Original Hindi Film Song :
‘Ramachandra Kahgaye Siyaa Se’ *
रामचन्द्र कहगये सिया से * (Film ‘GOPI’ 1970)
*
Sanskrit Translation by : Dr.Harekrishna Meher
(As per Original Hindi Tune)
Sanskrit Version Lyrics : रामचन्द्र इदमुवाच सीताम् *
‘Ramachandra Idamuvaacha Sitaam’
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Winner in Sanskrit Lyric Translation Competition
Conducted by Sanskrit Vaartaavali, DD News Channel, Delhi.
Song Program Telecast on 22 May 2021, Saturday at 6 pm.
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Sanskrit Singer : Shambhu Prasad Mishra (New Delhi)
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Courtesy and Gratitude to:
DDNEWS, Sanskrit Vaartavali: Full Episode (22 May 2021):
Link:
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Separate Full Song Video:
YouTube : HKMeher Channel:
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मूल-हिन्दीगीतम् : रामचन्द्र कहगये सिया से *
चलचित्रम् : गोपी (१९७०) *
मूलस्वरानुकूल-संस्कृतानुवादकः - डॉ. हरेकृष्ण-मेहेरः
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मानस रे !
रामचन्द्र इदमुवाच सीताम् -
एवं कलियुगमागन्ता,
अशिता हंसः पलाल-कणिकां
काको मुक्तां भक्षयिता ॥ (०)
मानस रे !
*
अपृच्छत् सीता - भगवन् !
कलियुगे वै धर्मं कर्म च
कोऽपि न किं मानयिता ?
तदा प्रभुरुवाच -
धर्मो भविता कर्म च भविता
परन्तु लज्जा नो भविता ।
प्रतिवृत्तं वै मातर-पितरौ
पुत्रो नेत्रे तर्जयिता ॥
रामचन्द्र इदमुवाच सीताम् ॥ (१)
*
भविता राज-प्रजागण-मध्ये
कर्ष-स्पर्धा वासर-नक्तम्, वासर-नक्तम् ।
पदे पदे खलु उभौ कर्तारौ
निजं निजं स्वैराचारम्, स्वैराचारम् ।
हस्ते यस्य हि भविता यष्टी
नूनमसौ महिषं नेता ।
अशिता हंसः पलाल-कणिकां
काको मुक्तां भक्षयिता ॥
रामचन्द्र इदमुवाच सीताम् ॥ (२)
*
शृणु सीते ! कलियुगे च भविता
काल-धनं बहु काल-मनः, बहु काल-मनः ।
चौर-वञ्चका नगर-श्रेष्ठिनः
प्रभु-भक्तजनो धनहीनः, जनो धनहीनः ।
यो लोभी, भोगी भविताऽसौ
योगीति स्वं वर्णयिता ।
अशिता हंसः पलाल-कणिकां
काको मुक्तां भक्षयिता ॥
रामचन्द्र इदमुवाच सीताम् ॥ (३)
*
मन्दिरं खलु शून्यं शून्यम्,
भविता पूर्णा मधुशाला, मधुशाला ।
समं स्वपित्रा पूर्ण-सभायां
नर्तिष्यति वै गृह-बाला, वै गृहबाला ।
कीदृश-कन्या-दानं स पिता
कन्या-वित्तं भक्षयिता ॥
अशिता हंसः पलाल-कणिकां
काको मुक्तां भक्षयिता ॥ (४)
मानस रे !
*
मन्दा वै मूर्ख-प्रीतिः
मन्दो द्यूते जयोऽस्ति,
कुसङ्गस्थं सौख्यं धाविता दूरम्,
भ्रातः ! धाविता दूरम् ।
कज्जलस्य कक्ष-मध्ये
कीदृग् यत्नं कुरु परम्,
कज्जल-चिह्नं भ्रातः ! लगेदवश्यम् ॥ (५)
मानस रे !
*
कियद्-यतिर्वा कोऽपि,
कियत्-सती वा काऽपि,
कामिनी-सङ्गे कामो
जागर्ति नूनम्, जागर्ति नूनम् ।
शृणु गोपीरामो वक्ति,
यस्य नाम काम इति,
तत्पाश-दाम गले भवेत् सुलग्नम्, भ्रातः !
तत्पाश-दाम गले भवेत् सुलग्नम् ॥ (६)
मानस रे !
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मूल-हिन्दीगीत : रामचन्द्र कह गये सिया से *
चलचित्र : गोपी (१९७०)
गीतकार : राजेन्द्र कृष्ण *
संगीतकार : कल्याणजी आनन्दजी *
गायक : महेन्द्र कपूर *
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हे जी रे !
रामचन्द्र कहगये सिया से,
ऐसा कलजुग आयेगा,
हंस चुगेगा दाना दून का
कौवा मोती खायेगा ॥ (०)
*
सिया ने पूछा, भगवन् !
कलजुग में धर्म कर्म को
कोई नहीं मानेगा ?
तो प्रभु बोले,
धर्म भी होगा कर्म भी होगा
परन्तु शर्म नहीं होगी ।
बात-बात में मात-पिता को
बेटा आँख दिखायेगा ॥ (१)
*
रामचन्द्र कहगये सिया से,
राजा और प्रजा दोनों में
होगी निसदिन खींचातानी, खींचातानी ।
कदम कदम पर करेंगे दोनों
अपनी अपनी मनमानी, मनमानी ।
जिसके हाथ में होगी लाठी
भैंस वही ले जायेगा ।
हंस चुगेगा दाना दून का
कौवा मोती खायेगा ॥ (२)
*
सुनो सिया ! कलयुग में काला
धन और काले मन होंगे, काले मन होंगे ।
चोर उचक्के नगर सेठ और
प्रभुभक्त निर्धन होंगे, निर्धन होंगे ।
जो होगा लोभी और भोगी
वो योगी कहलायेगा ।
हंस चुगेगा दाना दून का
कौवा मोती खायेगा ॥ (३)
*
मन्दिर सूना सूना होगा
भरी रहेंगी मधुशाला, मधुशाला ।
पिता के संग-संग भरी सभा में
नाचेंगी घर की बाला, घर की बाला ।
कैसा कन्यादान पिता ही
कन्या का धन खायेगा ।
हंस चुगेगा दाना दून का
कौवा मोती खायेगा ॥ (४)
*
मूरख की प्रीत बुरी,
जूए की जीत बुरी,
बुरे संग बैठ चैन भागे ही भागे,
रे भाई ! भागे रे भागे ।
काजल की कोठरी में
कैसे ही जतन करो,
काजल का दाग भाई ! लागे रे लागे
रे भाई ! लागे रे लागे ।। (५)
हे जी रे !
*
कितना जति को कोई,
कितना सती हो कोई,
कामिनी के संग काम
जागे ही जागे, जागे ही जागे ।
सुनो कहे गोपीराम,
जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही लागे,
रे भाई ! लागे ही लागे ॥ (६)
हे जी रे !
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