‘Gita-Govinda’
Kavya of Poet Jayadeva
Complete Odia Metrical Translation by:
Dr. Harekrishna Meher
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महाकवि-जयदेव-प्रणीत ‘गीतगोविन्द’ काव्य
सम्पूर्ण ओड़िआ पद्यानुवाद : डॉ.
हरेकृष्ण मेहेर
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(Gita-Govinda : Canto-9 : Mugdha-Mukunda)
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गीतगोविन्द : नवम सर्ग
(मुग्ध-मुकुन्द)
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[श्लोक-१ : तामथ मन्मथ-खिन्नां]
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कृष्णे बिदाय देलापरे तहुँ
सुरति-रसरु राधा,
बञ्चिता हेले लभिले हृदये -
पञ्चशरर बाधा ।
बिषादित मने हरिङ्क छळ
व्यबहार,
चिन्ता कले से बारबार ।
एपरि कळह- अन्तरिता से
राधिकाङ्कर सम्मुखरे,
प्रिय-सहचरी बचन भाषिले
एकान्तरे ॥
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[गीत-१: हरिरभिसरति वहति]
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देख गो राधिके ! धीर धीर
मळय मरुत बहुअछि केते सुन्दर ।
रचिअछन्ति अभिसार हरि कुञ्जरे,
ताङ्कु बरजि अन्य अधिक
कि सुख पाइब निज घरे ?
मानिनि गो ! हरि प्रिय तुमर,
ताङ्क निकटे मने अभिमान
आउ न कर ॥ (१)
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ताळफळरु बि शोभे अतिशय रसभर,
गुरु बर्त्तुळ उरज-कळश तुम्भर ।
सुन्दर एइ य़ुगळ,
काहिँपाइँ तुमे करुछ एहाकु
बिफळ ? (२)
*
प्रिय हरिङ्क सुगुण,
बखाणिछि तुम आगे बारबार
किन्तु तुमे त न शुण ।
अतिरमणीय प्रियतम तुम निश्चित,
ताङ्कु तेजिबा अनुचित ॥ (३)
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काहिँकि करुछ
बिषादित मन निजर ?
व्याकुळे किलागि
रोदन करुछ आबर ?
निरेखि तुमर ए आचरण,
उपहास केते करुअछन्ति
तरुणीगण ॥ (४)
*
नीर-सिञ्चित नीरज-दळरे
रचित कोमळ शय्य़ा उपरे
दरशन कर हरिङ्कर,
नेत्रयुगळ सार्थ कर ॥ (५)
*
मानसे किलागि कष्टभार,
जगाउछ तुमे बारम्बार ?
बृथा अभिमान तुम बिरहर कारण,
एणु सुन्दरि ! कर एबे मोर
हितबाणी धीरे श्रबण ॥ (६)
*
हरि करन्तु गमन तुमरि
सन्निधिरे,
सम्भाषण से करन्तु नाना
मधुर गिरे ।
काहिँपाइँ निज हृदय,
बिरह-दुःखे करुछ दग्ध अथय ? (७)
*
कबि जयदेब-रचित
श्रीहरिङ्कर अति सुन्दर चरित ।
देउ आनन्द रसभर,
हृदये रसिकबृन्दर ॥ (८)
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[श्लोक-२ : स्निग्धे यत्
परुषासि]
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सेनेह कले से तुमे कर्कश
आचरिल,
प्रणति कले से तुमे निश्चळ
रहिगल ।
अनुरागभरा कहिले से केते
मधु कथा,
द्वेष कल तुमे प्रकाशि बिराग सर्बथा ।
तुम तोष पाइँ उन्मुख हेले हरि,
बिमुख होइल तुमे तहिँ अपसरि ।
आगो सुन्दरि ! आचरिल सबु
बिपरीत,
कर्मफळ ए समुचित ।
एलागि तुमकु चन्दन लागे गरळ,
शीतळ चन्द्र लागे खरांशु प्रबळ ।
तुषार लागुछि हुताशन य़ेणु
हरिपाशे तुमे बिमना,
केळि-आनन्द लागुछि तीब्र बेदना ॥
* * *
गीतगोविन्द काव्य ए रस-बैभब,
बिरचिले मुदे कबिबर शिरी
जयदेब ।
नबम सर्ग हेला इति,
लभिछि ‘मुग्ध-मुकुन्द’ नामे परिचिति ।
रम्य ओड़िआ
पद्यरूपरे
अनुबाद कले एहार,
श्रीहरेकृष्ण मेहेर ॥
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* गीतगोविन्द नवम सर्ग सम्पूर्ण *
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