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मूल हिन्दी कविता : ओ भवितव्य के अश्वो !
रचयिता : डॉ. महेन्द्र भटनागर
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ओ भवितव्य के अश्वो !
तुम्हारी रास
हम
आश्वस्त अंतर से सधे
मजबूत हाथों से दबा
हर बार मोड़ेंगे ।
वर्चस्वी,
धरा के पुत्र हम
दुर्धर्ष,
श्रम के बन्धु हम
तारुण्य के अविचल उपासक
हम तुम्हारी रास
ओ भवितव्य के अश्वो !
सुनो
हर बार मोड़ेंगे ।
ओ नियति के स्थिर ग्रहो !
श्रम-भाव तेजोदृप्त
हम
अक्षय तुम्हारी ज्योति
ग्रस कर आज छोड़ेंगे ।
तितिक्ष अडिग
हमें दुर्ग्रह नहीं अब
अन्तरिक्ष अगम्य ।
निश्चय
ओ नियति के
पूर्व निर्धारित ग्रहो !
हम ..
हम तुम्हारी ज्योति
ग्रस कर आज छोड़ेंगे ।
ओ अदृष्ट की लिपियो !
कठिन प्रारब्ध हाहाकार के
अविजेय दुर्गो !
हम उमड़
श्रम-धार से
हर हीन होनी की
लिखावट को मिटाएंगे ।
मदिर मधुमान
श्रम संगीत से
हम
हर तबाही के
अभेदे दुर्ग तोड़ेंगे ।
ओ भवितव्य के अश्वो !
तुम्हारी रास मोड़ेंगे ।
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Hindi Poem of Dr. Mahendra Bhatnagar
Oriya Translation By : Dr. Harekrishna Meher
(He Bhavitavyara Aśvagaņa ! )
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हे भबितव्यर अश्वगण !
मूल हिन्दी कविता - ओ भवितव्य के अश्वो ! : डॉ. महेन्द्र भटनागर.
ओड़िआ भाषान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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हे भबितव्यर अश्वगण !
तुमरि लगाम्
आमे समस्ते
आश्वस्त चित्तरे प्रवृत्त
शक्तिशाळी हातरे दबाइ
प्रति थर मोड़ि चालिबुँ स्वेच्छारे ॥
*
महाबळशाळी आमे,
बसुन्धरार सन्तान ।
दुर्द्धर्ष समस्ते,
श्रमर बन्धु आमे,
तरुणिमार अबिचळित उपासक आमे ।
हे भबितव्यर अश्वगण !
शुण,
तुमरि लगाम् आमे स्वेच्छारे
मोड़ि चालिबुँ प्रति थर ॥
*
हे नियतिर स्थिर ग्रहगण !
श्रम-भाब तेजोदृप्त
आमे अक्षय
तुमरि ज्योतिकु
आजि ग्रास करिबुँ निश्चय ॥
*
तितिक्षु अचळ आम पाइँ
आजि आउ दुर्ग्रह नुहे
अन्तरीक्ष अगम्य ।
हे नियतिर पूर्ब-निर्द्दिष्ट ग्रहगण !
आमे,
आमे तुमरि ज्योतिकु
ग्रास करिबुँ निश्चय ॥
*
हे अदृष्टर लिपिगण !
कठिन प्रारब्ध हाहाकारर
अपराजेय दुर्गराजि !
श्रम-धारारे उच्छळ होइ
प्रत्येक हीन घटणार लेखाकु
आमे लिभाइदेबुँ ।
मदिर आउ मधुमान् श्रम-सङ्गीत य़ोगे
आमे प्रत्येक ध्वंसर
अभेद्य दुर्गकु भाङ्गिदेबुँ ।
हे भबितव्यर अश्वगण !
आमे तुमरि लगाम्
मोड़ि चालिबुँ निज इच्छामते ॥
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