मूल हिन्दी कविता : अदम्य
रचयिता : डॉ. महेन्द्र भटनागर
= = = = = = = = = =
दूर-दूर तक छाया सघन कुहर,
कुहरे को भेद
डगर पर बढ़ते हैं हम ।
चट्टानों ने जब-जब पथ अवरुद्ध किये,
चट्टानों को तोड़ नयी राहें गढ़ते हैं हम ।
ठंडी तेज हवाओं के वर्तुल झोंके आते हैं,
तीव्र चक्रवातों के सम्मुख सीना ताने
पग-पग अड़ते हैं हम ।
सागर-तट पर टकराता भीषण ज्वारों का पर्वत,
उमड़ी लहरों पर चढ़ पूरी ताकत से लड़ते हैं हम ।
दरियाओं की बाढ़ें तोड़ किनारे बहती हैं,
जल-भँवरों, आवेगों को थाम
सुरक्षा-यान चलाते हैं हम ।
काली अंधी रात कयामत की
धरती पर घिरती है जब-जब,
आकाशों को जगमग करते
आशाओं के विश्वासों के
सूर्य उगाते हैं हम ।
मणि-दीप जलाते हैं हम ।
ज्वालामुखियों ने जब-जब
उगली आग भयावह,
फैले लावे पर
घर अपना बेखौंफ बनाते हैं हम ।
भूकम्पों ने जब-जब
नगरों गावों को नष्ट किया,
पत्थर के ढेरों पर
बस्तियाँ नयी हर बार बसाते हैं हम ।
परमाणु-बमों उद्जान-शस्त्रों की
मारों से
आहत भू-भागों पर
देखो कैसे
जीवन का परचम फहराते हैं हम ।
चारों ओर नयी अँकुराई हरियाली
लहराते हैं हम ।
कैसे तोड़ोगे इनके सिर ?
कैसे फोड़ोगे इनके सिर ?
दुर्दम हैं,
इनमें अद्भुत खम है ।
काल-पटल पर अंकित है -
‘जीवन अपराजित है ।’
= = = = = =
Hindi Poem of Dr. Mahendra Bhatnagar
Oriya Translation By : Dr. Harekrishna Meher
(Adamya)
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अदम्य
मूल हिन्दी कविता - अदम्य : डॉ. महेन्द्र भटनागर .
ओड़िआ भाषान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
= = = = = = = =
बहु दूर य़ाए छाइ य़ाइछि
गहन कुहेळिका ।
सेइ कुहेळिका भेदि
आमे आगेइ चालिछुँ रास्तारे ॥
*
बड़ बड़ पथर-खण्डगुड़िक
य़ेबे य़ेबे रास्ता अबरुद्ध करे,
सेइ पथर-खण्डगुड़िकु भाङ्गिदेइ
नूतन मार्ग निर्माण करुँ आमे ॥
*
शीतळ प्रखर पबनर घूर्णि झड़ आसे,
तीब्र चक्र-बात सम्मुखरे
बक्ष प्रसारित करि
अटळ रहुँ आमे प्रति पद-क्षेपरे ॥
*
सिन्धु-तटरे आघात दिए
भीषण जुआरर पर्बत ।
प्रबळ ढेउ उपरे चढ़ि
समस्त शक्ति लगाइ
आमे तत्पर होइथाउँ घोर संग्रामरे ॥
*
स्रोतस्विनी-समूहर बन्या
कूळ भाङ्गि बहि चाले ।
जळ-भउँरी आउ आबेगकु स्थिर रखि
आमे चाळना करुँ सुरक्षार य़ान ॥
*
प्रळयर कळा अन्धकार रात्री
य़ेबे य़ेबे पृथिबीकु घेरिय़ाए,
ब्योम-परिसरकु उज्ज्वळतारे भरिदेइ
आमे कराइथाउँ सूर्य्य़ोदय
आशार आउ बिश्वासर ।
कराइथाउँ आमे
मणि-प्रदीप प्रज्वळित ॥
*
आग्नेय-गिरिराजि य़ेबे य़ेबे
भयङ्कर अग्निर उद्गिरण करे,
बिस्तृत लाभा उपरे
निज भबन निर्माण करुँ
आमे निर्भयरे ॥
*
भूमिकम्प य़ेबे य़ेबे
नगर आउ ग्राम-समूहकु नष्ट करे,
ध्वस्त प्रस्तर-स्तूप उपरे
नूतन बसति
निर्माण करुँ आमे प्रति थर ॥
*
परमाणु बोमार, उद्जान शस्त्रराशिर
प्रबळ प्रहार य़ोगुँ
आहत भूखण्ड उपरे
देख केमिति
उड़ाइथाउँ आमे
जीबनर बैजयन्ती ।
चतुर्दिगरे आमे दोळायित करुँ
नब अङ्कुरराजिर सबुजिमा ॥
*
केमिति भाङ्गिब तुमे सेमानङ्क मस्तक ?
केमिति फटाइब तुमे सेमानङ्क मुण्ड ?
सेमाने अत्यन्त दुर्द्दम;
सेमानङ्क निकटरे अछि अद्भुत साहस ।
काळ-पटळ उपरे अङ्कित होइ रहिछि
“ जीबन अपराजित ” ॥
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रचयिता : डॉ. महेन्द्र भटनागर
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दूर-दूर तक छाया सघन कुहर,
कुहरे को भेद
डगर पर बढ़ते हैं हम ।
चट्टानों ने जब-जब पथ अवरुद्ध किये,
चट्टानों को तोड़ नयी राहें गढ़ते हैं हम ।
ठंडी तेज हवाओं के वर्तुल झोंके आते हैं,
तीव्र चक्रवातों के सम्मुख सीना ताने
पग-पग अड़ते हैं हम ।
सागर-तट पर टकराता भीषण ज्वारों का पर्वत,
उमड़ी लहरों पर चढ़ पूरी ताकत से लड़ते हैं हम ।
दरियाओं की बाढ़ें तोड़ किनारे बहती हैं,
जल-भँवरों, आवेगों को थाम
सुरक्षा-यान चलाते हैं हम ।
काली अंधी रात कयामत की
धरती पर घिरती है जब-जब,
आकाशों को जगमग करते
आशाओं के विश्वासों के
सूर्य उगाते हैं हम ।
मणि-दीप जलाते हैं हम ।
ज्वालामुखियों ने जब-जब
उगली आग भयावह,
फैले लावे पर
घर अपना बेखौंफ बनाते हैं हम ।
भूकम्पों ने जब-जब
नगरों गावों को नष्ट किया,
पत्थर के ढेरों पर
बस्तियाँ नयी हर बार बसाते हैं हम ।
परमाणु-बमों उद्जान-शस्त्रों की
मारों से
आहत भू-भागों पर
देखो कैसे
जीवन का परचम फहराते हैं हम ।
चारों ओर नयी अँकुराई हरियाली
लहराते हैं हम ।
कैसे तोड़ोगे इनके सिर ?
कैसे फोड़ोगे इनके सिर ?
दुर्दम हैं,
इनमें अद्भुत खम है ।
काल-पटल पर अंकित है -
‘जीवन अपराजित है ।’
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Hindi Poem of Dr. Mahendra Bhatnagar
Oriya Translation By : Dr. Harekrishna Meher
(Adamya)
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अदम्य
मूल हिन्दी कविता - अदम्य : डॉ. महेन्द्र भटनागर .
ओड़िआ भाषान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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बहु दूर य़ाए छाइ य़ाइछि
गहन कुहेळिका ।
सेइ कुहेळिका भेदि
आमे आगेइ चालिछुँ रास्तारे ॥
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बड़ बड़ पथर-खण्डगुड़िक
य़ेबे य़ेबे रास्ता अबरुद्ध करे,
सेइ पथर-खण्डगुड़िकु भाङ्गिदेइ
नूतन मार्ग निर्माण करुँ आमे ॥
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शीतळ प्रखर पबनर घूर्णि झड़ आसे,
तीब्र चक्र-बात सम्मुखरे
बक्ष प्रसारित करि
अटळ रहुँ आमे प्रति पद-क्षेपरे ॥
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सिन्धु-तटरे आघात दिए
भीषण जुआरर पर्बत ।
प्रबळ ढेउ उपरे चढ़ि
समस्त शक्ति लगाइ
आमे तत्पर होइथाउँ घोर संग्रामरे ॥
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स्रोतस्विनी-समूहर बन्या
कूळ भाङ्गि बहि चाले ।
जळ-भउँरी आउ आबेगकु स्थिर रखि
आमे चाळना करुँ सुरक्षार य़ान ॥
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प्रळयर कळा अन्धकार रात्री
य़ेबे य़ेबे पृथिबीकु घेरिय़ाए,
ब्योम-परिसरकु उज्ज्वळतारे भरिदेइ
आमे कराइथाउँ सूर्य्य़ोदय
आशार आउ बिश्वासर ।
कराइथाउँ आमे
मणि-प्रदीप प्रज्वळित ॥
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आग्नेय-गिरिराजि य़ेबे य़ेबे
भयङ्कर अग्निर उद्गिरण करे,
बिस्तृत लाभा उपरे
निज भबन निर्माण करुँ
आमे निर्भयरे ॥
*
भूमिकम्प य़ेबे य़ेबे
नगर आउ ग्राम-समूहकु नष्ट करे,
ध्वस्त प्रस्तर-स्तूप उपरे
नूतन बसति
निर्माण करुँ आमे प्रति थर ॥
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परमाणु बोमार, उद्जान शस्त्रराशिर
प्रबळ प्रहार य़ोगुँ
आहत भूखण्ड उपरे
देख केमिति
उड़ाइथाउँ आमे
जीबनर बैजयन्ती ।
चतुर्दिगरे आमे दोळायित करुँ
नब अङ्कुरराजिर सबुजिमा ॥
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केमिति भाङ्गिब तुमे सेमानङ्क मस्तक ?
केमिति फटाइब तुमे सेमानङ्क मुण्ड ?
सेमाने अत्यन्त दुर्द्दम;
सेमानङ्क निकटरे अछि अद्भुत साहस ।
काळ-पटळ उपरे अङ्कित होइ रहिछि
“ जीबन अपराजित ” ॥
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