Kumara-Sambhava
Mahakavya *
Original
Sanskrit Epic Poem : Mahakavi Kalidasa
Odia Metrical
Translation : Dr. Harekrishna Meher
*
Canto-1 (Prathama
Sarga):
Depiction of
Himalaya Mountain and Parvati's
Birth
(Taken from Complete Odia Version)
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Published in
BARTIKA (बर्त्तिका),
Literary Odia Quarterly,
Dashahara Special Issue,
October-December 2005, Pages 533-552.
Saraswata Sahitya Sanskrutika Parishad,
Dasharathpur, Jajpur, Odisha.
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कुमारसम्भव महाकाव्य
मूल संस्कृत काव्य : महाकवि कालिदास *
ओड़िआ पद्यानुवाद : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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प्रथम सर्ग : हिमालय-वर्णना एवं पार्वती-जन्म
समुदाय श्लोक संख्या : ६ ० *
ओड़िआ छन्दरे अनूदित : राग रामकेरी
अनुवाद काल : १९७१ ख्रीष्टाब्द
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(१)
उत्तर
दिगरे गिरीन्द्र दिशे कि अभिराम,
महिमामय
से देवात्मा हिमाळय ता नाम ।
परबेशि
पूर्ब पश्चिम पाराबार
मध्यरे,
धरा-मापदण्ड
पराये शोभा धारण करे ॥
*
(२)
परबत
मिळि सरब ताकु बत्सा बिचारि,
रतन-सानुकु
य़तने
कले दोहनकारी ।
पृथुङ्क
आदेशे पृथिबी- गाभीरु दीप्तिमान,
रत्नराजि
सह दुहिँले महाऔषधिमान
॥
*
(३)
खणि
अगणित रत्नर हेबारु हिमाळय,
करि
न पारिला तुषार तार चारुता क्षय ।
अनेक
गुणरे एकइ दोष
दृश्य नुहइ,
शशाङ्क-किरणे
कळङ्क य़था लुचि रहइ ॥
*
(४)
निज
शिखे धातुमत्ताकु बहे गिरि-उत्तम,
खण्डमेघमाळे
लालिमा प्रसरे मनोरम ।
असमये
मध्य सन्ध्यार भ्रम लभि
अप्सरा,
शृङ्गार
रचन्ति अङ्गरे घेनि शोभा पसरा ॥
*
(५)
हिमगिरि-कटि
भागरे अभ्रमाळा
भ्रमन्ति,
सिद्धबृन्द
तळ शृङ्गरे मेघछाया
सेबन्ति ।
बर्षा
आगमने सेमाने बिचळित अन्तरे,
तापभरा
तुङ्ग शृङ्गकु चळिय़ान्ति तत्परे ॥
*
(६)
दन्ताबळ-हन्ता
सिंहर पद-रुधिर चिह्न,
हिम-झरे
धौत होइले मध्य ता नखे छिन्न ।
मोति-फळ
पोति न होइ रहिथिबारु ताहा,
बनेचरगण
बिलोकि जाणिथाआन्ति राहा ॥
*
(७)
बिद्याधरङ्कर
सुन्दरी- बृन्द परबतरे,
करी-बिन्दु
परि रक्तिम रम्य भूर्ज पतरे ।
धातुरस
य़ोगे आतुर चित्ते लेखि
झटति,
प्रेरन्ति
प्रणय-पतर प्रिय प्रेमिक प्रति ॥
*
(८)
फम्पा
निज गुम्फा-मुखर बायु अचळेश्वर,
कीचक-रन्ध्ररे
पूराइ रचि मधुर
स्वर ।
किन्नरङ्क
मुखुँ निर्गत मधु गान
सकाशे,
तान
देबा लागि सते बा निज इच्छा प्रकाशे ॥
*
(९)
गण्डुँ
मळि-कण्डु बारण पाइँ बारणपन्ति,
लाखि
देबदारु शाखीरे निज अङ्ग घषन्ति ।
तरु-बल्कळरु
सेकाळे झरि आसइ
दुग्ध,
शृङ्गरे
प्रसरि सुगन्ध तहिँ कराए मुग्ध ॥
*
(१०)
गुहा-गृह-कोळे
य़ामिनी काळे देदीप्यमान,
ओषधिपन्ति
य़े करन्ति धीर आलोक दान ।
शैळपुरे
तैळ-बिहीने साजि रति-प्रदीप,
बिराजन्ति
निति किरात- मिथुनङ्क समीप ॥
*
(११)
स्तर-स्तर
हिम-प्रस्तर परे बाजन्ते
अळ्पे,
खिन्न
हेले मध्य किन्नरी- गण अङ्गुळि गुळ्फे ।
उच्च
पीन कुच नितम्ब भार सम्भाळिबारे,
तेजि
न थाआन्ति निजर मन्द गति सेठारे ॥
*
(१२)
गुहा
मध्ये रुहे अन्धार दिबाभीत समान,
भानु
समक्षरु ता रक्षा करे ए सानुमान
।
उच्च
जन ठारे शरणा- पन्न मानब य़था,
नीच
हेलेहेँ ता समीपे जनमइ ममता
॥
*
(१३)
हिमालय
मध्ये हिमांशु- रश्मि परि धबळ,
पुच्छ
चामरकु चमरी मृगी तोषे सकळ ।
बिञ्चि
मन्दे मन्दे सुसञ्च मण्डिथान्ति से धाम,
चरितार्थ
करि थाआन्ति गिरिराज ता नाम ॥
*
(१४)
सुरते
किन्नरे पुरते हरिले प्रिया-बास,
तुरङ्ग-मुखीए
शृङ्गार लाजे लुचान्ति आस्य ।
इच्छामते
सेहि समये गुहा-गृह दुआरे,
लम्बि
रहइ कादम्बिनी जबनिका आकारे ॥
*
(१५)
समीरण
तहिँ मयूर- कळाप उल्लसाइ,
देबदारु
तरुराजिकि बारम्बार
दोळाइ ।
नीर-बिन्दु
मन्दाकिनीर घेनि बहइ मन्दे,
किरातबृन्द
ता सेबन्ति मृगयारे आनन्दे ॥
*
(१६)
सप्तऋषि
निज हस्तरे तोळि सारिबा परे,
अबशेष
थिले सरोज ऊर्द्ध्व
भागर सरे ।
तहिँ
अधोभागे भ्रमण बेळे ऊर्द्ध्व-बदन,
स्वकर-तेजे
बिकस्वर करिथान्ति
तपन ॥
*
(१७)
अध्वर-साधन
द्रव्यर जनकत्व आबर,
धरणी-धारणे
सामर्थ्य देखि हिमाळयर ।
य़ाग-भाग-भोगी
नगङ्क मध्ये कराइ प्रभु,
उच्चस्थाने
स्थापि अछन्ति ताकु निजे स्वयम्भु ॥
*
(१८)
गिरिबर
से त गौरब- ज्ञाता
सुमेरु-मित,
कुळरक्षा
पाइँ बिबाह कले मेना
सहित ।
सुय़ोग्या
से पितृगणङ्क प्रिय मानस-कन्या,
मुनिमानङ्कर
मध्य से माननीया सुधन्या ॥
*
(१९)
ए
अन्ते अतीत हुअन्ते क्रमे केते दिबस,
पति
सङ्गे रति-प्रसङ्गे मज्जिबारु मानस ।
कमनीय
नबय़ौबना प्रिया रामाबर से,
करिले
गरभ धारण गिरिबर-औरसे
॥
*
(२०)
जनमिला
मेना-उदरुँ सुत मैनाक नामे,
नागकन्यार
से नागर हेला समय-क्रमे
।
पक्षछेदी
सहस्राक्षङ्क जात हेलेहेँ क्रोध,
अशनि-जनित
य़ातना अङ्गे न कला बोध ।
सिन्धु
सङ्गे य़ेणु बन्धुता करि गिरि-नन्दन,
जळराशि
मध्ये आश्रय नेला निर्भय-मन ॥
*
(२१)
दक्षसुता
सती थिले य़े शिब-बामलोचना,
सहि
न पारि से पिअर- कृत पति-भर्त्सना ।
कळेबर
य़ोगबळरे देइथिलेटि झासि,
सुश्री
एबे नेले आश्रय मेना-गरभे आसि ॥
*
(२२)
उत्साह
सहित मिळिता शुद्ध-आचारबती,
उत्तम-प्रय़ुक्ता
नीतिरु य़था जन्मे सम्पत्ति ।
स्वामीसङ्ग-रता
मङ्गळ- ब्रता पर्बत-राणी,
मेनाङ्क
उदरु जन्मिले तथा सती कल्याणी ॥
*
(२३)
निर्मल
दिशिला सकळ दिग जन्म-बासरे,
प्रबहिला
पांशु-बिहीन समीरण विश्वरे ।
कम्बुस्वन
परे प्रसून- बृष्टि हेला आबर,
उल्लसिले
सुखे संसारे सर्ब चळ स्थाबर ॥
*
(२४)
नब
जळधर-शबदे जात रत्न-प्रभारे,
शोभइ
बिदूर पर्बत- भूमि य़ेउँ
प्रकारे ।
ज्योतिर्मयी
चारु-बदना तनुजाङ्कु निजरि,
लभि
कोळे शैळ-बल्लभी बिराजिले सेपरि
॥
*
(२५)
शुकल
पक्षरे नक्षत्र- ईश-कळा
य़ेसन,
शोभिले
नगेन्द्र-नन्दिनी दिनुँ दिन तेसन
।
चन्द्रिका-बर्द्धने
चन्द्रमा- कळा बढ़िबा प्राय,
सुढळे
बढ़िला लाबण्य- मय नबीन काय ॥
*
(२६)
पर्बत
बंशरे जनम य़ोगुँ
आदरे अति,
बन्धुमाने
ताङ्कु सम्बोधि नाम देले पार्बती ।
उ,
मा, बोलि ताङ्कु पश्चाते तपश्चरणुँ माता,
मना
करिबारु हेले से 'उमा' नामे बिख्याता ॥
*
(२७)
तनुज
निजर थिलेहेँ नग-राजन
कति,
ता
पाशे आपणा नयन न लभिला तृपति ।
बिकशन्ते
मध्य बसन्ते नानाबिध सुमन,
रसइ
रसाळ-कुसुमे एका भ्रमर-मन
॥
*
(२८)
प्रदीप
शोभइ य़ेमन्त दीप्तिमन्त शिखारे,
स्वर्गमार्ग
य़था सुभग त्रिपथगा गङ्गारे ।
मार्जित
भाषारे य़ेसन ज्ञानीजन शोभन्ति,
सुता
य़ोगुँ पूत भूषित हेले भूधर-पति
॥
*
(२९)
स्वर्णदी-पुळिने
से बाळा बाल्यक्रीड़ार बेळे,
बालुका-बेदिका
निर्माणि केबे कन्दुक खेळे ।
कृत्रिम-पुत्रक
घेनि बा सखीगण सङ्गरे,
शइळजा
सते मज्जिले केळिरस
रङ्गरे ॥
*
(३०)
शरदे
मिळन्ति मराळ- माळा मन्दाकिनीकि,
निशीथरे
य़था लभइ प्रभा महौषधिकि ।
पूर्बजन्म-बिद्या
पर्बत- सुता पाशे समस्त,
अनायासे
बिद्या अभ्यास काळे हेले प्रापत ॥
*
(३१)
बाल्यान्ते
य़ौबन आसिला क्रमे शैळसुतार,
अय़तन-सिद्ध
भूषण से त अङ्ग-लतार
।
मद्य
न होइले मध्य से जने करे मोहित,
कन्दरप-अस्त्र
सेहि त मात्र पुष्प-रहित ॥
*
(३२)
तूळिकारे
बर्ण्ण-खचित चित्र य़था उज्ज्वळ,
रबि-कर
य़ोगे बिकच य़ेह्ने नब कमळ ।
मनलोभा
हेला सेभळि ताङ्क सर्बापघन,
लभिबारु
चारु मोहन अभिनब य़ौबन ॥
*
(३३)
भूमिरे
चळन्ते उमाङ्क सुकुमार चरण,
उच्चाङ्गुळि-नख-तेजरे दिशे रक्त-बरण ।
पूरुब-सेबित
अलक्त रस उद्गारि कि से,
स्थळ-अरबिन्द
पराय सते सुन्दर दिशे ॥
*
(३४)
लीळामयी
भाबे बिळासे उमा य़ेउँ समये,
गमन
करन्ति सेकाळे प्रते
हुए हृदये ।
राजहंसगण
नूपुर- सिञ्जा
शिखिबा पाइँ,
प्रथमरु
लीळा-गमन ताङ्कु देले शिखाइ ॥
*
(३५)
गिरिजा-शरीर
सर्जना पाइँ बिधाताङ्कर,
पुञ्जीभूत
थिला मञ्जुळ द्रव्य य़ेते मातर ।
पार्बतीङ्क
पृथु बर्त्तुळ बेनि जङ्घ रचने,
समाप्त
हेबारु सते बा प्रजापति य़तने ।
अबशेष
अबयबर निरिमाण
निमित्त,
लाबण्य-संग्रह
दिगरे श्रम कले अमित ॥
*
(३६)
चर्मभागे
अति कर्कश शुण्ड गजराजर,
नितान्त
शीतळ हुअन्ते रम्भा-स्तम्भ आबर ।
दिशिलेहेँ बिश्वे बर्त्तुळा- कार शोभायमान,
होइ
न पारिला गउरी- उरुर उपमान ॥
*
(३७)
परिणय
परे आपणा अङ्क-देशे
शङ्कर,
निबेशिले
चारु नितम्ब शैळ-तनुजाङ्कर ।
अन्य
नारी पक्षे दुर्लभ थिला सेहि अङ्कटि,
अनुमित
हुए नितम्ब- शोभा एथुँ प्रकटि ॥
*
(३८)
नीबीबन्ध
ठारु गभीर नाभि-रन्ध्र पर्य़्यन्त,
नब
रोमराजि सुरम्य दिशुथिला
एमन्त ।
काञ्ची-मध्यगत
सुसञ्च नीळमणिर प्रभा,
नीबी
लङ्घि सते प्रबेश करे नाभिरे अबा ॥
*
(३९)
बेदी
सम कृश-मध्यमा अद्रि-दुहिताङ्कर,
त्रिबळी
बिराजि एभळि दिशुथिला सुन्दर ।
काम
आरोहिबा निमन्ते सते नब य़ौबन,
निर्माण
करिछि सोपान- त्रय केड़े शोभन
॥
*
(४०)
सरोज-नेत्रीङ्क
उरोज नीळमुख गउर,
परस्पर
पीड़ि एरूपे बढ़िथिले रुचिर
।
बेनिङ्क
मध्ये शतपत्र- नाल सूत्र प्रबेश,
करिबा
सकाशे तहिँरे स्थान न थिला शेष ॥
*
(४१)
मो
बिचारे चारु य़ुगळ बाहु थिला उमार,
शिरीष
कुसुमरु मध्य अधिक सुकुमार
।
पुरारिङ्क
पाशे कन्दर्प परास्त हेबा परे,
प्रयोग
कले से बेनिङ्कि कण्ठपाश रूपरे ॥
*
(४२)
गिरिजेमाङ्कर
उरज य़ोगुँ उन्नतानत,
कण्ठदेश
पुणि बर्त्तुळ मुक्ताहार नियत ।
सम
रूपे परस्परर शोभा बढ़ाइबारु,
एक
अपरर भूषण भूष्य
हेले सुचारु ॥
*
(४३)
कमळर
गुण न मिळे चन्द्रे आश्रय कले,
बिधु-मधुरिमा
आहरि नुहे पद्मे रहिले ।
किन्तु
गौरी-मुखे रहन्ते एबे पद्म चन्द्रमा,
दुहिँङ्क
प्रीतिकि एकत्र अनुभबिले उमा ॥
*
(४४)
उमाङ्कर
ताम्र अधर - दळे धबळ स्मित,
प्रकाश
हेले ए प्रकार शोभा लभे
निश्चित ।
रक्तिम
नबीन पल्लबे राजे श्वेत सुमन,
अथबा
प्रबाळे य़ुकत मुक्ता दिशे शोभन ॥
*
(४५)
अद्रिबाळाङ्कर
आळापे अमृत-स्वर झर,
मधुर
बचन सम्मुखे प्रिय स्वर पिकर ।
कर्कश
प्रतीत होइला श्रोताङ्कर कर्ण्णरे,
अज्ञ-ताड़ित
बीणा-तन्त्री य़था शबद करे ॥
*
(४६)
मन्द
अनिळरे दोळित नीळ कमळ परि,
आपणा
चञ्चळ चाहाँणि राजपुत्री सुन्दरी ।
मृगीगण
ठारु आणिले अबा मृगीए
ठाणि,
पार्बतीङ्क
ठारु आणिले एहा नुहइ जाणि ॥
*
(४७)
कज्जळ-तूळिका-रचित चित्ररेखा य़ेसन,
थिला
पार्बतीङ्क य़ुगळ दीर्घ भूरु शोभन ।
से
भूरु-लतार चारुता अबलोकि अतनु,
फुलधनु-शोभा-गरब बरजिले स्व मनुँ ॥
*
(४८)
य़दि
मानबङ्क पराये पशु-पक्षी-हृदये,
लज्जा
थान्ता तेबे चमरी- गण बिना संशये ।
शैलनन्दिनीङ्क
सुन्दर चूर्ण्ण-कुन्तळ चाहिँ,
आपणा
केशर बिशेष य़त्न करन्ते
नाहिँ ॥
*
(४९)
बिश्व-सरजन-करता सते एक स्थानरे,
समस्त
सुषमा दर्शन इच्छा रखि मनरे ।
सरब
उपमा-दरब घेनि पार्बती-अङ्गे,
उपय़ुक्त
स्थाने संय़ुक्त करि रचिले रङ्गे ॥
*
(५०)
भ्रमुँ
भ्रमुँ दिने नारद अद्रिपतिङ्क पाशे,
पार्बतीङ्कु
देखि भबिष्य बाणी कले बिश्वासे ।
'निज
प्रेमबळे ए जेमा संय़मी शिबङ्कर,
हेब
अर्द्धतनु-हारिणी पत्नी एकमातर
॥'
*
(५१)
य़ुबती
हेलेहेँ पार्बती पाइँ नग-राजन,
अन्य
बर अन्वेषणरे आउ न देले मन ।
घेनिबा
निमन्ते मन्तरे परिपूत आहुति,
बैश्वानर
बिना बिश्वरे केहि क्षम नुहन्ति ॥
*
(५२)
न
करन्ते रुद्र य़ाचना अद्रि कौणसि
मते,
समर्थ
नोहिले दुहिता अरपिबा निमन्ते
।
निबेदन
भङ्ग हेबार भये सज्जनगण,
कार्य़्यसिद्धि
लागि करन्ति मध्यस्थता ग्रहण ॥
*
(५३)
पिता
दक्ष प्रजापतिङ्क कोपे दुःखिता अति,
तेजिथिले
निज शरीर पूर्ब जनमे सती ।
सेहि
समयरु बरजि सर्ब काम-बासना,
परिणय
करि न थिले शिब अन्य अङ्गना ॥
*
(५४)
जितेन्द्रिय
चन्द्रशेखर तपे निबेशि मति,
रचिथिले
हिमाचळर एक शृङ्गे बसति ।
देबदारु
बृक्षसमूह तहिँ क्षणकु क्षण,
सुर-सरितार
स्रोतरे लभुथिला प्रोक्षण ।
बिस्तारित
थिला कस्तूरी- गन्ध मृग-य़ूथर,
किन्नर-निकर
प्रसन्ने थिले गान-तत्पर ॥
*
(५५)
सुरम्य
नमेरु-सुमन शृङ्गे मण्डि सकळ,
मनःशिळा
य़ोगे रञ्जित मृदु भूर्ज-बल्कळ ।
परिधान
करि शरीरे तहिँ प्रमथ-बृन्द,
शैळेय-सेबित
पाषाणे बसुथिले सानन्द ॥
*
(५६)
महाबळीयान
बाहन बृष महेशङ्कर,
सिंहनाद
सहि पारु न थिला पाशे निकर ।
सेठारे
खुराग्रे कठोर हिम-शिळा
तत्क्षण,
बिदारि
सदर्प गर्जन करुथिला भीषण ।
उद्बेग
न भजि गबय- गण सेहि बेळारे,
लक्ष्य
करुथिले निक्षेपि निज दृष्टि ताहारे ॥
*
(५७)
सर्बतप-इष्ट
फळद अष्टमूर्त्ति सुय़ति,
समिध
य़ोगे समेधित निज अन्य मूरति ।
अग्निङ्कर
क्रिया आचरि बाञ्छा रखि मनरे,
रत
थिले तपोबरते परबत
-शिखरे ॥
*
(५८)
बृन्दारक-बृन्द-बन्दित प्रभु देब शङ्कर,
ताङ्कु
तोषे अर्घ्ये अर्च्चना करि अचळेश्वर ।
संय़मशीळा
स्व जेमाङ्कु सखीगण सङ्गते,
आज्ञा
देले गङ्गाधरङ्क आराधना निमन्ते ॥
*
(५९)
घोर
तपे बिघ्नरूपिणी हेले मध्य
पार्बती,
ताङ्करि
सेबाकु स्वीकार कले प्रमथपति ।
समीपे
बिकार-कारक तत्त्व थिले हेँ चित्त,
बिकृत
नुहे य़ा, से एका धीर बोलि बिदित ॥
*
(६०)
बिधिमते
पूजा करिबा पाइँ प्रतिदिबस,
तोळि
आणुथिले कुसुम उमा नोहि अळस ।
परिष्कार
करि बेदीकि कुश सङ्गते बारि,
आणुथिले
कर्माचरण अर्थे राजकुमारी ।
सेबाकाळे
देबदेबङ्क शिर-शोभी शशीर,
कान्ति
हरुथिला क्लान्तिकि सेहि चारुकेशीर ॥
*
*
(६१)
महाकबि
काळिदासङ्क कुमारसम्भबर,
हरेकृष्ण-मेहेर-कृत ओड़िआ भाषान्तर ।
षाठिए श्लोकर बर्ण्णने पूर्ण्ण सर्ग प्रथम,
सुन्दरी
गिरीन्द्र-नन्दिनीङ्कर शुभ जनम ॥
*
* *
(कुमारसम्भब
महाकाव्यर प्रथम सर्ग समाप्त *)
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Related
Links :
Kumara-Sambhava
: Odia Version by Dr. Harekrishna Meher :
*
Translated Works of Dr. Harekrishna Meher :
(Tapasvini, Niti-Sataka, Sringara-Sataka, Vairagya-Sataka,
Kumara-Sambhava, Raghuvamsha, Ritusamhara, Naishadha,
Gita-Govinda, Meghaduta etc.)
Link:
Translated Works of Dr. Harekrishna Meher :
(Tapasvini, Niti-Sataka, Sringara-Sataka, Vairagya-Sataka,
Kumara-Sambhava, Raghuvamsha, Ritusamhara, Naishadha,
Gita-Govinda, Meghaduta etc.)
Link:
*
Literary Works of Dr. Harekrishna Meher
:
Literary Awards and Felicitations to Dr.
Harekrishna Meher:
http://hkmeher.blogspot.com/2018/09/literary-awards-and-felicitations-to-dr.html
http://hkmeher.blogspot.com/2018/09/literary-awards-and-felicitations-to-dr.html
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