from My Hindi Translation
of Oriya Kavya 'TAPASVINI'
written by Poet Gangadhara Meher (1862-1924).
*
Canto-IV of Tapasvini Kavya
(Original Oriya : Mangale Ailaa Usha...)
Recitation of Hindi Translation by Author Dr.Harekrishna Meher
Ref : YOUTUBE VIDEO :
http://www.youtube.com/watch?v=BWi-MyqYTJA
= = = = = = =
‘तपस्विनी’ महाकाव्य
मूल ओड़िआ रचना : स्वभावकवि गंगाधर मेहेर (१८६२-१९२४)
सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
= = = = = = = = = = = =
चतुर्थ सर्ग
= = = = = = = = = = = =
समंगल आई सुन्दरी
प्रफुल्ल-नीरज-नयना उषा,
हृदय में ले गहरी
जानकी-दर्शन की तृषा ।
नीहार-मोती उपहार लाकर पल्लव-कर में,
सती-कुटीर के बाहर
आंगन में खड़ी होकर
बोली कोकिल-स्वर में :
‘दर्शन दो, सती अरी !
बीती विभावरी ॥’ (१)
*
अरुणिमा कषाय परिधान,
सुमनों की चमकीली मुस्कान
और प्रशान्त रूप मन में जगाते विश्वास :
आकर कोई योगेश्वरी
बोल मधुर वाणी सान्त्वनाभरी
सारा दुःख मिटाने पास
कर रही हैं आह्वान ।
मानो स्वर्ग से उतर
पधारी हैं धरती पर
करने नया जीवन प्रदान ॥ (२)
*
गाने लगी बयार
संगीत तैयार ।
वीणा बजाई भ्रमर ने,
सौरभ लगा नृत्य करने
उषा का निदेश मान ।
कुम्भाट भाट हो करने लगा स्तुति गान ।
कलिंग आया पट्टमागध बन, [
बोला बिखरा ललित मधुर स्वन :
‘उठो सती-राज्याधीश्वरि !
बीती विभावरी ॥’ (३)
*
मुनिजनों के वदन से
उच्चरित वेदस्वन से
हो गया व्याप्त श्यामल वनस्थल ।
पार कर व्योम-मण्डल
ऊपर गूँज उठा उदात्त ओंकार ।
मानो सरस्वती की वीणा-झंकार
विष्णु के मन में भर सन्तोष अत्यन्त
पहुँच गयी अनन्त की श्रुति पर्यन्त ।
धीरे-धीरे जगमगा उठा कानन सारा,
जैसे बल बढ़ने लगा मन्त्र द्वारा ॥ (४)
= = =
Ref : http://hkmeher.blogspot.in/2011/08/tapasvini-kavya-canto-4.html
* http://tapasvini-kavya.blogspot.in/2011/08/tapasvini-kavya-canto-4.html
* http://hkmeher.blogspot.in/2012/06/essence-of-sanskrit-tapasvini-mahakavya.html
= = = = = = = = =