Saturday, October 15, 2016

Gita-Govinda Kavya: Canto-6 : Odia Version: Dr. Harekrishna Meher

‘Gita-Govinda’ Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
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Link:
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महाकवि-जयदेव-प्रणीतगीतगोविन्दकाव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवादडॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-6 : Kuntha-Vaikuntha)
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गीतगोविन्द : षष्ठ सर्ग
(कुण्ठ-वैकुण्ठ)
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[श्लोक-: अथ तां गन्तुमशक्तां]
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बहु अनुरागी  हेलेबि मानस प्रियठारे,
प्रेयसी राधिका य़ाइ पारिले
ताङ्क निकटे अभिसारे
एहिपरि दशा देखि,
कृष्ण समीपे       चळि ताङ्कर
कथा जणाइले सखी
हरि एसमये थिले निकुञ्ज-निळयरे,
मदन-बेदना-निरुत्साहित हृदयरे
*
[गीत-: पश्यति दिशि दिशि रहसि]
*
आहे आश्रित-नाथ--हरि !
बसिअछन्ति    आकुळे निबास-
सदनरे राधा सुन्दरी
चतुर्दिगरे बिजने,
तुमकु सतत      देखुअछन्ति
य़ेणिकि चाहिँले नयने
भाबन्ति मने साबधान,
करुअछ तुमे     ताङ्क अधरु
सुमधुर मधु रसपान ()
*
तुमरि पाशकु   अभिसार लागि
उत्साहरे,
व्यग्र राधिका    सामान्य बळ
बहि देहरे
कौणसिमते आगेइले धीरे
किछि पाद आउ चळे,
पड़िय़ाआन्ति भूतळे ()
*
बिमळ कमळ-नाळ सुकोमळ पत्ररे,
बिरचि बळय      घेनिअछन्ति
बेनि करे
मने गुणि तुम रतिकेळि-कथा सकळ,
तुमरि कान्ता      कष्टे जीबन
धरिअछन्ति केबळ ()
*
तुमरि मयूर-पुच्छादि नाना अळङ्कार,
सजाइ निजर    अङ्गे सजनी
निरेखुथान्ति बारम्बार
मने भाबन्ति प्रिय-नागरी,
मधुबैरी मुँ स्वयं हरि ()
*
हरि काहिपाइँ  मोपाशे कुञ्जे
करुनाहान्ति अभिसार’,
बोलि सखीङ्कि    बिरहिणी राधा
पचारुछन्ति बारबार ()
*
आसिले कृष्ण’  बोलि भाबि सेत
निज मने,
नब बारिधर-      बरण सान्द्र
अन्धकारकु अपघने
करन्ति केते आलिङ्गन,
प्रेमे दिअन्ति से चुम्बन ()
*
तुम बिळम्व  य़ोगुँ हरि !
बरजि लज्जा बासकसज्जा सुन्दरी,
बिळपुछन्ति  झुरि झुरि
नयनुँ अश्रु याए झरि ()
*
शिरीजयदेब कबि-बिरचित गीत ,
जगाउ अशेष     आनन्दराशि
रसिकबृन्द-हृदये ॥ ()
*
[श्लोक-: विपुल-पुलकपालिः]
*
जागे रोमाञ्च तनुरे ताङ्क बारबार,
बदनुँ आहुरि  बाहारइ बहु सीत्कार
अन्तरे जात     जड़िमा हेतुरु
भाब-आकुळे,
बोलन्ति नाना      अस्फु- पद
प्रणय-भोळे
अतिशय काम-    चिन्तारे राधा
तुमरि धिआने लग्ना,
शठ नागर हेरस-सागररे
मृगनयनी से मग्ना
*
[श्लोक-: अङ्गेष्वाभरणं करोति]
*
पत्रटिए बि उड़िले पाशरे सरसर,
सत्वरे तुमे       पहञ्चिय़िब
बोलि से आपणा कळेबर,
सजाइथान्ति  बहुबार
बिभूषणे नाना परकार
बिछाइथान्ति शयन,
दीर्घसमय करन्ति तब धिआन
एपरि अनेक    आकल्प सह
केते बिकल्प आकळना
कोमळ तल्प बिरचना,
साथे शत शत    सङ्कळपर
बिबिध केळिरे मुग्धा,
मज्जि रहिले सुद्धा
तुमरि बिना से प्रणयिनी,
रुचिर-गात्री   करि पारिबे
रात्रीयापन एकाकिनी
 * * * 
शिरीजयदेब  कबि-बिरचित
गीतगोबिन्द काव्य,
सहृदय-जन-भाव्य ।
षष्ठ सरग समापत अभिराम,
बहिछिकुण्ठ-वैकुण्ठ नाम
श्रीहरेकृष्ण मेहेर,
रचिले हरषे    रुचिर ओड़िआ
पद्यानुबाद एहार
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* गीतगोविन्द षष्ठ सर्ग सम्पूर्ण *

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