‘Tanka’ Poems (Extracts) : संस्कृत ‘तान्का’-कविता
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‘Hāsitāsyā
Vayasyā’ (Anthology of Haiku-Sijo-Tanka Poems)
Sanskrit
Kāvya By : Dr. Harekrishna Meher
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डॉ. हरेकृष्ण-मेहेर-प्रणीत संस्कृत काव्य
‘हासितास्या वयस्या’
(हाइकु-सिजो-तान्का कविताओं की सङ्कलना)
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‘हासितास्या वयस्या’ काव्य का नामकरण :
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यह अभिनव नामकरण अत्यन्त रोचक भाव से किया गया है
और यह कवि-प्रतिभाका एक सुपरिचायक तत्त्व है ।
‘हाइकु’ शब्द के प्रथम वर्ण ‘हा’,
‘सिजो’ शब्द के प्रथम वर्ण ‘सि’
एवं ‘तान्का’ शब्द के प्रथम वर्ण ‘ता’
इन तीनों को मिलाकर ‘हासिता’ शब्द बनाया है कवि ने ।
यह ‘हासिता’ शब्द संक्षेप में इस तीनों छन्दों का सूचक है ।
‘वयस्या’ शब्द का अर्थ है ‘सखी’ या ‘सहेली’ ।
इसका तात्पर्य है कविता-रूपिणी सखी ।
संस्कृत में ‘आस्य’ शब्द का अर्थ है ‘मुख’ ।
‘हासितास्या’ शब्द के दो अर्थ किये जा सकते हैं श्लेष-माध्यम से ।
(१) प्रथम मुख्य अर्थ इसप्रकार है :
‘हासिता’ (= हासिता:) आस्ये यस्याः सा, हासितास्या ।
जिसके मुख में ‘हासिता’ है, अर्थात् हाइकु, सिजो और तान्का छन्दों का उच्चारण है,
ऐसी ‘वयस्या’ सखी कविता ।
इसप्रकार बहुब्रीहि समास में यह अर्थ अभिव्यक्त होता है ।
(२) अन्य अर्थ है इसप्रकार :
‘हासितम्’ (अर्थात् ‘हास- युक्तम्’) आस्यं (मुखं) यस्याः सा, हासितास्या ।
जिसका मुख हास से अर्थात् मुस्कान से युक्त है,
जिसका मुख हास से अर्थात् मुस्कान से युक्त है,
ऐसी ‘वयस्या’, सखी कविता ।
कविता-सखी का मुख मुस्कानभरा है और उस मुख में
हाइकु-सिजो-तान्का छन्दों का परिप्रकाश भी है ।
इन दो प्रकार अर्थों को व्यक्त करता है
इस काव्य का अभिनव नामकरण ‘हासितास्या वयस्या’ ।
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आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक पारम्परिक एवं नव्य संस्कृत छन्दों के साथ
कुछ विदेशी साहित्य के काव्य-छन्दों का प्रयोग भी प्रचलित हुआ है ।
जापानी छन्द हैं ’हाइकु’, ‘तान्का’ एवं कोरिया-देशीय छन्द है ‘सिजो’ ।
ये काव्य-साहित्य के लघु और सार-गर्भक छन्द हैं ।
इसलिये भारतीय साहित्य में भी इन छन्दों का प्रयोग होने लगा है ।
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‘हाइकु’
छन्द में तीन अंश होते हैं : (५-७-५ वर्ण) ।
(मिश्रित
हाइकु भी बनाया
जा सकता है : ५-५-७
वर्ण अथवा ७-५-५
वर्ण ।)
‘सिजो’ छन्द
में छह अंश होते हैं : (८-७-८-७-८-७ वर्ण) ।
‘तान्का’ छन्द
में पाँच अंश होते हैं : (५-७-५-७-७
वर्ण) ।
‘हासितास्या वयस्या’ काव्य
में आधुनिक संस्कृत-साहित्य
में अन्तर्भुक्त
विदेशी छन्द ‘हाइकु’,
‘सिजो’ और ‘तान्का’
का प्रयोग किया गया है ।
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Some ‘Tanka’ Poems from ‘Hāsitāsyā
Vayasyā’ Kāvya
तान्का-कविता: (‘हासितास्या वयस्या’- काव्यतः)
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दैन्यदा वन्या
अधन्या गृहशून्याः ।
द्रविण-बन्धः
कर्मिणां निर्मीयते,
प्रवहत्यर्थधारा ॥’ (वन्या)
कर्मिणां निर्मीयते,
प्रवहत्यर्थधारा ॥’ (वन्या)
(घोर वन्या से पीड़ित गृहहीन लोगों की शोचनीय अवस्था, सहायता-अर्थराशि का
धन-लोलुप शोषक कर्मियों द्वारा लुण्ठन विषय इस कविता में गर्भित है ।)
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धन-लोलुप शोषक कर्मियों द्वारा लुण्ठन विषय इस कविता में गर्भित है ।)
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कर्गज-पुष्पं
मध्येमार्गं मञ्जुलं
निर्गन्धं भाति ।
आधुनिकी सभ्यता
उपभोग्य-दर्शना ॥ (रिक्तोदरा)
(कागज-फूल रास्ते के बीच सुन्दर दीखता है, गन्धहीन है, फिर भी सुहाना लगता है ।
आधुनिक सभ्यता बाह्य चाकचक्य से आकर्षणीय है, परन्तु अन्तःसारशून्य है ।)
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आधुनिक सभ्यता बाह्य चाकचक्य से आकर्षणीय है, परन्तु अन्तःसारशून्य है ।)
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अपसंस्कृतिः
स्वच्छन्द-विलासिनी ।
उन्मादोर्मिला
उच्छल-पयोधारा
विशङ्का कुलङ्कषा ॥ (प्रदूषिका)
(भावार्थ : एक
संस्कृति पर अन्य संस्कृति का अनुचित प्रभाव या कुप्रभाव अपसंस्कृति है ।
वह एक स्वेच्छागामिनी नदी है, मनमानी विलास करती है, उन्माद-ऊर्मि से भरी है ।
उसकी पयोधारा उछलती रहती है । वह स्वयं व्याकुल है, परन्तु निर्भय होकर
अन्य कुल को भ्रष्ट करती है ।)
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वह एक स्वेच्छागामिनी नदी है, मनमानी विलास करती है, उन्माद-ऊर्मि से भरी है ।
उसकी पयोधारा उछलती रहती है । वह स्वयं व्याकुल है, परन्तु निर्भय होकर
अन्य कुल को भ्रष्ट करती है ।)
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स्वाधीनतायाः
नार्थः स्वेच्छाचारिता,
न विमार्गता ।
सा वै संयम-रूपा
संसारोपकारिणी ॥ (स्वाधीनता)
(भावार्थ : स्वाधीनता का आशय
स्वेच्छाचारिता नहीं या विपथगामिता नहीं है ।
वह तो संयम-स्वरूपा है, जो संसार की कल्याणकारिणी है ।)
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जगन्मोहिनी
वशीकरोति विश्वं
प्रकामं काम्या
भ्राम्य-दूरभाषिका
स्वाधीन-भर्त्तृकेव
॥ (विमोहिनी)
(भावार्थ : अलङ्कार-शास्त्र में वर्णित
स्वाधीन-भर्त्तृका नायिका जैसे अपनी
मोहिनी शक्ति से
स्वामी को अपने वश में सदा रखती है, वैसे चल-दूरभाषिका अर्थात् मोबाइल् फोन् आधुनिक युग में
अपनी सम्मोहिनी से सारे विश्व को अर्थात् उसके ग्रहीता जन को अपना वशीभूत करती है ।
नायिका निश्चित ही स्वामी की अत्यन्त अनुराग से अभिलषिता है, इधर दूरभाषिका भी
ग्रहीता की अत्यन्त चाह से ईप्सिता है |।)
स्वामी को अपने वश में सदा रखती है, वैसे चल-दूरभाषिका अर्थात् मोबाइल् फोन् आधुनिक युग में
अपनी सम्मोहिनी से सारे विश्व को अर्थात् उसके ग्रहीता जन को अपना वशीभूत करती है ।
नायिका निश्चित ही स्वामी की अत्यन्त अनुराग से अभिलषिता है, इधर दूरभाषिका भी
ग्रहीता की अत्यन्त चाह से ईप्सिता है |।)
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Haiku-Sijo-Tanka Poems Anthology :
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Kaveh Harekrishna-Meherasya
Sanskrita-Rachanaasu Haiku-Sijo-Tanka-Kavitaah :
Research Article
By: Sasmita Sahu : Link:
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Published in Prachi Prajna (Sanskrit E-Journal), Issue-6, June-2018.
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