन् पदम् फुल्
फुटिथिबा गहल्,
बइदुर्य़ मणिर् मितान्
सुन्दर् नाड़् कहँल् ।
हँस्माने पानि बसा करिछन्,
तोर् दर्शन् पाएले सेने
सभे उषत् हेबे ।
मान्सरोबर् पाशे ताँकर् थिले बि,
सेन्के जिबार् लागि इच्छा
नाइँ करन् केबे ॥
*
[83]
केलि-पाहाड़् गुटे अछे खँड़िथि से बन्धर्,
नीलम् मणि लागिछे तार् चूले केड़े सुन्दर् ।
केतेनिकेते कनक्-बरन्
सरस् कदली गछे,
चाएर् दिगे से परबत्
घेरा हेइ अछे ।
तोर् तरातरा बिज्ली मार्ले भाइ रे !
से पाहाड़र् बागि तके
मुइँ देखि पार्सिँ ।
मोर् कनिआँर् प्रिय बलि पाहाड़्के,
सेत्कि बेले बिकल् मने
सुर्ता केते कर्सिँ ॥
*
[84]
माध्बी गछर् मण्डप् गुटे अछे से पाहाड़े,
कुरुबकर् बाड़ा दिआ हेइछे चाएर् आड़े ।
मण्डप् छुमे लाल् अशोक्
पतर् तार् चुल्चुल्,
तार् संगे फेर् अछे गुटे
सुन्दर् गछ बकुल् ।
तोर् सखीर् डेब्रि पाद् पाएबाके,
मोर् बागिर् अशोक् गछ
इच्छा कर्सि भले ।
प्रियार् मुहुँर् मदिराके चाहेँसि,
मोर् लेखेन् बकुल् गछ
तार् दोहदर् छले ॥
*
[85]
दुइ गछर् मझि अछे सुना डँड़ा गुटे,
बस्बा पीठे फटिक् मणि लगा हेइछे पटे ।
सेतार् मूले कषि बउँश्
बागिर् बड़ा तेजा,
शागुआ बरन् मणि मर्कत्
हेइछे केते खञ्जा ।
सञ्ज् बेल्के आसि करि डँड़ाथि,
बसिथिसि तोर् सांग
मजूर् पुएँक् मेलि ।
मोर् कनिआँ हाते तालि बजाएले,
रुन्झुन् चूड़ी शबद् संगे
नाच्सि हलि हलि ॥
*
[86]
मोर् हुरुदर् कथा तके कहेलिँ जेते सबु,
तुइ साधु बादल् भाइ ! मने रखिथिबु ।
दुआर्-तरे मंगल्-सूचक्
शँख् पदम् चिह्ना,
लेखा हेइछे देख्बु सेने
असुबिधा नाइँना ।
चिह्नि पार्बु निश्चे मोर् भबन्के,
मोर् बिने तार् तेज् ऊना
हेइथिबा इछन् ।
सूरुज् बिना केभेहेले पदम् फुल्,
पर्काश् करि नाइँ पारे
निजर् दीप्ति बरन् ॥
*
[87]
हाती-छुआ बागिर् तुइ छोटिआ रूप धर्बु,
जेन्ता कि मोर् घरे जल्दि प्रबेश् करि पार्बु ।
केलि-पाहाड़् कथा तके
देइछेँ बतेइ,
छने बिश्राम् कर्बु सेतार्
सुन्दर् चूले जाइ ।
अलप् उकिआ करि तुइ बिग्-बिग्,
जुग्जुगिआ कीरा दलर्
तेज् बागि निजर् ।
उज्ला धरि तोर् बिज्ली-आँखिने,
सेनु डुंगि देख्बु सांग !
मोर् भबन् भितर् ॥
*
[88]
पात्ला देही श्यामा से त
मुनिआँ दाँत सान् सान्,
लाल् चएँड् दिश्सि पाच्ला
बिम् फलर् समान् ।
सुर्लि अँटा गड़िआ नाभि थिबा मोर् कनिआँ,
आएँख् सेतार् हिर्नी बागिर् लाग्सि छन्छनिआँ ।
मोटा चुतल् जोगुँ धीरा चालि तार्,
छातिर् भारे अलप् नइँ
जाएसि जीबन्-धनी ।
धांग्री जेते गढ़िअछे बिधाता,
ताँकर् भित्रे सते पर्थम्
सर्जना मोर् सज्नी ॥
*
[89]
कनिआँ मोर् कहेसि भाइ ! धीरे कम् कथा,
मोर् दुतीय जीबन् बलि ताहाके जानिथा ।
मुइँ सेतार् परान्-जुलि
धुरे अछेँ अधीर्,
एक्ला रहि थिबा प्रिया
चक्रबाकी बागिर् ।
मोर् बिरहे केते केते लमा दिन्,
बितेइछे संगिनी मोर्
हेइ आकुल् मति ।
काकर् घोटि देले जेन्ता पद्मिनी,
मलिन् दिश्सि थिबा सेन्ता
मोर् शिरीमती ॥
*
[90]
कान्दि कान्दि बिकल् हेइ मोर् बिरहे झुरि,
प्रियार् कहँल् आएँख् निश्चे य़ाइथिबा फुलि ।
बोहुथिबा केते दुखे
निनास् पबन् गरम्,
सेथिर् जोगुँ शुखिथिबा
तार् चएँड़् नरम् ।
बसिथिबा हात थापि गालेथि,
लमा बाल् ढाँकि थिबा
मलिन् मुहेँ प्रियार् ।
तु ढाबि देले जेन्ता चन्दर्मा,
तेज्-बिहीन् जना पड़्सि
शुख्ला दिश्सि आकार् ॥
*
[91]
तोर् नज्रे पड़्बा जल्दि सेन मोर् भारिजा,
मुइँ भाबुछेँ, सत्कि बेले करुथिबा पूजा ।
नेहेले से त मने मने
भाबि करि मते,
बिरह-दुब्ला पतिर् चित्र
लेखुथिबा हाते ।
सेने आरु पचारुथिबा पिञ्जरार्,
मधुर्-गला सारीके मोर्
प्रिया बिरहिनी ।
'तोर् ठाने त ताँकर् बेशी सेनेह,
रसिका लो ! ताँके तुइ
सोर् कर्सु किनि ?'
*
[92]
मलिन् शाढ़ी पिन्धिथिबा बीणा रखि कोले,
गीत् गुटे गाएबा लागि चाहुँथिबा भोले ।
से गीते त रहि थिबा
मोर् नाँर् सूचना,
बाछि बाछि सुन्दर् पद
हेइथिबा रचना ।
नयन्-धारे भिज्ला बीणा-तारके,
कहँल् हाते केन्सि मते
पोछि सजोउथिबा ।
बहुत् थर आगुन् रचिथिले बि,
प्रिया स्वरर् मूर्छनाके
पास्रि जाउथिबा ॥
*
[93]
दुआर् बन्धे आगर् थिला फुल्मन्के सखी,
गोटे गोटे करि आनि भूईँ तले रखि ।
गनुथिबा हिसाब् करि
रहेला मास् केते,
बिरह दिनुँ आरँभ् करि
शाएप् सर्बा पते ।
लाजे लाजे सेने प्रिय सजनी,
मोर् संगे तार् केलि रस
भाबुथिबा मने ।
पति निजर् दूरे थिले इ भाबे,
मन् भुर्तेन् करिथिसन्
बिरहिनीमाने ॥
*
[94]
दिनर् बेले कामे लागि थिबा तोर् सखी,
मोर् बिरह नाइँ करे ताके जह दुखी ।
मातर् राति मन् भुर्तेन्
नाइँ हेबार् जोगुन्,
दुख बहुत् पाएबा प्रिया
मुइँ भाबुछेँ आगुन् ।
भूइँ तले शोइथिबा रातिथि,
झुम्रा आँखि नाइँ थिबा
से त पति-बर्ता ।
देख्बु ताके रहि घरर् खिड़्किथि,
मन् खुसि तार् कर्बा लागि
जनेइ मोर् बार्ता ॥
*
[95]
मोर् बिनुँ से खीन् देही मन् दुःखे झुरि,
गुटे कड़े रहि शेजे शुइथिबा गुरी ।
पूरुब् दिगे गुटे कलार्
तन् धरि चन्दर्मा,
दिशुथिसि मलिन् सेन्ता
थिबा प्रियतमा ।
जेन् रातिके छने बागिर् बितेइछे,
मन् इच्छा से केलि रसे
मोर् संगे छएली ।
उषुम् लह झरेइ एबे से राति,
बितउथिबा मोर् बिरहे
बहुत् लम्बा बलि ॥
*
से अल्का पुरीथि मोर् घर तुइ देख्बु,
जक्षपतिर् राज्महलर् उत्तर् आड़े जान्बु ।
दुआरे अछे इन्दर् धनु
बागि सुन्दर् तोरन्,
दुरुन् तुइ पार्बु चिन्हि
सेटा मोर् भबन् ।
घर्-तराने बढ़ेइछे घरनी,
सान् मन्दार् गछ गुटे
पोओ बागिर् पालि ।
झोपा झोपा फुल् फुटि झुलुछे,
सेन हात्के टेकि करि
तलुन् हेबा तोलि ॥
*
[82]
से भबनर् भित्रे सान् पोख्री गुटे अछे,
केते मर्कत् पथ्रे सेतार् पाउँच् बना हेइछे ।
सुना-बरन् पदम् फुल्
फुटिथिबा गहल्,
बइदुर्य़ मणिर् मितान्
सुन्दर् नाड़् कहँल् ।
हँस्माने पानि बसा करिछन्,
तोर् दर्शन् पाएले सेने
सभे उषत् हेबे ।
मान्सरोबर् पाशे ताँकर् थिले बि,
सेन्के जिबार् लागि इच्छा
नाइँ करन् केबे ॥
*
[83]
केलि-पाहाड़् गुटे अछे खँड़िथि से बन्धर्,
नीलम् मणि लागिछे तार् चूले केड़े सुन्दर् ।
केतेनिकेते कनक्-बरन्
सरस् कदली गछे,
चाएर् दिगे से परबत्
घेरा हेइ अछे ।
तोर् तरातरा बिज्ली मार्ले भाइ रे !
से पाहाड़र् बागि तके
मुइँ देखि पार्सिँ ।
मोर् कनिआँर् प्रिय बलि पाहाड़्के,
सेत्कि बेले बिकल् मने
सुर्ता केते कर्सिँ ॥
*
[84]
माध्बी गछर् मण्डप् गुटे अछे से पाहाड़े,
कुरुबकर् बाड़ा दिआ हेइछे चाएर् आड़े ।
मण्डप् छुमे लाल् अशोक्
पतर् तार् चुल्चुल्,
तार् संगे फेर् अछे गुटे
सुन्दर् गछ बकुल् ।
तोर् सखीर् डेब्रि पाद् पाएबाके,
मोर् बागिर् अशोक् गछ
इच्छा कर्सि भले ।
प्रियार् मुहुँर् मदिराके चाहेँसि,
मोर् लेखेन् बकुल् गछ
तार् दोहदर् छले ॥
*
[85]
दुइ गछर् मझि अछे सुना डँड़ा गुटे,
बस्बा पीठे फटिक् मणि लगा हेइछे पटे ।
सेतार् मूले कषि बउँश्
बागिर् बड़ा तेजा,
शागुआ बरन् मणि मर्कत्
हेइछे केते खञ्जा ।
सञ्ज् बेल्के आसि करि डँड़ाथि,
बसिथिसि तोर् सांग
मजूर् पुएँक् मेलि ।
मोर् कनिआँ हाते तालि बजाएले,
रुन्झुन् चूड़ी शबद् संगे
नाच्सि हलि हलि ॥
*
[86]
मोर् हुरुदर् कथा तके कहेलिँ जेते सबु,
तुइ साधु बादल् भाइ ! मने रखिथिबु ।
दुआर्-तरे मंगल्-सूचक्
शँख् पदम् चिह्ना,
लेखा हेइछे देख्बु सेने
असुबिधा नाइँना ।
चिह्नि पार्बु निश्चे मोर् भबन्के,
मोर् बिने तार् तेज् ऊना
हेइथिबा इछन् ।
सूरुज् बिना केभेहेले पदम् फुल्,
पर्काश् करि नाइँ पारे
निजर् दीप्ति बरन् ॥
*
[87]
हाती-छुआ बागिर् तुइ छोटिआ रूप धर्बु,
जेन्ता कि मोर् घरे जल्दि प्रबेश् करि पार्बु ।
केलि-पाहाड़् कथा तके
देइछेँ बतेइ,
छने बिश्राम् कर्बु सेतार्
सुन्दर् चूले जाइ ।
अलप् उकिआ करि तुइ बिग्-बिग्,
जुग्जुगिआ कीरा दलर्
तेज् बागि निजर् ।
उज्ला धरि तोर् बिज्ली-आँखिने,
सेनु डुंगि देख्बु सांग !
मोर् भबन् भितर् ॥
*
[88]
पात्ला देही श्यामा से त
मुनिआँ दाँत सान् सान्,
लाल् चएँड् दिश्सि पाच्ला
बिम् फलर् समान् ।
सुर्लि अँटा गड़िआ नाभि थिबा मोर् कनिआँ,
आएँख् सेतार् हिर्नी बागिर् लाग्सि छन्छनिआँ ।
मोटा चुतल् जोगुँ धीरा चालि तार्,
छातिर् भारे अलप् नइँ
जाएसि जीबन्-धनी ।
धांग्री जेते गढ़िअछे बिधाता,
ताँकर् भित्रे सते पर्थम्
सर्जना मोर् सज्नी ॥
*
[89]
कनिआँ मोर् कहेसि भाइ ! धीरे कम् कथा,
मोर् दुतीय जीबन् बलि ताहाके जानिथा ।
मुइँ सेतार् परान्-जुलि
धुरे अछेँ अधीर्,
एक्ला रहि थिबा प्रिया
चक्रबाकी बागिर् ।
मोर् बिरहे केते केते लमा दिन्,
बितेइछे संगिनी मोर्
हेइ आकुल् मति ।
काकर् घोटि देले जेन्ता पद्मिनी,
मलिन् दिश्सि थिबा सेन्ता
मोर् शिरीमती ॥
*
[90]
कान्दि कान्दि बिकल् हेइ मोर् बिरहे झुरि,
प्रियार् कहँल् आएँख् निश्चे य़ाइथिबा फुलि ।
बोहुथिबा केते दुखे
निनास् पबन् गरम्,
सेथिर् जोगुँ शुखिथिबा
तार् चएँड़् नरम् ।
बसिथिबा हात थापि गालेथि,
लमा बाल् ढाँकि थिबा
मलिन् मुहेँ प्रियार् ।
तु ढाबि देले जेन्ता चन्दर्मा,
तेज्-बिहीन् जना पड़्सि
शुख्ला दिश्सि आकार् ॥
*
[91]
तोर् नज्रे पड़्बा जल्दि सेन मोर् भारिजा,
मुइँ भाबुछेँ, सत्कि बेले करुथिबा पूजा ।
नेहेले से त मने मने
भाबि करि मते,
बिरह-दुब्ला पतिर् चित्र
लेखुथिबा हाते ।
सेने आरु पचारुथिबा पिञ्जरार्,
मधुर्-गला सारीके मोर्
प्रिया बिरहिनी ।
'तोर् ठाने त ताँकर् बेशी सेनेह,
रसिका लो ! ताँके तुइ
सोर् कर्सु किनि ?'
*
[92]
मलिन् शाढ़ी पिन्धिथिबा बीणा रखि कोले,
गीत् गुटे गाएबा लागि चाहुँथिबा भोले ।
से गीते त रहि थिबा
मोर् नाँर् सूचना,
बाछि बाछि सुन्दर् पद
हेइथिबा रचना ।
नयन्-धारे भिज्ला बीणा-तारके,
कहँल् हाते केन्सि मते
पोछि सजोउथिबा ।
बहुत् थर आगुन् रचिथिले बि,
प्रिया स्वरर् मूर्छनाके
पास्रि जाउथिबा ॥
*
[93]
दुआर् बन्धे आगर् थिला फुल्मन्के सखी,
गोटे गोटे करि आनि भूईँ तले रखि ।
गनुथिबा हिसाब् करि
रहेला मास् केते,
बिरह दिनुँ आरँभ् करि
शाएप् सर्बा पते ।
लाजे लाजे सेने प्रिय सजनी,
मोर् संगे तार् केलि रस
भाबुथिबा मने ।
पति निजर् दूरे थिले इ भाबे,
मन् भुर्तेन् करिथिसन्
बिरहिनीमाने ॥
*
[94]
दिनर् बेले कामे लागि थिबा तोर् सखी,
मोर् बिरह नाइँ करे ताके जह दुखी ।
मातर् राति मन् भुर्तेन्
नाइँ हेबार् जोगुन्,
दुख बहुत् पाएबा प्रिया
मुइँ भाबुछेँ आगुन् ।
भूइँ तले शोइथिबा रातिथि,
झुम्रा आँखि नाइँ थिबा
से त पति-बर्ता ।
देख्बु ताके रहि घरर् खिड़्किथि,
मन् खुसि तार् कर्बा लागि
जनेइ मोर् बार्ता ॥
*
[95]
मोर् बिनुँ से खीन् देही मन् दुःखे झुरि,
गुटे कड़े रहि शेजे शुइथिबा गुरी ।
पूरुब् दिगे गुटे कलार्
तन् धरि चन्दर्मा,
दिशुथिसि मलिन् सेन्ता
थिबा प्रियतमा ।
जेन् रातिके छने बागिर् बितेइछे,
मन् इच्छा से केलि रसे
मोर् संगे छएली ।
उषुम् लह झरेइ एबे से राति,
बितउथिबा मोर् बिरहे
बहुत् लम्बा बलि ॥
*
[96]
सुधा-शीतल् चन्दर् किरन् आनन्द् देसि मने,
मोर् भबनर् खिड़्कि-बाटे प्रबेश् कर्ले सेने ।
सेनेह आघर् अछे बलि
ताके देखि छनेक्,
बिराग् जोगुँ शिर्मती मोर्
फिरेइ नेबा आँएक् ।
ढाँकि हेइथिबा आँखि सजनीर्,
पता डब्डबि जाउथिबा
दुखे लह-भारे ।
दिश्बा प्रिया बाद्लिआ दिने थल्-पदम्,
जेन्ता मुजि नाइँ हुए कि
फुटि नाइँ पारे ॥
*
[97]
सेत्कि बेले बहुथिबा लमा निनास् बिकल्,
बाजि करि दुख्बा चएँड़् पतर् बागि कहँल् ।
बिना तेलर् सिनान् जोगुँ
भुर्भुसा बाल् मुँड़र्,
खेलउथिबा हाते लमेइ
गाल् पते से निजर् ।
झुम्रा लागि चाहुँथिबा सजनी,
सप्ने घले मोर् संगे तार्
हेबा बलि मिलन् ।
मातर् निद् नाइँ आसे ताहाके,
बिकल् करि देबा सेने
आँखिर् लह-झरन् ॥
*
[98]
मोर् बिरहर् पहिल् दिने माला छाड़ि करि,
शिखा बान्धि थिला सखी मने थय् धरि ।
शाएप् सर्ला परे मुइँ
हुर्दे उषत् हेइ,
खोलि देमि से शिखाके
दुःख् छाड़ि देइ ।
छुइँले जाहा दुखा देबा मूले तार्,
बड़ा कठिन् आरु बिषम्
हेइ एकाबेनी ।
बिना-कटा नखर् हाते ताहाके,
गाल् उप्रुँ घुचोउथिबा
पछके सजनी ॥
*
[99]
से अब्ला प्रियतमा झुरि मोर् बिरहे,
मूर्छि देइ थिबा सारा अलंकार् देहे ।
दुखे कष्टे से बार्बार्
निजर् शेज्-कोले,
कहँल् गागर् रखिथिबा
केन्सि मते हेले ।
सुन्द्री मोर् कन्देइ देबा तके बि,
झरेइ देबा बुन्दा बुन्दा
तोर् आँखिर् पानि ।
जेन्मान्कर् आत्मा कोमल् दयालु,
हुरुद् ताँकर् तर्लि जाएसि
परर् दुख जानि ॥
*
[100]
मोर् पाशे तोर् सखीर् मन् रमिछे सर्बदा,
मोर् लागि तार् बहुत् प्रेम्, जानिछे इ ददा ।
पहेला करि अल्गा अछे
मोर् ठानुँ से सुन्द्री,
मुइँ भाबुछेँ एन्ति दशा
भोगुथिबा गोरी ।
प्रियार् सुहाग् अछे बलि इ कथा,
तोर्ने मुइँ नाइँ कहेबार्
बकर् बकर् हेइ ।
य़ेन् पर्कार् तके मुइँ कहेलिँ,
तुइ जल्दि आँखि साम्ने
देख्बु आरे भाइ ! ॥
*
[101]
मुँड़र् बाल् लमिथिबा य़ोगुन् य़तेखते,
आएँख् बुलि नाइँ पारे दुइ कोना पते ।
कजल् गार् सेथि आरु
नाइँ हेइ लगा,
मदर् बिना भुलि जाइछे
भूरु नचाडेगा ।
तुइ हेलगे पुहुँचि गले भाबुछेँ,
सखीर् हेइ आँखि उपर्
फुर्फुर्बा चँचल् ।
माछ्माने हलेइ देले तर्तरे,
नीला पदम् फुल् बागिर्
दिश्बा आएँख् जुगल् ॥
*
[102]
फेर् सेठाने फुर्फुर्बा प्रियार् डेब्रि ऊरु,
सरस् कद्ली खँभा बागिर् गोरा-बरन् सुरु ।
लागिथिला मोति-गुँथ्ला
घुन्सि सबुदिनिआँ,
सेटा अल्गेइ देइछे एभे
जानि खराप् समिआँ ।
सर्ले आमर् मधुर् प्रेम् मिलन,
ताके निजर् हाते मुइँ
घषि देसिँ धीरे ।
मोर् नखर् चिन्हा सेने नाइँना,
प्रिया एछेन् बिरहिनी
अछे केते दूरे ॥
*
[103]
बादल् भाइ ! सेत्किबेले मोर् कनिआँ जदि,
निदर् सुखे शुइथिबा दुइ आएँख् मुदि ।
तुम् पड़ि तुइ रहेबु सेन
घड़्घड़ि नाइँ कर्बु,
गोटे पहर् सेतार् पाशे
जगि बसिथिबु ।
प्रेमी मुइँ केन्सि मते सपने,
आसिथिमि गोरी मके
भिड़ि धरिथिबा ।
सेने जेन्ता मोर् गलानुँ सजनीर्,
कहँल् बाहाँ- लता-बन्धन्
खस्रि नाइँ जिबा ॥
*
[104]
बुन्दा बुन्दा पाएन्-मिशा शीतल् पबन् धीरे,
चलेइ करि जगेइ देबु प्रियाके मोर् घरे ।
फुटि उठ्बा सेत्किबेले
माल्ती कढ़ि नूआँ,
तार् संगे त खोल्बा आँएख्
सेने मोर् कनिआँ ।
लागि करि रहेबु तुइ खिड़्किने,
प्रिया छने घन् करि
ठअँकेएबा तके ।
लुकेइ करि बिज्लीके तोर् भितरे,
तुइ कहेबार् आरँभ् कर्बु
धीर् स्वरे तेन्के ॥
*
[105]
‘आगो सती सौभागिनि ! मुइँ बादल् जान,
तमर् पतिर् प्रिय सांग निजर् बलि मान ।
तमर् पाखे पठेइछन्
मनर् कथा बिशेस्,
मुइँ आसिछेँ आनि करि
ताँकर् ठानुँ सन्देस् ।
दुरिआ देशुँन् फिरि बाटे य़ेन्माने,
बिशोउथिसन् मुइँ निजे
करि गँभीर् गर्जन् ।
घर्के शीघ्र पठेइ देसिँ सेमन्के,
तन्द्रा सभे खोल्बा लागि
प्रियार् बेनी-बन्धन् ॥'
*
[106]
इ कथाके सुनि करि मोर् कनिआँ काने,
मुहुँ उपर् करि तके देखि नेबा छने ।
शिरीरामर् दूत बीर हनुमान्के जेन्ता,
देखि थिले मुहुँ टेकि लंकापुरे सीता ।
केएँ कथा बलि प्रियार्
हुरुद् आकुल् हेबा,
तके सेन देखि से त
केते आदर् कर्बा ।
बादल् भाइ ! तार् उतारु तोर् मुहुँन्,
कुशल् खबर् शुन्बा प्रिया
थिर् करि तार् मन् ।
बन्धुर् मुहुँन् शुन्ले पतिर् बारता,
खुसि हेसन् स्तिरीमाने
हेला बागिर् मिलन् ॥
*
[107]
बहुत् बरष् जीइँथा भाइ ! मोर् कथाके धरि,
निजे सुफल् पाएबा लागि पर्-उप्कार् करि ।
कहेबु मोर् प्रिया छुमे
धीरे कअँल् बचन्,
‘रामगिरिर् आश्रम्ने
तमर् पति अछन् ।
तमर् ठानुँ दूरे रहि जीइँछन्,
कुशल् कथा पचारुछन्
तम्के आगो अब्ला !
बिपत्तिने पड़िथिला परानी,
इ पर्कार् कुशल् कथा
पच्राएसन् पहेला ॥
*
[108]
उल्टा भाग्य छेकिदेइछे रास्ता तमर् पतिर्,
बहुत् दूरे रहिछन् से खीन् ताँकर् शरीर् ।
लह झरेइ ताँकर् गागर्
तपत् हेइ अति,
उषुम् साँस् छाड़्सि दुखे
आकुल् ताँकर् मति ।
मने निजर् करि केते कल्पना,
मिलन्-सुख पाएसन् से
तमर् संगे रसि ।
ताँकर् लेखेँ लह-भिजा तपत,
खीन् आकुल् तमर् देहि
उषुम् निनास् छाड़्सि ॥
*
[109]
तमर् प्रिय सखीमन्कर् आगे थाइ हाए !
खोला मुहेँ जेन् कथाके कहेबा उचित् आए ।
कहुथिले से मिठा कथा
तमर् काने काने,
मुहुँके तमर् छुइँबा लोभे
जिए चञ्चल् मने ।
एभे देखि नाइँ हेबार् ताहाँके,
कथा पदे ताँकर् मुहुँन्
नाइँ हेबार् शुनि ।
मोर् मुहेँ से जेन्ता भाबे कहिछन्,
ताँकर् आकुल् मनर् कथा
शुन प्रेम् गुनि ॥
*
[110]
‘आगो प्रिय-संगिनि ! तोर् अंग-लाएबन,
मुइँ प्रियंगु-लता पाशे कर्सिँ दरशन ।
तुइ धरिछु जेन् परकार्
मोहिनी चाहाँनी,
छन्छनिआँ हिर्नी-आँखि
देख्सिँ हेइ ठानि ।
चन्दर् पाशे तोर् मुहुँर् तेज् मन-लोभा,
देख्सिँ मजूर्- चन्द्रिकाने मुँड़र् बाल-शोभा ।
नदीमन्कर् सरु सरु लहरीथि,
तोर् भूरु-भंगीके त
देखि पार्सिँ मुइँ ।
मातर् हाय्, फुलेइ-रानी सजनि !
गुटे ठाने तोर् तुल
काहिँ दिशे नाइँ ॥
*
सुधा-शीतल् चन्दर् किरन् आनन्द् देसि मने,
मोर् भबनर् खिड़्कि-बाटे प्रबेश् कर्ले सेने ।
सेनेह आघर् अछे बलि
ताके देखि छनेक्,
बिराग् जोगुँ शिर्मती मोर्
फिरेइ नेबा आँएक् ।
ढाँकि हेइथिबा आँखि सजनीर्,
पता डब्डबि जाउथिबा
दुखे लह-भारे ।
दिश्बा प्रिया बाद्लिआ दिने थल्-पदम्,
जेन्ता मुजि नाइँ हुए कि
फुटि नाइँ पारे ॥
*
[97]
सेत्कि बेले बहुथिबा लमा निनास् बिकल्,
बाजि करि दुख्बा चएँड़् पतर् बागि कहँल् ।
बिना तेलर् सिनान् जोगुँ
भुर्भुसा बाल् मुँड़र्,
खेलउथिबा हाते लमेइ
गाल् पते से निजर् ।
झुम्रा लागि चाहुँथिबा सजनी,
सप्ने घले मोर् संगे तार्
हेबा बलि मिलन् ।
मातर् निद् नाइँ आसे ताहाके,
बिकल् करि देबा सेने
आँखिर् लह-झरन् ॥
*
[98]
मोर् बिरहर् पहिल् दिने माला छाड़ि करि,
शिखा बान्धि थिला सखी मने थय् धरि ।
शाएप् सर्ला परे मुइँ
हुर्दे उषत् हेइ,
खोलि देमि से शिखाके
दुःख् छाड़ि देइ ।
छुइँले जाहा दुखा देबा मूले तार्,
बड़ा कठिन् आरु बिषम्
हेइ एकाबेनी ।
बिना-कटा नखर् हाते ताहाके,
गाल् उप्रुँ घुचोउथिबा
पछके सजनी ॥
*
[99]
से अब्ला प्रियतमा झुरि मोर् बिरहे,
मूर्छि देइ थिबा सारा अलंकार् देहे ।
दुखे कष्टे से बार्बार्
निजर् शेज्-कोले,
कहँल् गागर् रखिथिबा
केन्सि मते हेले ।
सुन्द्री मोर् कन्देइ देबा तके बि,
झरेइ देबा बुन्दा बुन्दा
तोर् आँखिर् पानि ।
जेन्मान्कर् आत्मा कोमल् दयालु,
हुरुद् ताँकर् तर्लि जाएसि
परर् दुख जानि ॥
*
[100]
मोर् पाशे तोर् सखीर् मन् रमिछे सर्बदा,
मोर् लागि तार् बहुत् प्रेम्, जानिछे इ ददा ।
पहेला करि अल्गा अछे
मोर् ठानुँ से सुन्द्री,
मुइँ भाबुछेँ एन्ति दशा
भोगुथिबा गोरी ।
प्रियार् सुहाग् अछे बलि इ कथा,
तोर्ने मुइँ नाइँ कहेबार्
बकर् बकर् हेइ ।
य़ेन् पर्कार् तके मुइँ कहेलिँ,
तुइ जल्दि आँखि साम्ने
देख्बु आरे भाइ ! ॥
*
[101]
मुँड़र् बाल् लमिथिबा य़ोगुन् य़तेखते,
आएँख् बुलि नाइँ पारे दुइ कोना पते ।
कजल् गार् सेथि आरु
नाइँ हेइ लगा,
मदर् बिना भुलि जाइछे
भूरु नचाडेगा ।
तुइ हेलगे पुहुँचि गले भाबुछेँ,
सखीर् हेइ आँखि उपर्
फुर्फुर्बा चँचल् ।
माछ्माने हलेइ देले तर्तरे,
नीला पदम् फुल् बागिर्
दिश्बा आएँख् जुगल् ॥
*
[102]
फेर् सेठाने फुर्फुर्बा प्रियार् डेब्रि ऊरु,
सरस् कद्ली खँभा बागिर् गोरा-बरन् सुरु ।
लागिथिला मोति-गुँथ्ला
घुन्सि सबुदिनिआँ,
सेटा अल्गेइ देइछे एभे
जानि खराप् समिआँ ।
सर्ले आमर् मधुर् प्रेम् मिलन,
ताके निजर् हाते मुइँ
घषि देसिँ धीरे ।
मोर् नखर् चिन्हा सेने नाइँना,
प्रिया एछेन् बिरहिनी
अछे केते दूरे ॥
*
[103]
बादल् भाइ ! सेत्किबेले मोर् कनिआँ जदि,
निदर् सुखे शुइथिबा दुइ आएँख् मुदि ।
तुम् पड़ि तुइ रहेबु सेन
घड़्घड़ि नाइँ कर्बु,
गोटे पहर् सेतार् पाशे
जगि बसिथिबु ।
प्रेमी मुइँ केन्सि मते सपने,
आसिथिमि गोरी मके
भिड़ि धरिथिबा ।
सेने जेन्ता मोर् गलानुँ सजनीर्,
कहँल् बाहाँ- लता-बन्धन्
खस्रि नाइँ जिबा ॥
*
[104]
बुन्दा बुन्दा पाएन्-मिशा शीतल् पबन् धीरे,
चलेइ करि जगेइ देबु प्रियाके मोर् घरे ।
फुटि उठ्बा सेत्किबेले
माल्ती कढ़ि नूआँ,
तार् संगे त खोल्बा आँएख्
सेने मोर् कनिआँ ।
लागि करि रहेबु तुइ खिड़्किने,
प्रिया छने घन् करि
ठअँकेएबा तके ।
लुकेइ करि बिज्लीके तोर् भितरे,
तुइ कहेबार् आरँभ् कर्बु
धीर् स्वरे तेन्के ॥
*
[105]
‘आगो सती सौभागिनि ! मुइँ बादल् जान,
तमर् पतिर् प्रिय सांग निजर् बलि मान ।
तमर् पाखे पठेइछन्
मनर् कथा बिशेस्,
मुइँ आसिछेँ आनि करि
ताँकर् ठानुँ सन्देस् ।
दुरिआ देशुँन् फिरि बाटे य़ेन्माने,
बिशोउथिसन् मुइँ निजे
करि गँभीर् गर्जन् ।
घर्के शीघ्र पठेइ देसिँ सेमन्के,
तन्द्रा सभे खोल्बा लागि
प्रियार् बेनी-बन्धन् ॥'
*
[106]
इ कथाके सुनि करि मोर् कनिआँ काने,
मुहुँ उपर् करि तके देखि नेबा छने ।
शिरीरामर् दूत बीर हनुमान्के जेन्ता,
देखि थिले मुहुँ टेकि लंकापुरे सीता ।
केएँ कथा बलि प्रियार्
हुरुद् आकुल् हेबा,
तके सेन देखि से त
केते आदर् कर्बा ।
बादल् भाइ ! तार् उतारु तोर् मुहुँन्,
कुशल् खबर् शुन्बा प्रिया
थिर् करि तार् मन् ।
बन्धुर् मुहुँन् शुन्ले पतिर् बारता,
खुसि हेसन् स्तिरीमाने
हेला बागिर् मिलन् ॥
*
[107]
बहुत् बरष् जीइँथा भाइ ! मोर् कथाके धरि,
निजे सुफल् पाएबा लागि पर्-उप्कार् करि ।
कहेबु मोर् प्रिया छुमे
धीरे कअँल् बचन्,
‘रामगिरिर् आश्रम्ने
तमर् पति अछन् ।
तमर् ठानुँ दूरे रहि जीइँछन्,
कुशल् कथा पचारुछन्
तम्के आगो अब्ला !
बिपत्तिने पड़िथिला परानी,
इ पर्कार् कुशल् कथा
पच्राएसन् पहेला ॥
*
[108]
उल्टा भाग्य छेकिदेइछे रास्ता तमर् पतिर्,
बहुत् दूरे रहिछन् से खीन् ताँकर् शरीर् ।
लह झरेइ ताँकर् गागर्
तपत् हेइ अति,
उषुम् साँस् छाड़्सि दुखे
आकुल् ताँकर् मति ।
मने निजर् करि केते कल्पना,
मिलन्-सुख पाएसन् से
तमर् संगे रसि ।
ताँकर् लेखेँ लह-भिजा तपत,
खीन् आकुल् तमर् देहि
उषुम् निनास् छाड़्सि ॥
*
[109]
तमर् प्रिय सखीमन्कर् आगे थाइ हाए !
खोला मुहेँ जेन् कथाके कहेबा उचित् आए ।
कहुथिले से मिठा कथा
तमर् काने काने,
मुहुँके तमर् छुइँबा लोभे
जिए चञ्चल् मने ।
एभे देखि नाइँ हेबार् ताहाँके,
कथा पदे ताँकर् मुहुँन्
नाइँ हेबार् शुनि ।
मोर् मुहेँ से जेन्ता भाबे कहिछन्,
ताँकर् आकुल् मनर् कथा
शुन प्रेम् गुनि ॥
*
[110]
‘आगो प्रिय-संगिनि ! तोर् अंग-लाएबन,
मुइँ प्रियंगु-लता पाशे कर्सिँ दरशन ।
तुइ धरिछु जेन् परकार्
मोहिनी चाहाँनी,
छन्छनिआँ हिर्नी-आँखि
देख्सिँ हेइ ठानि ।
चन्दर् पाशे तोर् मुहुँर् तेज् मन-लोभा,
देख्सिँ मजूर्- चन्द्रिकाने मुँड़र् बाल-शोभा ।
नदीमन्कर् सरु सरु लहरीथि,
तोर् भूरु-भंगीके त
देखि पार्सिँ मुइँ ।
मातर् हाय्, फुलेइ-रानी सजनि !
गुटे ठाने तोर् तुल
काहिँ दिशे नाइँ ॥
*
[111]
तुइ प्रेमे केबे रिसा हेले आगो सुन्द्रि !
पथर् उप्रे धातु रसे तोर् चित्र करि ।
मुइँ मनैबा लागि तके
केन्सि मते हेले,
तोर् चरने पड़्बा इच्छा
कर्सिँ जेतेबेले ।
झरि आएसि सखि रे ! मोर् आँखिने,
केते उषुम् लह सेनुँ
नाइँ दिशे आउर् ।
चित्रे हेले तोर् मोर् इ मिलन्के,
सहि नाइँ पारे सते
दइब् केड़े निठुर् ॥
*
[112]
केन्सि मते पाएले सखि ! तते मुइँ सपने,
पोटालि करि धर्बा लागि प्रेम् आकुल् मने ।
शूइन्के मोर् दुइ हात्के
लमेइ देसिँ जेबे,
मोर् एन्ता अबस्थाके
देखि दुखी भाबे ।
इनर् बन-देबीमन्कर् आँखिनुँ,
मोति मेतार् मोटा लह
बुन्दा बुन्दा झरि ।
गछ्मान्कर् कअँलिआ पतरे,
नाइँ थिपे, एन्ति कथा
नुहे आलो सुन्द्रि ! ॥
*
[113]
हिमालयर् जेन् पबन् देबदारु गछर्,
नूआँ कअँल् पतर् टिपि भेदिकरि तर्तर् ।
सेतार् रसर् झरे निजे
बास्ना महकेइ,
दक्षिन् दिगे बहि जाएसि
धीरे खुसि देइ ।
भाब्सिँ मुइँ हेइ पबन् आसिछे,
गुन्मति गो ! केते आगुन्
तोर् देहिके छुइँ ।
हेतिर् गुने मोर् हातके लमेइ,
पोटालि करि धर्सिँ ताके
प्रेम्- रसे मुइँ ॥
*
[114]
केन् उपाय् कर्के बड़ा लमापहर् राति,
छोट् हेइकरि छनेक् परा जल्दि जाएता बिति ।
इ दिन् घले सबुबेल्के
केन्ता उपै कले,
अलप् अलप् खरा धीरे
दउथिता भले ।
एन्ता सिने भाबुथिसि मन मोर्,
आगो चंचल्- आँखि गोरि !
इच्छा नाइँ पूरे ।
मन् अनाथ हेइ जाएसि निराशे,
तोर् बिरह सतेइ देसि
मते बहुत् दूरे ॥
*
[115]
निज्के मुइँ दम् देइकरि बहुत् भालि भालि,
इ अप्नार् परान्के त रखिछेँ सँभालि ।
कल्यानि गो ! हेतिर् लागि
सेने तुइ पुनि,
अति बिकल् नेइँ हेबु
मोर् कथाके गुनि ।
किए मजा करुथिसि सुखे त,
आरु किए दुखे बुड़ि
करुथिसि चिन्ता ।
इ सँसारे प्रानीमन्कर् अबस्था,
केभे तल् केभे उपर्
चका-किन्द्रा जेन्ता ॥
*
[116]
उठ्ले निदुन् नाग-शयन् महापर्भु हरि,
मुक्ति मके मिल्बा तेने शाएप् जिबा सरि ।
चाएर् मास रहेला आरु
सेत्कि दिन् पते,
आएँख् मुजि कटेइ देबु
समिआँ केन्सि मते ।
तार् पछे त मिश्मा आमे दुइ जन्,
शरत् रुतुर् जन्-उकिआ
उजल् मधुर् राति ।
बिरह बेले जेन् जेन्टा भाबिछुँ,
से से इच्छा पूरन् कर्मा
प्रेम्- सुखे माति ॥’
*
[117]
फेर् कहिछन् तमर् बर् मोर् मुहेँ इ कथा,
‘गलामाली ! मोर् गलाके भिड़ि जुरेइ मथा ।
आनन्द् मने थरे शेजे
निदे थिलु शुइ,
मातर् जल्दि उठ्लु चेति
सुस्कि करि तुइ ।
मुइँ बार्बार् तेन्के तके पचार्लिँ,
मन् भित्रे हँसि करि
उत्तर् देलु आप्टि,
‘सप्ने मुइँ देख्लिँ सते रसिछ,
दुस्रा गुटे धांग्री संगे
तमे बड़ा कप्टी !’ ॥
*
[118]
जनेइ देलिँ एन्ति भाबे तके सन्तक् सबु,
आश्रम्ने मुइँ रहिछेँ कुशल् मंगल् जान्बु ।
मोर् ठाने गो ! लोक्मन्कर्
असत् निन्दा धरि,
तुइ अपर्ते नाइँ कर्बु
कलिआ-आँखि सुन्द्रि !
भिने भिने हेइथिले बिरहे
सरि जाएसि सेनेह आरु नेइँ रहे,
एन्ति कथा लोक् कहेसन्
मातर् सत नाइँसे ।
भोग् नाइँ हेइ बलि करि त
सेनेह सबु रस्-भर्ति बहुत,
प्रेम् रूपे जमा हेसि
प्रिय जनर् पासे ॥’
*
[119]
तोर् सखीके दम् धराबु कहि करि एन्ता,
से पहेला बिरह-दुखे करुथिबा चिन्ता ।
शिबर् षँड् कोड़िछे जार्
शुर्ङ्गे खुरा मारि,
से कएलास् गिरिनुँ तुइ
जल्दि आएबु फिरि ।
प्रिया-लगुन् किछु सन्तक् संगे तार्,
कुशल् खबर् आनि करि
दर्-मरा मोर् परान् ।
रख्या कर्बु बादल् भाइ ! इ जीबन्,
शिथिल् आए सकाल् बेलार्
कुन्द फुल समान् ॥
*
[120]
सुन्दर् बादल् भाइ रे ! तोर् बन्धु मुइँ आएँ,
कहेलिँ जाहा सते मोर् इ कारज् कर्बु काएँ ?
तोर्नुँ उत्तर् सुन्ले एका
अछे तोर् इच्छा,
इ कथा मुइँ नाइँ भाबेँ
तुइ त बड़ा सच्चा ।
चातक्माने माग्ले तके केभे बि,
कथा किछि नाइँ कहु
पाएन् देसु मातर् ।
पूरन् हेले माग्बा लोकर् पार्थना,
सेटा आए साधु लोकर्
बिना-बचन् उत्तर् ॥
*
[121]
बन्धु भाबे हउ नेहेले बिरही बलि मके,
नेहेले तुइ मोर् पर्ति कुर्पा करि टिके ।
मोर् प्रिय इ कारज् निश्चे
कर्बु सुबिचारि,
य़दर्पि मोर् नाइँसे उचित्
कलिँ जेन् गुहारि ।
बर्षा काले धरि सुन्दर् चेहेरा,
मन् इच्छा तुइ बुलुथाआ
देशे देशे जाइ ।
तोर् सजनी बिज्ली ठानुँ छने बि,
केभेहेले तोर् बिच्छेद्
नाइँ हउ रे भाइ !” ॥
* * *
( उपसंहार - Translator's Conclusion)
[122]
मेघदूत काब्य इने समापत हेला,
संस्कुरुतुन् कोस्ली भासार् अनुबाद पहेला ।
महाकबि कालिदासर्
लेखनीथि प्रेम-रसर्
पस्रा मेलि अछे जुगल्
मिलनर् शोभा ।
प्रकुर्ति आर् मुन्स भित्रे
गभीर् भाब काब्य-चित्रे
देखेइछन् कबि-गुरु
केते मन्-लोभा ।
मेघर् मुहेँ जख्य जुआन् प्रिया पाखे खबर्,
पठेइथिला दुखी मने केते प्रेम् भाबर् ।
से कथाके जानि करि मुकति,
देले ताके अभिशापुँन्
जक्ष-रजा कुबेर् ।
कोश्ली गीत छन्दे सुन्दर् मेघदूत्,
लेख्ला सरस् मधुर् काब्य
हरेकृष्ण मेहेर् ॥
= = = = = = = = = = =
(इति कोशली मेघदूत सम्पूर्ण)
*
Here ends KOSHALI MEGHADUTA
of
Dr. HAREKRISHNA MEHER
= = = = = = =
तुइ प्रेमे केबे रिसा हेले आगो सुन्द्रि !
पथर् उप्रे धातु रसे तोर् चित्र करि ।
मुइँ मनैबा लागि तके
केन्सि मते हेले,
तोर् चरने पड़्बा इच्छा
कर्सिँ जेतेबेले ।
झरि आएसि सखि रे ! मोर् आँखिने,
केते उषुम् लह सेनुँ
नाइँ दिशे आउर् ।
चित्रे हेले तोर् मोर् इ मिलन्के,
सहि नाइँ पारे सते
दइब् केड़े निठुर् ॥
*
[112]
केन्सि मते पाएले सखि ! तते मुइँ सपने,
पोटालि करि धर्बा लागि प्रेम् आकुल् मने ।
शूइन्के मोर् दुइ हात्के
लमेइ देसिँ जेबे,
मोर् एन्ता अबस्थाके
देखि दुखी भाबे ।
इनर् बन-देबीमन्कर् आँखिनुँ,
मोति मेतार् मोटा लह
बुन्दा बुन्दा झरि ।
गछ्मान्कर् कअँलिआ पतरे,
नाइँ थिपे, एन्ति कथा
नुहे आलो सुन्द्रि ! ॥
*
[113]
हिमालयर् जेन् पबन् देबदारु गछर्,
नूआँ कअँल् पतर् टिपि भेदिकरि तर्तर् ।
सेतार् रसर् झरे निजे
बास्ना महकेइ,
दक्षिन् दिगे बहि जाएसि
धीरे खुसि देइ ।
भाब्सिँ मुइँ हेइ पबन् आसिछे,
गुन्मति गो ! केते आगुन्
तोर् देहिके छुइँ ।
हेतिर् गुने मोर् हातके लमेइ,
पोटालि करि धर्सिँ ताके
प्रेम्- रसे मुइँ ॥
*
[114]
केन् उपाय् कर्के बड़ा लमापहर् राति,
छोट् हेइकरि छनेक् परा जल्दि जाएता बिति ।
इ दिन् घले सबुबेल्के
केन्ता उपै कले,
अलप् अलप् खरा धीरे
दउथिता भले ।
एन्ता सिने भाबुथिसि मन मोर्,
आगो चंचल्- आँखि गोरि !
इच्छा नाइँ पूरे ।
मन् अनाथ हेइ जाएसि निराशे,
तोर् बिरह सतेइ देसि
मते बहुत् दूरे ॥
*
[115]
निज्के मुइँ दम् देइकरि बहुत् भालि भालि,
इ अप्नार् परान्के त रखिछेँ सँभालि ।
कल्यानि गो ! हेतिर् लागि
सेने तुइ पुनि,
अति बिकल् नेइँ हेबु
मोर् कथाके गुनि ।
किए मजा करुथिसि सुखे त,
आरु किए दुखे बुड़ि
करुथिसि चिन्ता ।
इ सँसारे प्रानीमन्कर् अबस्था,
केभे तल् केभे उपर्
चका-किन्द्रा जेन्ता ॥
*
[116]
उठ्ले निदुन् नाग-शयन् महापर्भु हरि,
मुक्ति मके मिल्बा तेने शाएप् जिबा सरि ।
चाएर् मास रहेला आरु
सेत्कि दिन् पते,
आएँख् मुजि कटेइ देबु
समिआँ केन्सि मते ।
तार् पछे त मिश्मा आमे दुइ जन्,
शरत् रुतुर् जन्-उकिआ
उजल् मधुर् राति ।
बिरह बेले जेन् जेन्टा भाबिछुँ,
से से इच्छा पूरन् कर्मा
प्रेम्- सुखे माति ॥’
*
[117]
फेर् कहिछन् तमर् बर् मोर् मुहेँ इ कथा,
‘गलामाली ! मोर् गलाके भिड़ि जुरेइ मथा ।
आनन्द् मने थरे शेजे
निदे थिलु शुइ,
मातर् जल्दि उठ्लु चेति
सुस्कि करि तुइ ।
मुइँ बार्बार् तेन्के तके पचार्लिँ,
मन् भित्रे हँसि करि
उत्तर् देलु आप्टि,
‘सप्ने मुइँ देख्लिँ सते रसिछ,
दुस्रा गुटे धांग्री संगे
तमे बड़ा कप्टी !’ ॥
*
[118]
जनेइ देलिँ एन्ति भाबे तके सन्तक् सबु,
आश्रम्ने मुइँ रहिछेँ कुशल् मंगल् जान्बु ।
मोर् ठाने गो ! लोक्मन्कर्
असत् निन्दा धरि,
तुइ अपर्ते नाइँ कर्बु
कलिआ-आँखि सुन्द्रि !
भिने भिने हेइथिले बिरहे
सरि जाएसि सेनेह आरु नेइँ रहे,
एन्ति कथा लोक् कहेसन्
मातर् सत नाइँसे ।
भोग् नाइँ हेइ बलि करि त
सेनेह सबु रस्-भर्ति बहुत,
प्रेम् रूपे जमा हेसि
प्रिय जनर् पासे ॥’
*
[119]
तोर् सखीके दम् धराबु कहि करि एन्ता,
से पहेला बिरह-दुखे करुथिबा चिन्ता ।
शिबर् षँड् कोड़िछे जार्
शुर्ङ्गे खुरा मारि,
से कएलास् गिरिनुँ तुइ
जल्दि आएबु फिरि ।
प्रिया-लगुन् किछु सन्तक् संगे तार्,
कुशल् खबर् आनि करि
दर्-मरा मोर् परान् ।
रख्या कर्बु बादल् भाइ ! इ जीबन्,
शिथिल् आए सकाल् बेलार्
कुन्द फुल समान् ॥
*
[120]
सुन्दर् बादल् भाइ रे ! तोर् बन्धु मुइँ आएँ,
कहेलिँ जाहा सते मोर् इ कारज् कर्बु काएँ ?
तोर्नुँ उत्तर् सुन्ले एका
अछे तोर् इच्छा,
इ कथा मुइँ नाइँ भाबेँ
तुइ त बड़ा सच्चा ।
चातक्माने माग्ले तके केभे बि,
कथा किछि नाइँ कहु
पाएन् देसु मातर् ।
पूरन् हेले माग्बा लोकर् पार्थना,
सेटा आए साधु लोकर्
बिना-बचन् उत्तर् ॥
*
[121]
बन्धु भाबे हउ नेहेले बिरही बलि मके,
नेहेले तुइ मोर् पर्ति कुर्पा करि टिके ।
मोर् प्रिय इ कारज् निश्चे
कर्बु सुबिचारि,
य़दर्पि मोर् नाइँसे उचित्
कलिँ जेन् गुहारि ।
बर्षा काले धरि सुन्दर् चेहेरा,
मन् इच्छा तुइ बुलुथाआ
देशे देशे जाइ ।
तोर् सजनी बिज्ली ठानुँ छने बि,
केभेहेले तोर् बिच्छेद्
नाइँ हउ रे भाइ !” ॥
* * *
( उपसंहार - Translator's Conclusion)
[122]
मेघदूत काब्य इने समापत हेला,
संस्कुरुतुन् कोस्ली भासार् अनुबाद पहेला ।
महाकबि कालिदासर्
लेखनीथि प्रेम-रसर्
पस्रा मेलि अछे जुगल्
मिलनर् शोभा ।
प्रकुर्ति आर् मुन्स भित्रे
गभीर् भाब काब्य-चित्रे
देखेइछन् कबि-गुरु
केते मन्-लोभा ।
मेघर् मुहेँ जख्य जुआन् प्रिया पाखे खबर्,
पठेइथिला दुखी मने केते प्रेम् भाबर् ।
से कथाके जानि करि मुकति,
देले ताके अभिशापुँन्
जक्ष-रजा कुबेर् ।
कोश्ली गीत छन्दे सुन्दर् मेघदूत्,
लेख्ला सरस् मधुर् काब्य
हरेकृष्ण मेहेर् ॥
= = = = = = = = = = =
(इति कोशली मेघदूत सम्पूर्ण)
*
Here ends KOSHALI MEGHADUTA
of
Dr. HAREKRISHNA MEHER
= = = = = = =
No comments:
Post a Comment