‘Koshali Meghaduta’
For this ‘Koshali Meghaduta’ book,
Translator Dr. Harekrishna Meher
was honoured with
‘Dr.Nilamadhab Panigrahi Award’-2010
conferred by
Sambalpur University, Jyoti Vihar, Sambalpur, Orissa.
Ref :
http://hkmeher.blogspot.com/2011/08/nilamadhab-panigrahi-samman-to.html.
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By : Dr. Harekrishna Meher
(Complete ‘Koshali Lyrical Translation of Poet Kalidasa’s
(Complete ‘Koshali Lyrical Translation of Poet Kalidasa’s
Sanskrit Kavya ‘Meghadutam’)
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Published by :
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Published by :
‘Trupti’, Bhubaneswar-2, Orissa, India, 2010.
[ISBN : 13 978-93-80758-03-9]
*
[ISBN : 13 978-93-80758-03-9]
*
'Koshali Meghaduta' Book :
Ref :
For this ‘Koshali Meghaduta’ book,
Translator Dr. Harekrishna Meher
was honoured with
‘Dr.Nilamadhab Panigrahi Award’-2010
conferred by
Sambalpur University, Jyoti Vihar, Sambalpur, Orissa.
Ref :
http://hkmeher.blogspot.com/2011/08/nilamadhab-panigrahi-samman-to.html.
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Purba Megha , Part-1,
Koshali Meghaduta, is presented here.
*
For Part-2 'Uttara Megha',
please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-2-uttara-megha.html
please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-2-uttara-megha.html
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मूल संस्कृत मेघदूत-काव्य : महाकबि कालिदास
मूल संस्कृत मेघदूत-काव्य : महाकबि कालिदास
कोशली गीत रूपान्तर : डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
*
*
*
कोशली मेघदूत
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( उपक्रम - Introduction by Translator )*
महाकबि कालिदास कबि-कुलर् गुरु,
संस्कुरुत साहित्यर् से त महामेरु ।
पुर्थीय़ाक उड़ुछे उजल्
य़श्-पताका ताँकर्,
महकि य़ाउछे मधुर् बास
कोमल् काब्य-फुलर् ।
आदिरसे गीति-काब्य रचिछन्,
दुनिआथि सुबिख्यात् 'मेघदूत' तार् नाँ ।
भाबर् कथा कबि लेखि य़ाइछन्,
प्रिय प्रियार् बिरह दशा हेइछे बर्नना ॥ (i)
*
माहादेबर् पूजा काजे य़क्ष जुआन् पिला,
पर्ति दिन् फुल् आन्बार् कबार् करुथिला ।
हेइ करि नूआँ भिआ
से त कनिआँ-रसिआ
ठिक् बेल्के काम् आरु नाइँ कला निजर् ;
पर्भु-पादे पूजा सेबार्
बाधा सेने एन्ति हेबार्
देखि मालिक् कुबेर् रजा हेले रिसा-जर्जर् ।
कनिआँ लगुन् अल्गा करि
से पिलाके रजा,
बहुत् दूरके पठेइ देले
भोग्बा लागि सजा ।
य़क्ष य़ुआन् दूत बनेइ मेघके
मनर् कथा केते जनेइ ताहाके,
पठेइ थिला प्रिया निके
सुखर् दुखर् खबेर् ।
देबभाषार् से मेघदूत् काब्यके
कोश्ली भाषार् गीत् रूपे लेखुछे,
संस्कुरुतर् कबि शिरी
हरेकृष्ण मेहेर् ॥ (ii)
संस्कुरुत साहित्यर् से त महामेरु ।
पुर्थीय़ाक उड़ुछे उजल्
य़श्-पताका ताँकर्,
महकि य़ाउछे मधुर् बास
कोमल् काब्य-फुलर् ।
आदिरसे गीति-काब्य रचिछन्,
दुनिआथि सुबिख्यात् 'मेघदूत' तार् नाँ ।
भाबर् कथा कबि लेखि य़ाइछन्,
प्रिय प्रियार् बिरह दशा हेइछे बर्नना ॥ (i)
*
माहादेबर् पूजा काजे य़क्ष जुआन् पिला,
पर्ति दिन् फुल् आन्बार् कबार् करुथिला ।
हेइ करि नूआँ भिआ
से त कनिआँ-रसिआ
ठिक् बेल्के काम् आरु नाइँ कला निजर् ;
पर्भु-पादे पूजा सेबार्
बाधा सेने एन्ति हेबार्
देखि मालिक् कुबेर् रजा हेले रिसा-जर्जर् ।
कनिआँ लगुन् अल्गा करि
से पिलाके रजा,
बहुत् दूरके पठेइ देले
भोग्बा लागि सजा ।
य़क्ष य़ुआन् दूत बनेइ मेघके
मनर् कथा केते जनेइ ताहाके,
पठेइ थिला प्रिया निके
सुखर् दुखर् खबेर् ।
देबभाषार् से मेघदूत् काब्यके
कोश्ली भाषार् गीत् रूपे लेखुछे,
संस्कुरुतर् कबि शिरी
हरेकृष्ण मेहेर् ॥ (ii)
= = = = = = = = =
पूर्ब मेघ
*
[1]
य़क्ष नूआँ बिहा हेइ कनिआँ पाशे माति,
कामे हेला कर्बा य़ोगुँ ताके य़क्ष-पति ।
शाएप् देले - ‘ रामगिरि पर्बतके जा’,
कनिआँ छाड़ि गुटे बछर् एक्ला सेने था’ ।
य़क्ष बिच्रा निस्तेज् हेइ
लमा शास्ति पाइ,
बसा कर्ला रामगिरिर्
आश्रम्थि य़ाइ ।
सेन बनबास् करिथिले शिरीरामर् रानी,
पतिबर्ता सीतादेबी जनक्-रजार् ननी ।
ताँकर् देहे लागि करि पबितर्,
हेइछे सेने सिनान् बेले
पाएन् सबु निर्मल् ।
केतेनिकेते नमेरु गछ सेठाने,
भर्ति अछे बहल् पतर्
गहन् छाइ शीतल् ॥
*
[2]
रहि करि से राम्गिरिने प्रियार् बिने उदास्,
झुरि झुरि कटेइ देला य़क्ष केतेक् मास् ।
पिन्धि थिला सुनार् बला
तल्के खस्रि आस्ला,
दुब्ला हाते मणिबन्धन्
मेला मेला दिश्ला ।
आषाढ़् मासर् पहेला दिने देख्ला से,
पाहाड़्-चूले कलाहाँडिआ
बादल् अछे घोटि ।
खेते जेन्ता बड़ा सुन्दर् हातीटे,
खेला कर्सि माएट् उखाड़ि
दाँते पिटि पिटि ॥
*
[3]
देख्ला परे प्रेम् इच्छा जाग्ला सेतार् मने,
केन्सि मते ठिआ हेइ से बादलर् साम्ने ।
आँखिर् लह भित्रे भित्रे
चापि करि य़ुबक्,
जह बेल् तक् भाब्ना कला
कुबेर् रजार् सेबक् ।
कनिआँ सुन्द्री निजर् पाशे थिले बि,
बादल् देखि प्रेमी लोकर्
मन् हेसि अथा ।
प्रियार् गला आप्टि करि धर्बाके,
आतुर् य़िए दूरे अछे
नाइँ कह तार् कथा ॥
*
[4]
शराबन आस्ले पाखे प्रिया गलामाली,
रख्बा य़ेन्ति तार् कोमल् परान्के सँभालि ।
हेतिर् लागि बादल्-हाते
य़क्ष कनिआँ निके,
कुशल् सन्देश् पठैमि बलि
भाबना कर्ला टिके ।
ताजा ताजा फुटि थिला कुरे फुल्,
तोलि करि मेघर् काजे
अर्घ्य अर्पि देला ।
पर्घेइ करि हरष् मने ताहाके,
य़क्ष-पिला पीर्ति भरि मधुर् कथा कहेला ॥
*
[5]
काहिँ बादल् ? काहिँ खबर् ?
मेल् नाइन केन्सि,
कुहुला जुए पाएन् पबन्
मिश्ले बादल् बन्सि ।
इन्द्रि निजर् सबल् थिले परान्धारी सिना,
खबर् पाति नेइ पार्सन् मेघर् शकत् नाइँना ।
इ कथाके य़क्ष बोप्रा
बुझि नाइँ पारि,
गुहैर् कला मेघर् आगे
उच्छन् हेइ भारि ।
काम्ना य़दि मन् भित्रे घारिछे,
प्रकुर्ति से प्रेमी लोक्के
करि देसि बिकल् ।
किए सचेत् किए अचेत् इ कथा,
जानि नाइँ पारे से त
हेसि बड़ा कल्बल् ॥
*
[6]
"बादल् भाइ रे !
पुष्कराबर्तकर् बँश दुनिआ अछे जानि,
से कुले तोर् जनम् आए, तुइ त खान्दानी ।
इन्दर् रजार् खोब् बिशुआस्
अछे तोर् ठाने,
इच्छा कर्ले रूप् धर्सु
इ कथा मुइँ जानेँ ।
दूरे अछे मोर् कनिआँ भाग्य खराप् भारि,
इथिर् काजे जनउछेँ तके मोर् गुहारि ।
गुनी लोकर् आगे निजर् पार्थना,
बिफल् हेले हउ पछे
सेटा उतम् आए ।
नीच् लोकर् ठाने य़ेते गुहारि,
सफल् हेले घले सेटा
भल् नाइँसे घाए ॥
*
[7]
तापित् लोकर् आस्रा तुइ
करि पार्सु शीतल्,
कनिआँ निके खबर् छने
नेइ जा मोर् बादल् !
कुबेर् रजार् रागे मुइँ धुरे हउछेँ झुरि,
य़िबु तुइ य़क्ष-पतिर् देस् अल्का पुरी ।
सेन बाहार् बगिचाने रहिछन्,
माहापुरु शिब, ताँकर्
मुँड़े अछे चन्दर् ।
महल् सबु धोब् दिशि चम्कुछे,
बाजि करि चन्दर्-किरन्
उजल् केड़े सुन्दर् ॥
*
[8]
तुइ आकाशे य़ेतेबेले चाल्बु खुसि हेइ,
पथिक् लोकर् कनिआँमाने देख्बे ठअँकेइ ।
हाते टेकि थिबे मुँड़र्
बाल्-टिपिके छइली,
मन्के बुझेइ उषत् हेबे
घएँता आस्बे बलि ।
तोर् आएबार् देखि करि किए भैल्,
छाड़ि पार्सि बिरहिनी
कनिआँके निजर् ।
परर् अधीन् मुइँ सिना भोगुछेँ,
मोर् बागिर् नाइँसे य़िए
धएन् धएन् से बर् ॥
*
[9]
बाधा किछु नाइँना तोर्
य़िबु आराम् करि,
देख्बु सेने तोर् बोहूके
बँचिथिबा बिच्री ।
उदास् थिबा पतिबर्ता एक्ला जीबन्-धनी,
आएबे बलि टाकि थिबा से दिन् गनि गनि ।
फुल् बागिर् कहँल् केते
हुरुद् अब्लालोकर्,
बिरह् बेले भाङ्गि य़ाएसि
कर्सि प्रेम् जबर् ।
मुनुस्माने थिले दुरिआ जागाथि,
माएझिमन्के डहक्बिकल्
लाग्सि भालि भालि ।
आशा-बन्धन् एका ताँकर् हुरुद्के,
बँचेइ रखि थिसि फेर्
मिलन् हेबा बलि ॥
*
[10]
बतर् हेइछे पबन् एभे तोर् पछे पछे,
धीरे धीरे तते आग्के बढ़ेइ करि नउछे ।
तोर् डेब्रि फाले इ त
सुन्दर् चेरे चातक्,
बड़ा जोशे डाक् दउछे
मधुर् मङ्गल् सूचक् ।
तोर् चेहेरा मोहि देसि आँखिके,
देखि करि गर्भधारन्-
आनन्द् पाइ मने ।
धाएड़् धाएड़् उड़ि उड़ि आकासे,
तके सेबा कर्बे सबु
माई बग्माने ॥
*
[11]
तोर् गर्जन् पुर्थी भएर्
फुटेइ देसि छति,
हेतिर् काजे केते जातिर्
फसल् हेसि भर्ति ।
सुनि करि तोर् मधुर् से गर्जन् काने,
मान्सरोबर् य़िबार् लागि राजहँसमाने ।
तन्द्रा हेइ दल् बान्धि संगे त,
धरिथिबे बाटर् आहार्
पदम्-नाड़् कएँलि ।
तुइ आकाशे गला बेल्के सेमाने,
कएलास् तक् साङ्ग हेइ
य़िबे डेना मेलि ॥
*
[12]
इ पाहाड़र् मझि पर्भु रामर् पाद चिह्ना,
शोभा पाउछे, ताके कर्सि दुनिआँ बन्दना ।
तोर् आदरर् साङ्ग इ त
बड़ा उँचा पर्बत्,
ताके पोट्लेइ बिदा हेइ जा
मन्के करि उषत् ।
बर्षा आएले इ परबत् तोर् सङ्गे,
मिशि करि सेनेहके
निजे जनेइ देसि ।
खोब् दिनुँ भेट्ला परे तोके से,
छाड़्सि उषुम् फाप्-लह
हेइ केते खुसि ॥
*
[13]
मन् देइ करि सुन् पहेला कहुछेँ रे भाइ !
जेन् बाटे कि सुबिधाने तुइ पार्बु जाइ ।
तार् पछे मुइँ कहेमि तते
प्रियार् लागि खबर्,
बने लाग्बा शुन्बु काने
कथाके मोर् मनर् ।
थाकि थाकि लाग्बा तके य़ेन्ठाने,
पाहाड़् देखि उप्रे छने
सेन बिश्राम् नेबु ।
दुर्बलिआ लाग्बा बएले बाटे तुइ,
नदीर् मधुर् उशास् पाएन्
पिइ करि य़िबु ॥
*
[14]
‘हादे पबन् पाहाड़्-शुरुङ्ग् उड़ेइ नउछे केएँ’
इ पर्कार् भाब्ना करि तके उपर् मुहेँ ।
अकाबका सादासिधा
सिद्ध-कनिआँमाने,
ठअँकाएबे तुइ य़ेबे
चाल्बु फुर्त्तिमने ।
सरस् बेत गछ भर्त्ति इठाने,
तुइ आकाशे उठ्बु इनुँ
करि मुहुँ उत्तर् ।
थिबु साब्धान् बाटे य़ेन्ता देहे तोर्,
नाइँ बाज्बा थोर्पा-आघात्
दिग-हातीमान्कर् ॥
*
[15]
इन्दर् धनु केते सुन्दर् दिशुछे इ साम्ने,
बिनोमुँड़िर् टिपिनुँ से उठिछे जतने ।
गुटे ठाने मिशि गले
रतन् केते बानि,
तेज् झल्मल् करुछे सते
मन्के नेसि टानि ।
इ धनु त तोर् साम्ला देहिके,
सजेइ देबा केते रंगे
अएन् दिश्बु सेनुँ ।
खोच्ले जेन्ति रंग्रंगिआ मजूर्-चूल्,
गोपाल्-बेशे सुन्दर् देही
नन्दनन्दन् काह्नु ॥
*
[16]
'चाषर् फल् तोर् अधीन्'
इ कथाके जानि,
गाआँर् टुकिल्-लोक्माने
करि सादा चाहाँनि ।
पीर्तिभरा आँखि तोके ठअँकाएबे छने,
भूरु नचेइ नाइँ जानन् गअँलिएन्मने ।
माल्-खेत्रे बर्षा करि चघ्बु रे,
ताजा हल् जोता हेइछे
महकि य़िबा बास्ना ।
पश्चिम्के य़िबु टिके बँकेइ,
तार् परे फेर् तुर्ते य़िबु
उत्तर् दिग साम्ना ॥
*
[17]
आम्रकूटे तिहिड़ि देइ मुषल् धारा बिषम्,
जंग्ली जूएर् उत्पात्के करि देबु खतम् ।
बाट् चालि चालि तुइ त थाकि
य़ाइथिबु केते,
आदर् करि शुर्ङ्गे निजर्
ठान् देबा से तोते ।
आस्रा लागि पाशे बन्धु आएले
सेतार् आघर् उप्कार्के इ बेले,
हेतेइ करि कृपण् घले
अनादर् करे नाइँ ।
देखुछु त आम्रकूट पर्बत
केड़े उँचा बहिछे मान् महत,
इतार् सरि साधुर् कथा
काणा कहेमि मुइँ ॥
*
[18]
ढाँकि देइछे आम्-जङ्गल् पाहाड़् तरातरा,
आम् पाचिछे केतेनिकेते, जङ्गल् गोरा चेहेरा ।
चिकन् बेनी बागिर् तुइ
कलाबरन् देही,
आम्रकूटर् चूले चघि
मन्के नेबु मोहि ।
पर्बत्के देख्बे आकाश् उपरुँ,
देबादेबीमाने केते
जुगल् प्रेम्भरा ।
पुर्थी रानीर् थन् परा दिश्बा रे,
मझि कलिआ बाकी सबु
तरातरा पँर्रा ॥
*
[19]
आम्रकूटे थेब्बु छने सेनर् कुञ्ज बने,
केते रङ्गे केलि कर्सन् बनुआँ माइझिमने ।
हेइथिबा तोर् देहि उशास्
पाएन् दर्ला मारि,
जल्दि गति बढ़ेइ निजर्
रास्ता हेबु पारि ।
देख्बु आगे पड़िछे नएद् नर्मदा,
पथरिआ उँचा-नीचा
पादे बिन्ध्य-गिरिर् ।
गुटे बिराट् कलिआ हातीर् देहिने,
नाना भंगीर् गार् टान्ला
सुन्दर् चित्र बागिर् ॥
*
[20]
सुबास् मद रस मिशि जंग्ली हातीदलर्,
महकुथिबा मधुर् पाएन् नर्मदा नएदर् ।
कोइजामर् कुञ्जे धारा
अट्कि थिबा सेने,
हल्का शीतल् कषा पाएन्
बढ़िआ लाग्बा तेने ।
तुइ त आगुन् बर्षा करि खालि पेटे थिबु,
रुच्बा तते से पानि तुइ पिइ करि जिबु ।
तोर् भित्रे बल् पूरि रहेबा,
घन ! तके टल्मलेइ
नाइँ पारे पबन् ।
शूइन् थिले सबु उशास् लाग्सि रे,
भित्रे पूरि थिले सिना
रहेसि निजर् ओजन् ॥
*
*
[1]
य़क्ष नूआँ बिहा हेइ कनिआँ पाशे माति,
कामे हेला कर्बा य़ोगुँ ताके य़क्ष-पति ।
शाएप् देले - ‘ रामगिरि पर्बतके जा’,
कनिआँ छाड़ि गुटे बछर् एक्ला सेने था’ ।
य़क्ष बिच्रा निस्तेज् हेइ
लमा शास्ति पाइ,
बसा कर्ला रामगिरिर्
आश्रम्थि य़ाइ ।
सेन बनबास् करिथिले शिरीरामर् रानी,
पतिबर्ता सीतादेबी जनक्-रजार् ननी ।
ताँकर् देहे लागि करि पबितर्,
हेइछे सेने सिनान् बेले
पाएन् सबु निर्मल् ।
केतेनिकेते नमेरु गछ सेठाने,
भर्ति अछे बहल् पतर्
गहन् छाइ शीतल् ॥
*
[2]
रहि करि से राम्गिरिने प्रियार् बिने उदास्,
झुरि झुरि कटेइ देला य़क्ष केतेक् मास् ।
पिन्धि थिला सुनार् बला
तल्के खस्रि आस्ला,
दुब्ला हाते मणिबन्धन्
मेला मेला दिश्ला ।
आषाढ़् मासर् पहेला दिने देख्ला से,
पाहाड़्-चूले कलाहाँडिआ
बादल् अछे घोटि ।
खेते जेन्ता बड़ा सुन्दर् हातीटे,
खेला कर्सि माएट् उखाड़ि
दाँते पिटि पिटि ॥
*
[3]
देख्ला परे प्रेम् इच्छा जाग्ला सेतार् मने,
केन्सि मते ठिआ हेइ से बादलर् साम्ने ।
आँखिर् लह भित्रे भित्रे
चापि करि य़ुबक्,
जह बेल् तक् भाब्ना कला
कुबेर् रजार् सेबक् ।
कनिआँ सुन्द्री निजर् पाशे थिले बि,
बादल् देखि प्रेमी लोकर्
मन् हेसि अथा ।
प्रियार् गला आप्टि करि धर्बाके,
आतुर् य़िए दूरे अछे
नाइँ कह तार् कथा ॥
*
[4]
शराबन आस्ले पाखे प्रिया गलामाली,
रख्बा य़ेन्ति तार् कोमल् परान्के सँभालि ।
हेतिर् लागि बादल्-हाते
य़क्ष कनिआँ निके,
कुशल् सन्देश् पठैमि बलि
भाबना कर्ला टिके ।
ताजा ताजा फुटि थिला कुरे फुल्,
तोलि करि मेघर् काजे
अर्घ्य अर्पि देला ।
पर्घेइ करि हरष् मने ताहाके,
य़क्ष-पिला पीर्ति भरि मधुर् कथा कहेला ॥
*
[5]
काहिँ बादल् ? काहिँ खबर् ?
मेल् नाइन केन्सि,
कुहुला जुए पाएन् पबन्
मिश्ले बादल् बन्सि ।
इन्द्रि निजर् सबल् थिले परान्धारी सिना,
खबर् पाति नेइ पार्सन् मेघर् शकत् नाइँना ।
इ कथाके य़क्ष बोप्रा
बुझि नाइँ पारि,
गुहैर् कला मेघर् आगे
उच्छन् हेइ भारि ।
काम्ना य़दि मन् भित्रे घारिछे,
प्रकुर्ति से प्रेमी लोक्के
करि देसि बिकल् ।
किए सचेत् किए अचेत् इ कथा,
जानि नाइँ पारे से त
हेसि बड़ा कल्बल् ॥
*
[6]
"बादल् भाइ रे !
पुष्कराबर्तकर् बँश दुनिआ अछे जानि,
से कुले तोर् जनम् आए, तुइ त खान्दानी ।
इन्दर् रजार् खोब् बिशुआस्
अछे तोर् ठाने,
इच्छा कर्ले रूप् धर्सु
इ कथा मुइँ जानेँ ।
दूरे अछे मोर् कनिआँ भाग्य खराप् भारि,
इथिर् काजे जनउछेँ तके मोर् गुहारि ।
गुनी लोकर् आगे निजर् पार्थना,
बिफल् हेले हउ पछे
सेटा उतम् आए ।
नीच् लोकर् ठाने य़ेते गुहारि,
सफल् हेले घले सेटा
भल् नाइँसे घाए ॥
*
[7]
तापित् लोकर् आस्रा तुइ
करि पार्सु शीतल्,
कनिआँ निके खबर् छने
नेइ जा मोर् बादल् !
कुबेर् रजार् रागे मुइँ धुरे हउछेँ झुरि,
य़िबु तुइ य़क्ष-पतिर् देस् अल्का पुरी ।
सेन बाहार् बगिचाने रहिछन्,
माहापुरु शिब, ताँकर्
मुँड़े अछे चन्दर् ।
महल् सबु धोब् दिशि चम्कुछे,
बाजि करि चन्दर्-किरन्
उजल् केड़े सुन्दर् ॥
*
[8]
तुइ आकाशे य़ेतेबेले चाल्बु खुसि हेइ,
पथिक् लोकर् कनिआँमाने देख्बे ठअँकेइ ।
हाते टेकि थिबे मुँड़र्
बाल्-टिपिके छइली,
मन्के बुझेइ उषत् हेबे
घएँता आस्बे बलि ।
तोर् आएबार् देखि करि किए भैल्,
छाड़ि पार्सि बिरहिनी
कनिआँके निजर् ।
परर् अधीन् मुइँ सिना भोगुछेँ,
मोर् बागिर् नाइँसे य़िए
धएन् धएन् से बर् ॥
*
[9]
बाधा किछु नाइँना तोर्
य़िबु आराम् करि,
देख्बु सेने तोर् बोहूके
बँचिथिबा बिच्री ।
उदास् थिबा पतिबर्ता एक्ला जीबन्-धनी,
आएबे बलि टाकि थिबा से दिन् गनि गनि ।
फुल् बागिर् कहँल् केते
हुरुद् अब्लालोकर्,
बिरह् बेले भाङ्गि य़ाएसि
कर्सि प्रेम् जबर् ।
मुनुस्माने थिले दुरिआ जागाथि,
माएझिमन्के डहक्बिकल्
लाग्सि भालि भालि ।
आशा-बन्धन् एका ताँकर् हुरुद्के,
बँचेइ रखि थिसि फेर्
मिलन् हेबा बलि ॥
*
[10]
बतर् हेइछे पबन् एभे तोर् पछे पछे,
धीरे धीरे तते आग्के बढ़ेइ करि नउछे ।
तोर् डेब्रि फाले इ त
सुन्दर् चेरे चातक्,
बड़ा जोशे डाक् दउछे
मधुर् मङ्गल् सूचक् ।
तोर् चेहेरा मोहि देसि आँखिके,
देखि करि गर्भधारन्-
आनन्द् पाइ मने ।
धाएड़् धाएड़् उड़ि उड़ि आकासे,
तके सेबा कर्बे सबु
माई बग्माने ॥
*
[11]
तोर् गर्जन् पुर्थी भएर्
फुटेइ देसि छति,
हेतिर् काजे केते जातिर्
फसल् हेसि भर्ति ।
सुनि करि तोर् मधुर् से गर्जन् काने,
मान्सरोबर् य़िबार् लागि राजहँसमाने ।
तन्द्रा हेइ दल् बान्धि संगे त,
धरिथिबे बाटर् आहार्
पदम्-नाड़् कएँलि ।
तुइ आकाशे गला बेल्के सेमाने,
कएलास् तक् साङ्ग हेइ
य़िबे डेना मेलि ॥
*
[12]
इ पाहाड़र् मझि पर्भु रामर् पाद चिह्ना,
शोभा पाउछे, ताके कर्सि दुनिआँ बन्दना ।
तोर् आदरर् साङ्ग इ त
बड़ा उँचा पर्बत्,
ताके पोट्लेइ बिदा हेइ जा
मन्के करि उषत् ।
बर्षा आएले इ परबत् तोर् सङ्गे,
मिशि करि सेनेहके
निजे जनेइ देसि ।
खोब् दिनुँ भेट्ला परे तोके से,
छाड़्सि उषुम् फाप्-लह
हेइ केते खुसि ॥
*
[13]
मन् देइ करि सुन् पहेला कहुछेँ रे भाइ !
जेन् बाटे कि सुबिधाने तुइ पार्बु जाइ ।
तार् पछे मुइँ कहेमि तते
प्रियार् लागि खबर्,
बने लाग्बा शुन्बु काने
कथाके मोर् मनर् ।
थाकि थाकि लाग्बा तके य़ेन्ठाने,
पाहाड़् देखि उप्रे छने
सेन बिश्राम् नेबु ।
दुर्बलिआ लाग्बा बएले बाटे तुइ,
नदीर् मधुर् उशास् पाएन्
पिइ करि य़िबु ॥
*
[14]
‘हादे पबन् पाहाड़्-शुरुङ्ग् उड़ेइ नउछे केएँ’
इ पर्कार् भाब्ना करि तके उपर् मुहेँ ।
अकाबका सादासिधा
सिद्ध-कनिआँमाने,
ठअँकाएबे तुइ य़ेबे
चाल्बु फुर्त्तिमने ।
सरस् बेत गछ भर्त्ति इठाने,
तुइ आकाशे उठ्बु इनुँ
करि मुहुँ उत्तर् ।
थिबु साब्धान् बाटे य़ेन्ता देहे तोर्,
नाइँ बाज्बा थोर्पा-आघात्
दिग-हातीमान्कर् ॥
*
[15]
इन्दर् धनु केते सुन्दर् दिशुछे इ साम्ने,
बिनोमुँड़िर् टिपिनुँ से उठिछे जतने ।
गुटे ठाने मिशि गले
रतन् केते बानि,
तेज् झल्मल् करुछे सते
मन्के नेसि टानि ।
इ धनु त तोर् साम्ला देहिके,
सजेइ देबा केते रंगे
अएन् दिश्बु सेनुँ ।
खोच्ले जेन्ति रंग्रंगिआ मजूर्-चूल्,
गोपाल्-बेशे सुन्दर् देही
नन्दनन्दन् काह्नु ॥
*
[16]
'चाषर् फल् तोर् अधीन्'
इ कथाके जानि,
गाआँर् टुकिल्-लोक्माने
करि सादा चाहाँनि ।
पीर्तिभरा आँखि तोके ठअँकाएबे छने,
भूरु नचेइ नाइँ जानन् गअँलिएन्मने ।
माल्-खेत्रे बर्षा करि चघ्बु रे,
ताजा हल् जोता हेइछे
महकि य़िबा बास्ना ।
पश्चिम्के य़िबु टिके बँकेइ,
तार् परे फेर् तुर्ते य़िबु
उत्तर् दिग साम्ना ॥
*
[17]
आम्रकूटे तिहिड़ि देइ मुषल् धारा बिषम्,
जंग्ली जूएर् उत्पात्के करि देबु खतम् ।
बाट् चालि चालि तुइ त थाकि
य़ाइथिबु केते,
आदर् करि शुर्ङ्गे निजर्
ठान् देबा से तोते ।
आस्रा लागि पाशे बन्धु आएले
सेतार् आघर् उप्कार्के इ बेले,
हेतेइ करि कृपण् घले
अनादर् करे नाइँ ।
देखुछु त आम्रकूट पर्बत
केड़े उँचा बहिछे मान् महत,
इतार् सरि साधुर् कथा
काणा कहेमि मुइँ ॥
*
[18]
ढाँकि देइछे आम्-जङ्गल् पाहाड़् तरातरा,
आम् पाचिछे केतेनिकेते, जङ्गल् गोरा चेहेरा ।
चिकन् बेनी बागिर् तुइ
कलाबरन् देही,
आम्रकूटर् चूले चघि
मन्के नेबु मोहि ।
पर्बत्के देख्बे आकाश् उपरुँ,
देबादेबीमाने केते
जुगल् प्रेम्भरा ।
पुर्थी रानीर् थन् परा दिश्बा रे,
मझि कलिआ बाकी सबु
तरातरा पँर्रा ॥
*
[19]
आम्रकूटे थेब्बु छने सेनर् कुञ्ज बने,
केते रङ्गे केलि कर्सन् बनुआँ माइझिमने ।
हेइथिबा तोर् देहि उशास्
पाएन् दर्ला मारि,
जल्दि गति बढ़ेइ निजर्
रास्ता हेबु पारि ।
देख्बु आगे पड़िछे नएद् नर्मदा,
पथरिआ उँचा-नीचा
पादे बिन्ध्य-गिरिर् ।
गुटे बिराट् कलिआ हातीर् देहिने,
नाना भंगीर् गार् टान्ला
सुन्दर् चित्र बागिर् ॥
*
[20]
सुबास् मद रस मिशि जंग्ली हातीदलर्,
महकुथिबा मधुर् पाएन् नर्मदा नएदर् ।
कोइजामर् कुञ्जे धारा
अट्कि थिबा सेने,
हल्का शीतल् कषा पाएन्
बढ़िआ लाग्बा तेने ।
तुइ त आगुन् बर्षा करि खालि पेटे थिबु,
रुच्बा तते से पानि तुइ पिइ करि जिबु ।
तोर् भित्रे बल् पूरि रहेबा,
घन ! तके टल्मलेइ
नाइँ पारे पबन् ।
शूइन् थिले सबु उशास् लाग्सि रे,
भित्रे पूरि थिले सिना
रहेसि निजर् ओजन् ॥
*
[21]
शागुआ-खएँरा कदम् फुल् फुटिथिबा अधा,
भम्रामाने देखुथिबे करि ताके शर्धा ।
कछार् पाशे जागिथिबा
भूईँकद्ली कलि,
हरष्मने हेर्नामाने
खाउथिबे बुलि ।
चहटुथिबा माटिर् बास महमह,
शुंघुथिबे हातीदल्
बुलि जङ्ग्ले जङ्ग्ले ।
इमाने देबे तोर् बाटर् सूचना,
पाएन्-बुन्दा बर्षा करि
य़िबु य़ेतेबेले ॥
*
[22]
नूआँ पाएन् पिइबा लागि चातक्माने चतुर्,
देख्बे ताँके सिद्धमाने भाबि प्रेम् मधुर् ।
धाएड़् धाएड़् उड़ुथिबार्
माई बग्के हाते,
गनि गनि प्रियामन्के
देखोउथिबे केते ।
तुइ घड़्घड़् कलाबेले सेठाने,
ताँकर् सहचरीमाने
चम्कि करि सबे ।
सिद्धमान्के आप्टि धर्बे डरि डरि,
प्रियमाने सुख् पाइ करि
तके धएन् बल्बे ॥
*
[23]
खबेर् धरि प्रियार् पाखे जल्दि जिबा काजे,
तोर् इच्छा त अछे मातर् मुइँ जानुछेँ निजे ।
डंग्रे डंग्रे महकुथिबा
कुरे-फुलर् बास्ना,
सेने बिलम् हेबा बागिर्
पड़ुछे रे जना ।
केका-शब्दे कर्बे तके सुआगत्,
आँखि निजर् आनन्द्-लह
झरेइ मजूर् सबु ।
पाएला परे सेमान्कर् आदर्के,
केन्सि मते झअट् करि
य़िबार् चेष्टा कर्बु ॥
*
[24]
तुइ दशार्न देशे आसि पुहुँचि गले सेन,
मानस् य़िबार् हँस्माने रहैबे किछि दिन ।
कढ़ि आकार् केतेनिकेते
केत्की फुटिथिबा,
उपबनर् बाड़ा सबु
पँर्रा बरन् दिश्बा ।
गाआँर् केते गछे हेबा गहलि,
गुड़ा बान्ध्बे चेरेमाने
केते कुआ चँटिआ ।
गछे बनिहाँ पाचिथिबा कोइजाम्,
सेथिर् गुने जंगल् सीमार्
रंग् दिश्बा कलिआ ॥
*
[25]
राज्धानी से देशर् आए बिदिशा नगरी,
तार् कीर्ति ब्यापिअछे चिएर् दिगे पूरि ।
सेन्के य़ाइ तोर् रसिआ
गुन् देखेइ देबु,
साङ्गे साङ्गे तुइ बिलासीर्
पूरा फल् पाएबु ।
बेत्रबती नएद् बहुछे
करि केते ठानि,
बड़ा चङ्ग्चङ्ग् लहड़ा खेले
सुआद् सेतार् पानि ।
भूर्लताके नचेइ करि य़ेन्ता कि,
केन् सुन्द्री रसबती
मल्काएसि मुहुँ ।
पिइबु तुइ तार् चएँड़े मधुरस्,
खँड़िथि रहि सुन्दर् भाबे
करि गर्जन् उहुँ ॥
*
[26]
‘नीच्’ नाआँर् पाहाड़् गुटे पाखे अछे देख्बु,
तुइ बिश्राम् कर्बा लागि सेने रहिय़िबु ।
तोर् संग् पाइ कदम् फुल्
फुट्ले परबते,
जना पड़्बा तार् देहे रुम्
टेङ्गेइ हेइछे सते ।
से पाहाड़र् पखान्-घरे
सजेइ रूप ठानि,
लगेइ हेसन् बेस्वेन्मने
बास्ना केते बानि ।
ताँकर् संगे मिशि करि नगरर्,
लम्पटिआ केते जुआन्
रसिथिसन् गुपत् ।
से धंग्रा पिलामन्कर् जउबन्,
लगाम्छड़ा केन्ता सेटा
जनेइ देसि पर्बत् ॥
*
[27]
बिशेइ करि तुइ सेलके बाट् धर्बु निजर्,
य़िबार् आगुन् बन-नदीर् कूले हेबु हाजर् ।
बगिचाने थिबा बहुत्
जूई कढ़ि फुटि,
भुरि भुरि नूआँ पाएन्
देबु हेति झिटि ।
मालेन्माने तोलुथिबे केते फुल्,
ताँकर् मुहेँ छाएँ देइ
छने चिह्नार् हेबु ।
गालर् झाल् पोछि पोछि खराथि,
झुर्मुरेइ थिबा ताँकर्
कानर् पदम् सबु ॥
*
[28]
तुइ चाल्तेल् जिबु भाइ ! सिधा उत्तर् दिग्के,
य़दर्पि तोर् रास्ता टिके बँकेइ य़िबा आग्के ।
उज्जयिनीर् उँचा उँचा
महले चघि बाबु,
मजा कर्बा लागि निजर्
मुहुँ नाइँ फिराबु ।
चक्चक् करि बिज्ली देबु झट्केइ,
चम्किय़िबे नाग्रीमाने
ठअँकेइ करि तके ।
देखिकरि से छन्छनिआँ चाहाँनी,
मन् खुसि तोर् नाइँ हेले
पड़्बु तुइ ठँके ॥
*
[29]
बाटे भेट्बु तोर् संगिनी नदी निर्बिन्धिया,
सेतार् रसे मातिय़िबु तुइ बड़् रसिआ ।
लहड़ा-दोले सेन चेरेदल् गुन्गुनोउथिबा,
घुन्सि सेटा तार् अँटाने चँचल् दिशुथिबा ।
झल्मलिआ चेहेरा धरि
पथ्रे जउछे फिस्लि,
पाएन्-भअँरी- नाभिके तार्
देखोउथिबा छएली ।
प्रेमीर् पाशे जेते जेते देखैसन्,
स्तिरीमाने छन्छनिआँ
चेहेरा रूप ठानि ।
प्रेमर् मिठा पहेला भाषा सेटा आए,
टुण् ताँकर् नाइँ फुटे
लाज् लाग्बा जानि ॥
*
[30]
ए सुन्द्रा ! तोर्नुँ सिन्धु नदी धुरे रहि,
बेनी बागिर् पत्ला धारा य़ाउछे धीरे बहि ।
खँड़िथि जेते गछ अछे
शुखा पतर् सेथिर्,
झरि पड़िछे हेतिर् जोगुँ
सेतुआ सेतार् शरीर् ।
धरि निजर् बिरहिनी अबस्था,
तोर् सुहाग जनेइ दउछे
से त पति-बर्ता ।
उचित् कारज् कर्बु तुइ सेलगे,
जेन्ताभाबे दूर् हेबा
हेतार् दुर्बलता ॥
*
[31]
अबन्तीके य़िबु, गाआँर् बुढ़ामाने सेनर्,
कहुथिसन् मजा कथा रजा उदयनर् ।
उज्जयिनीर् सूच्ना तके
देइछेँ मुइँ आगुन्,
पुहुँचि जिबु पूरिछे सेन
धन् दौलत् सुगुन् ।
य़ज्ञ-बले सुख भोगि जह दिन्
पुइन् फल् जेतेबेले हेला खीन्,
सरग्-बासी गुहुड़े आएले
पुर्थीतल्के उत्रि ।
किछि आख्री पुइन् बले ताहाँकर्
धरि आन्ले सते खँड़ेक् सरगर्,
हेइ उजल् खँड़् आए
उज्जयिनी नग्री ॥
*
[32]
से पुरीने सिप्रा नदी य़ाउछे धीरे बोहि,
पहँपहँके सेतार् पबन् मन्के नेसि मोहि ।
खेलुथिसन् सारस् दल्
शबद् करि मधुर्,
से सुर्के धरि पबन्
लमेइ नेसि धुर् ।
सेन सुन्दर् पदम् फुल्
केते थिसि फुटि,
तार् महमह सुबास् धरि
पबन् य़ाएसि चहटि ।
आराम् देसि छुइँ करि देहिके,
कहेसि केते फुस्लेइ करि
मिठा कथा गोपन् ।
नारीमन्कर् केलि-थकान् मिटैसि,
प्रेम्-रसिआ मुनुस् परा
सिप्रा नदीर् पबन् ॥
*
[33]
उज्जयिनीर् रजा थिले प्रद्योत् महासेन,
बासब्दत्ता थिले ताँकर् लार्री जेमा इन ।
बत्स देशर् रजा उदयन् आसिथिले इन्के,
हरन् करि धरिगले राज्कुमारीके ।
इ देश्थि रहिथिला
रजा महासेनर्,
ताल् गछर् केड़े बिराट्
जङ्गल् सुना रङ्गर् ।
नलगिरि हाती इने खमाँके उखाड़ि,
केते उत्पात् करिथिला देह्के मुड़िमाड़ि ।
इ पर्कार् घट्ला कथा रहिछे,
जानिथिला लोक्माने
इ अबन्ती देशर् ।
घर्के आएले बन्धुबान्धब् पहँना,
केते गपि मन्के खुसि
करेइ देसन् ताँकर् ॥
*
[34]
उज्जयिनीर् बजार्मन्थि अछे कोटि कोटि,
खाण्टि हार्, ढल्ढलुछे मझिर् मणि गोटि ।
शँख् मुकुता बिछेइ हेइछे
नाइँ हुए गनि,
इथुँ जान्बु हेइ नग्रे
अछन् केते धनी ।
कहँल् घाँस् बागि शागुआ
मर्कत् मणि तेजा,
झट्कि जाएसि उप्रे सेतार्
बाहारि किरन् गजा ।
बसिछे आरु सेन बहुत् बजारे,
चक्चकिआ केतेनिकेते
नाना रतन् पहँला ।
पर्ते हेसि देखिकरि इ सबुके,
रत्नाकर सागर्थि त
छुचा पानि रहेला ॥
*
[35]
सिनान् सारि सुन्द्रीमाने निजर् मुँड़र् गहन्,
चिकन् बाल्के सजोउथिबे धूप् देइ जतन् ।
झर्का बाटे बाहारि आसि
पबन्थि से धूप,
बढ़ेइ देबा तोर् देहिके
सुन्दर् दिश्बा रूप ।
बन्धुर् प्रेम् जानि करि महल्-मय़ूर्माने,
नाच्-उपहार् देबे तके केते हरष् मने ।
महल् सबु महकुथिबा
नाना फुलर् बासे,
सुन्द्रीमाने चालुथिबे
आनन्दे उल्लासे ।
सेन सुन्दर् दिशुथिबा भूइँतल्,
कहँल् पादर् लाल् अल्ता
चिह्ना लागि करि ।
बाटर् थकान् मिटेइ देबु भाइ रे !
देखि करि इ पर्कार्
उज्जयिनीर् शिरी ॥
*
[36]
य़िबु पाबन् धाम् य़ेन्ने शिब माहापुरु,
बिजे निजे गौरीपति तिन् भुबनर् गुरु ।
प्रभुर् गला- बरन् बागिर्
जानि तोर् गागर्,
अनुचर्माने देख्बे तके
करि बहुत् आदर् ।
गन्धबती नदीर् पबन् सेने धीरे बहि,
बगिचाके हलेइ देसि छने छने रहि ।
नीला पदम् फुलर् पराग् संगे से,
मिशि करि मधुर् बास
चहटेइ देसि ।
जल्केलि कर्ला बेले सेठानर्,
धांग्री लोकर् गाधुआ य़ोगुँ
फेर् महकि य़ाएसि ॥
*
[37]
अन्य बेल्के आरु थरे महाकाल् प्रभुर्,
मन्दिर्ने आनन्द्-मने पुहुँचि य़िबु जरूर् ।
सूरुज् देब्ता थिबा पते
तोर् आँखि गोचर्,
तुइ सेलगे रहेबु टाकि
नाइँ हेबु तर्तर् ।
सन्ध्या पूजा बेलर् ढोल् बाइद,
जेन्ता बाज्सि माहादेबर्
तुइ से कारज् सारि ।
बादल् भाइ ! तोर् गम्भीर् गर्जनर्,
अखँड् सुफल् पाएबु निश्चे
पर्भु-सेबा करि ॥
*
[38]
नाचुथिबे बेश्या केते मन्के करि खुसि,
पाद् चाल्ले बाजुथिबा झुन्झुन् करि घुन्सि ।
सेत्कि बेले धीरे धीरे
चामर् धुकि धुकि,
हेमान्कर् कहँल् हात
य़ाइथिबा थकि ।
से चामरर् डँड़ामन्थि खञ्जा थिबा रतन्,
दिशुथिबा उजल् केते बाजि तेज् किरन् ।
बेश्यामाने देहिर् नख-चिह्नाथि,
तोर् बर्षार् पाएन्-बुन्दा
पाएले उषत् हेबे ।
भम्रा धाड़ि बागिर् बँका चाहाँनी,
लमेइ करि तके छनेक्
ठअँकेइ नेबे ॥
*
[39]
पछे उँचा गछ बागिर् बाहाँके हलेइ,
ताण्डब् नाच कर्बे शिब पादके चलेइ ।
सेते बेल्के ताजा लाल्
मन्दार् फुल् परा,
सञ्जर् सुरुज्- तेज् धरि त
दिश्बु तुइ सुन्द्रा ।
मण्डल् आकार् हेइ करि शिब माहापुरुर्,
लमा लमा बाहाँके तुइ घेरि देबु जरुर् ।
रकत्-ओदा गजासुरर् छाल्के,
ओढ़्बा लागि सेत्किबेले
ताँकर् इच्छा थिबा ।
सेटा पूरन् कर्बु, तोर् भक्तिके,
थिर् निश्चल् आँखि निजर्
देख्बे देबी शिबा ॥
*
[40]
घोटिथिबा राएत् बेले किट्किटिआ अन्धार्,
नाइँ दिशे राज्रास्ता खालि आँखि काहार् ।
निजर् निजर् प्रिय-घर्के
केते य़े प्रेमिका,
तन्द्रा हेइ य़ाउथिबे
से अभिसारिका ।
सुना-रेखा जेन्ता कष्टि पथरे,
बिज्ली उकिआ अन्धार् बाटे
देखेइ देबु निजे ।
कर्बु नाइँ बर्षा संगे घड़्घड़ि,
बड़ा डर्हेइ सेमाने त
अब्ला लोक सहजे ॥
*
शागुआ-खएँरा कदम् फुल् फुटिथिबा अधा,
भम्रामाने देखुथिबे करि ताके शर्धा ।
कछार् पाशे जागिथिबा
भूईँकद्ली कलि,
हरष्मने हेर्नामाने
खाउथिबे बुलि ।
चहटुथिबा माटिर् बास महमह,
शुंघुथिबे हातीदल्
बुलि जङ्ग्ले जङ्ग्ले ।
इमाने देबे तोर् बाटर् सूचना,
पाएन्-बुन्दा बर्षा करि
य़िबु य़ेतेबेले ॥
*
[22]
नूआँ पाएन् पिइबा लागि चातक्माने चतुर्,
देख्बे ताँके सिद्धमाने भाबि प्रेम् मधुर् ।
धाएड़् धाएड़् उड़ुथिबार्
माई बग्के हाते,
गनि गनि प्रियामन्के
देखोउथिबे केते ।
तुइ घड़्घड़् कलाबेले सेठाने,
ताँकर् सहचरीमाने
चम्कि करि सबे ।
सिद्धमान्के आप्टि धर्बे डरि डरि,
प्रियमाने सुख् पाइ करि
तके धएन् बल्बे ॥
*
[23]
खबेर् धरि प्रियार् पाखे जल्दि जिबा काजे,
तोर् इच्छा त अछे मातर् मुइँ जानुछेँ निजे ।
डंग्रे डंग्रे महकुथिबा
कुरे-फुलर् बास्ना,
सेने बिलम् हेबा बागिर्
पड़ुछे रे जना ।
केका-शब्दे कर्बे तके सुआगत्,
आँखि निजर् आनन्द्-लह
झरेइ मजूर् सबु ।
पाएला परे सेमान्कर् आदर्के,
केन्सि मते झअट् करि
य़िबार् चेष्टा कर्बु ॥
*
[24]
तुइ दशार्न देशे आसि पुहुँचि गले सेन,
मानस् य़िबार् हँस्माने रहैबे किछि दिन ।
कढ़ि आकार् केतेनिकेते
केत्की फुटिथिबा,
उपबनर् बाड़ा सबु
पँर्रा बरन् दिश्बा ।
गाआँर् केते गछे हेबा गहलि,
गुड़ा बान्ध्बे चेरेमाने
केते कुआ चँटिआ ।
गछे बनिहाँ पाचिथिबा कोइजाम्,
सेथिर् गुने जंगल् सीमार्
रंग् दिश्बा कलिआ ॥
*
[25]
राज्धानी से देशर् आए बिदिशा नगरी,
तार् कीर्ति ब्यापिअछे चिएर् दिगे पूरि ।
सेन्के य़ाइ तोर् रसिआ
गुन् देखेइ देबु,
साङ्गे साङ्गे तुइ बिलासीर्
पूरा फल् पाएबु ।
बेत्रबती नएद् बहुछे
करि केते ठानि,
बड़ा चङ्ग्चङ्ग् लहड़ा खेले
सुआद् सेतार् पानि ।
भूर्लताके नचेइ करि य़ेन्ता कि,
केन् सुन्द्री रसबती
मल्काएसि मुहुँ ।
पिइबु तुइ तार् चएँड़े मधुरस्,
खँड़िथि रहि सुन्दर् भाबे
करि गर्जन् उहुँ ॥
*
[26]
‘नीच्’ नाआँर् पाहाड़् गुटे पाखे अछे देख्बु,
तुइ बिश्राम् कर्बा लागि सेने रहिय़िबु ।
तोर् संग् पाइ कदम् फुल्
फुट्ले परबते,
जना पड़्बा तार् देहे रुम्
टेङ्गेइ हेइछे सते ।
से पाहाड़र् पखान्-घरे
सजेइ रूप ठानि,
लगेइ हेसन् बेस्वेन्मने
बास्ना केते बानि ।
ताँकर् संगे मिशि करि नगरर्,
लम्पटिआ केते जुआन्
रसिथिसन् गुपत् ।
से धंग्रा पिलामन्कर् जउबन्,
लगाम्छड़ा केन्ता सेटा
जनेइ देसि पर्बत् ॥
*
[27]
बिशेइ करि तुइ सेलके बाट् धर्बु निजर्,
य़िबार् आगुन् बन-नदीर् कूले हेबु हाजर् ।
बगिचाने थिबा बहुत्
जूई कढ़ि फुटि,
भुरि भुरि नूआँ पाएन्
देबु हेति झिटि ।
मालेन्माने तोलुथिबे केते फुल्,
ताँकर् मुहेँ छाएँ देइ
छने चिह्नार् हेबु ।
गालर् झाल् पोछि पोछि खराथि,
झुर्मुरेइ थिबा ताँकर्
कानर् पदम् सबु ॥
*
[28]
तुइ चाल्तेल् जिबु भाइ ! सिधा उत्तर् दिग्के,
य़दर्पि तोर् रास्ता टिके बँकेइ य़िबा आग्के ।
उज्जयिनीर् उँचा उँचा
महले चघि बाबु,
मजा कर्बा लागि निजर्
मुहुँ नाइँ फिराबु ।
चक्चक् करि बिज्ली देबु झट्केइ,
चम्किय़िबे नाग्रीमाने
ठअँकेइ करि तके ।
देखिकरि से छन्छनिआँ चाहाँनी,
मन् खुसि तोर् नाइँ हेले
पड़्बु तुइ ठँके ॥
*
[29]
बाटे भेट्बु तोर् संगिनी नदी निर्बिन्धिया,
सेतार् रसे मातिय़िबु तुइ बड़् रसिआ ।
लहड़ा-दोले सेन चेरेदल् गुन्गुनोउथिबा,
घुन्सि सेटा तार् अँटाने चँचल् दिशुथिबा ।
झल्मलिआ चेहेरा धरि
पथ्रे जउछे फिस्लि,
पाएन्-भअँरी- नाभिके तार्
देखोउथिबा छएली ।
प्रेमीर् पाशे जेते जेते देखैसन्,
स्तिरीमाने छन्छनिआँ
चेहेरा रूप ठानि ।
प्रेमर् मिठा पहेला भाषा सेटा आए,
टुण् ताँकर् नाइँ फुटे
लाज् लाग्बा जानि ॥
*
[30]
ए सुन्द्रा ! तोर्नुँ सिन्धु नदी धुरे रहि,
बेनी बागिर् पत्ला धारा य़ाउछे धीरे बहि ।
खँड़िथि जेते गछ अछे
शुखा पतर् सेथिर्,
झरि पड़िछे हेतिर् जोगुँ
सेतुआ सेतार् शरीर् ।
धरि निजर् बिरहिनी अबस्था,
तोर् सुहाग जनेइ दउछे
से त पति-बर्ता ।
उचित् कारज् कर्बु तुइ सेलगे,
जेन्ताभाबे दूर् हेबा
हेतार् दुर्बलता ॥
*
[31]
अबन्तीके य़िबु, गाआँर् बुढ़ामाने सेनर्,
कहुथिसन् मजा कथा रजा उदयनर् ।
उज्जयिनीर् सूच्ना तके
देइछेँ मुइँ आगुन्,
पुहुँचि जिबु पूरिछे सेन
धन् दौलत् सुगुन् ।
य़ज्ञ-बले सुख भोगि जह दिन्
पुइन् फल् जेतेबेले हेला खीन्,
सरग्-बासी गुहुड़े आएले
पुर्थीतल्के उत्रि ।
किछि आख्री पुइन् बले ताहाँकर्
धरि आन्ले सते खँड़ेक् सरगर्,
हेइ उजल् खँड़् आए
उज्जयिनी नग्री ॥
*
[32]
से पुरीने सिप्रा नदी य़ाउछे धीरे बोहि,
पहँपहँके सेतार् पबन् मन्के नेसि मोहि ।
खेलुथिसन् सारस् दल्
शबद् करि मधुर्,
से सुर्के धरि पबन्
लमेइ नेसि धुर् ।
सेन सुन्दर् पदम् फुल्
केते थिसि फुटि,
तार् महमह सुबास् धरि
पबन् य़ाएसि चहटि ।
आराम् देसि छुइँ करि देहिके,
कहेसि केते फुस्लेइ करि
मिठा कथा गोपन् ।
नारीमन्कर् केलि-थकान् मिटैसि,
प्रेम्-रसिआ मुनुस् परा
सिप्रा नदीर् पबन् ॥
*
[33]
उज्जयिनीर् रजा थिले प्रद्योत् महासेन,
बासब्दत्ता थिले ताँकर् लार्री जेमा इन ।
बत्स देशर् रजा उदयन् आसिथिले इन्के,
हरन् करि धरिगले राज्कुमारीके ।
इ देश्थि रहिथिला
रजा महासेनर्,
ताल् गछर् केड़े बिराट्
जङ्गल् सुना रङ्गर् ।
नलगिरि हाती इने खमाँके उखाड़ि,
केते उत्पात् करिथिला देह्के मुड़िमाड़ि ।
इ पर्कार् घट्ला कथा रहिछे,
जानिथिला लोक्माने
इ अबन्ती देशर् ।
घर्के आएले बन्धुबान्धब् पहँना,
केते गपि मन्के खुसि
करेइ देसन् ताँकर् ॥
*
[34]
उज्जयिनीर् बजार्मन्थि अछे कोटि कोटि,
खाण्टि हार्, ढल्ढलुछे मझिर् मणि गोटि ।
शँख् मुकुता बिछेइ हेइछे
नाइँ हुए गनि,
इथुँ जान्बु हेइ नग्रे
अछन् केते धनी ।
कहँल् घाँस् बागि शागुआ
मर्कत् मणि तेजा,
झट्कि जाएसि उप्रे सेतार्
बाहारि किरन् गजा ।
बसिछे आरु सेन बहुत् बजारे,
चक्चकिआ केतेनिकेते
नाना रतन् पहँला ।
पर्ते हेसि देखिकरि इ सबुके,
रत्नाकर सागर्थि त
छुचा पानि रहेला ॥
*
[35]
सिनान् सारि सुन्द्रीमाने निजर् मुँड़र् गहन्,
चिकन् बाल्के सजोउथिबे धूप् देइ जतन् ।
झर्का बाटे बाहारि आसि
पबन्थि से धूप,
बढ़ेइ देबा तोर् देहिके
सुन्दर् दिश्बा रूप ।
बन्धुर् प्रेम् जानि करि महल्-मय़ूर्माने,
नाच्-उपहार् देबे तके केते हरष् मने ।
महल् सबु महकुथिबा
नाना फुलर् बासे,
सुन्द्रीमाने चालुथिबे
आनन्दे उल्लासे ।
सेन सुन्दर् दिशुथिबा भूइँतल्,
कहँल् पादर् लाल् अल्ता
चिह्ना लागि करि ।
बाटर् थकान् मिटेइ देबु भाइ रे !
देखि करि इ पर्कार्
उज्जयिनीर् शिरी ॥
*
[36]
य़िबु पाबन् धाम् य़ेन्ने शिब माहापुरु,
बिजे निजे गौरीपति तिन् भुबनर् गुरु ।
प्रभुर् गला- बरन् बागिर्
जानि तोर् गागर्,
अनुचर्माने देख्बे तके
करि बहुत् आदर् ।
गन्धबती नदीर् पबन् सेने धीरे बहि,
बगिचाके हलेइ देसि छने छने रहि ।
नीला पदम् फुलर् पराग् संगे से,
मिशि करि मधुर् बास
चहटेइ देसि ।
जल्केलि कर्ला बेले सेठानर्,
धांग्री लोकर् गाधुआ य़ोगुँ
फेर् महकि य़ाएसि ॥
*
[37]
अन्य बेल्के आरु थरे महाकाल् प्रभुर्,
मन्दिर्ने आनन्द्-मने पुहुँचि य़िबु जरूर् ।
सूरुज् देब्ता थिबा पते
तोर् आँखि गोचर्,
तुइ सेलगे रहेबु टाकि
नाइँ हेबु तर्तर् ।
सन्ध्या पूजा बेलर् ढोल् बाइद,
जेन्ता बाज्सि माहादेबर्
तुइ से कारज् सारि ।
बादल् भाइ ! तोर् गम्भीर् गर्जनर्,
अखँड् सुफल् पाएबु निश्चे
पर्भु-सेबा करि ॥
*
[38]
नाचुथिबे बेश्या केते मन्के करि खुसि,
पाद् चाल्ले बाजुथिबा झुन्झुन् करि घुन्सि ।
सेत्कि बेले धीरे धीरे
चामर् धुकि धुकि,
हेमान्कर् कहँल् हात
य़ाइथिबा थकि ।
से चामरर् डँड़ामन्थि खञ्जा थिबा रतन्,
दिशुथिबा उजल् केते बाजि तेज् किरन् ।
बेश्यामाने देहिर् नख-चिह्नाथि,
तोर् बर्षार् पाएन्-बुन्दा
पाएले उषत् हेबे ।
भम्रा धाड़ि बागिर् बँका चाहाँनी,
लमेइ करि तके छनेक्
ठअँकेइ नेबे ॥
*
[39]
पछे उँचा गछ बागिर् बाहाँके हलेइ,
ताण्डब् नाच कर्बे शिब पादके चलेइ ।
सेते बेल्के ताजा लाल्
मन्दार् फुल् परा,
सञ्जर् सुरुज्- तेज् धरि त
दिश्बु तुइ सुन्द्रा ।
मण्डल् आकार् हेइ करि शिब माहापुरुर्,
लमा लमा बाहाँके तुइ घेरि देबु जरुर् ।
रकत्-ओदा गजासुरर् छाल्के,
ओढ़्बा लागि सेत्किबेले
ताँकर् इच्छा थिबा ।
सेटा पूरन् कर्बु, तोर् भक्तिके,
थिर् निश्चल् आँखि निजर्
देख्बे देबी शिबा ॥
*
[40]
घोटिथिबा राएत् बेले किट्किटिआ अन्धार्,
नाइँ दिशे राज्रास्ता खालि आँखि काहार् ।
निजर् निजर् प्रिय-घर्के
केते य़े प्रेमिका,
तन्द्रा हेइ य़ाउथिबे
से अभिसारिका ।
सुना-रेखा जेन्ता कष्टि पथरे,
बिज्ली उकिआ अन्धार् बाटे
देखेइ देबु निजे ।
कर्बु नाइँ बर्षा संगे घड़्घड़ि,
बड़ा डर्हेइ सेमाने त
अब्ला लोक सहजे ॥
*
[41]
देख्बु छिना केन्सि उँचा उपर् महल् छाते,
दल्-दल् हेइ शुइ थिबे पण्का परुआ केते ।
सेन राएत् कटेइ देबु
तोर् बिज्ली सुन्द्री,
थाकि थिबा जह बेल् तक्
लीला खेला करि ।
सूरुज् दिश्ले तर्तरानु उठ्बु रे,
उस्रेबाके अछे आरु
बाकी जेते रास्ता ।
राजि हेइ बन्धुर् कारज् कर्बाके,
केभेहेले केन्सि लोक
नाइँ हुए सुस्ता ॥
*
[42]
घरे रुषि बसिथिबे खँड़िता नायिका,
ताँकर् प्रेमी सेत्किबेले फिरि आसि एका ।
आँखिर् पाएन् पोछि देबे
बुझेइ करि मन,
तुइ सूरुजर् रास्ता जल्दि
छाड़ि देबु घन !
से सकाले फिर्बे सूरुज् पद्मिनीर्,
पद्म-मुहुँन् काकर्-लह
पोछि देबार् लागि ।
छेक्बु नाइँ ताँकर् किरन्-हातके,
नेहेले से त तोर् उप्रे
य़िबे बहुत् रागि ॥
*
[43]
बाटे तुइ देख्बु भाइ ! बहुछे गंभीरा,
अति पर्छल् सेतार् पानि निर्मल् मन् परा ।
सहजे सुन्दर् आए जलधर् !
तोर् उजल् छाइ,
समिय़िबा से निर्मल्
पानि भित्रे जाइ ।
गंभीरार् शफरी-डेगा चाहाँनी,
बड़ा चञ्चल् कइँ फुल
बागिर् धोब् उजल् ।
दम् धरिकरि तुइ निज्के सँभालि,
हेने सेतार् चाहाँनीके
कर्बु नाइँ बिफल् ॥
*
[44]
दोहोलुथिबा बेतशाखा खँड़िथि से नदीर्,
धार्के अलप् छुउँथिबा हाते धर्ला बागिर् ।
से पिन्धिछे नीली रंगर्
पाएन्-धारा-शाढ़ी,
खोला अछे खएँड़्-चुतल्
रस नेबु बाढ़ि ।
लमा हेइ पाएन् पिइ सेठानुँ,
जल्दि टिके जिबार् चेष्टा
कर्बु डेरि हेले ।
रसर् सुआद् चाख्ला लोक किए भैल्,
छाड़ि पार्सि संगिनीके
अँटा मेला थिले ॥
*
[45]
देब्गिरिके य़िबा लागि सेनुँ तुइ मुहेँले,
आस्ते आस्ते शीतल् पबन् बहेबा सेतेबेले ।
तोर् बर्षा धारा पाइ
ताजा थिबा माटि,
तार् बास्ना संगे धरि
य़िबा से त चहटि ।
निजर् नाकर् कणाथि से पबन्के,
शुंघुथिबे सुन्दर् शबद्
करि हातीमाने ।
लाग्सि मिठा सेन जंग्ली डुमेर् फल्,
पाच्बा लागि हेइ पबन्
सेहेज् कर्सि बने ॥
*
[46]
देबगिरिर् बासिन्दा य़े कुमार् पर्भु अछन्,
पुष्प-मेघर् आकार् तुइ कर्बु सेने धारन् ।
सरग्-गंगार् पाएन्-भिजा
फुल् बर्षा करि,
ताँके धीरे गोधेइ देबु
मने शर्धा भरि ।
अमर्-रजा इन्द्रदेबर् सेनाके,
रख्या कर्बा लागि शिब
प्रभु मुर्तुञ्जय ।
अग्नि-मुहेँ अर्पि देले निजर् तेज्,
सूरुज् ठानुँ अधिक्-तेजा
से इ कार्तिकेय ॥
*
[47]
घड़्घड़िके लमेइ करि सेने गुफा भित्रे,
कार्त्तिकेयर् मजूर्के तुइ नचेइ देबु धीरे ।
माहादेबर् मुँड़र् चन्दर्
किरन् बाजि निर्मल्,
से मजूरर् आँखिर् कोना
दिश्सि भारि उजल् ।
माँ भबानी घरे थिले
करि केते जतन्,
काने ताँकर् नीला पदम्
फुल् खोचिथिसन् ।
खस्रि गले पर् मजूर् देहिनुँ,
उजल् रेखा गोल् आकार्
चक्चकिआ सुन्दर् ।
उठेइ ताके काने निजर् लगैसन्,
केते प्रेम् अछे बलि
पुओ कार्त्तिकेयर् ॥
*
[48]
शरजन्मा कुमार् प्रभुर् पूजा सारि देइ,
सेनुँ तुइ चाल्बु आगे रास्ता पार् हेइ ।
सिद्ध-जुगल्-माने बीणा
धरिथिबे हाते,
पाएन् बुन्दार् डरे बाट
छाड़ि देबे तते ।
चर्मण्वती-नदीने तुइ उतर्बु,
रन्तिदेबर् कीर्ति सेटा
कर्बु ताके सत्कार् ।
रजा गोमेध् जज्ञ कर्ले सेथिनुँ,
रुधिर् झरि पुर्थीने त
हेइछे नएद् आकार् ॥
*
[49]
कृष्ण भलिआ कलिआ बरन्
तुइ त बड़ा अएन्,
मुहुँ तल्के कर्बु सेने
पिइबा लागि पाएन् ।
आकाश्चारी- माने देख्बे
आँखि तल् करि उपरुँ,
नदीर् ओसार् धार् हेलेबि
साँकुर् दिश्बा दूरुँ ।
जना पड़्बा पुर्थी-रानीर् गलाथि,
सरु मुक्ता हार बागिर्
लमा धारा नएदर् ।
सेत्किबेले दिश्बु तुइ भाइ रे !
मझिर् मोटा नीलम् पदक्
बागिर् बड़े सुन्दर् ॥
*
[50]
दश्पुरे तुइ खेट्बु य़ाइ पार् हेले से धारा,
सेन सुन्द्री नारीमाने देख्बे तोर् चेहेरा ।
भूर्लताके नचेइ नचेइ
सेमान्कर् आएँक्,
केते भंगी करुथिबा रे
मन् रस्बा छनेक् ।
पता उठ्ले छन्छनिआँ से आँखि,
उपर् भागे कलिआ-धला
तेजे दिश्बा सुन्दर् ।
एने तेने हलुथिले कुन्द फुल्,
सेतार् पछे पछे जेन्ता
धाइँ बुल्सि भमर् ॥
*
[51]
तेन्के छाया रूप धरि ए जलधर् भाइ !
ब्रह्माबरत् जनपदे प्रबेश् कर्बु य़ाइ ।
तार् उतारु कुरुक्षेत्रे पुहुँचि य़िबु आसि,
क्षेतर् से त क्षत्रिलोकर् जुद्ध-सूच्ना देसि ।
सेन अर्जुन् धरि धनु गाण्डिब,
शअ शअ शर् बिन्धिथिले
मुहेँ क्षत्रिमन्कर् ।
दर्लि देइ मुसल् धारा य़ेन्ता कि,
तुइ पदम्- फुल्मान्के
घोटि देसु पर्खर् ॥
*
[52]
मधुर् बास सरस् मद करि केते आराम्,
पिउथिले नंगल्धारी माहापुरु बल्राम् ।
मुहेँ नेबार् बेले ताँकर्
से मदेथि निर्मल्,
रेब्ती देबीर् आँखिर् छबि
दिशुथिला ढल्ढल् ।
बन्धुर् प्रेम् देखि निजे पर्भु बलभदर्,
बिमुख् हेले कर्बा लागि महाभारत् समर् ।
हेइ मद्के तिआग् करि
सेत्किबेले अधीर्,
पिइथिले मधुर् पाएन् सरस्वती नदीर् ।
जानिथा से नदीर् पाबन् पानिके,
सुन्दर् बादल् भाइ ! सेने
कर्बु तुइ सेबन् ।
बाहारे देहे कला बरन् हेले बि,
भित्रे निश्चे शुद्ध हेबु
तोर् निर्मल् मन् ॥
*
[53]
य़िबु सेनुँ भेट्बु गंगा, पाखे अछे कन्खल्,
हिमालयुन् उत्रि करि बहि जाउछे खल्खल् ।
सगर्-रजार् पोओमान्कर्
सरग- निसानी,
गति-मुक्ति- दायिनी से
जन्हु ऋषिर् ननी ।
गौरीदेबीर् मुहुँर् भूरु-भंगीके,
फेणा- हँसि देखेइ निजर्
खिजेइ करि सते ।
धरि पकैला माहादेबर् मुँड़र् बाल्,
चन्दर्के से छुइँ करि
कहँल् लहरि-हाते ॥
*
[54]
लमेइ देबु तुइ आकाशे देहि-पछ्के निजर्,
सरग्-हाती अएराबतर् परा दिश्बु सुन्दर् ।
पैन् पिइबा लागि मुहेँ
कर्बु बँका ठानि,
फटिक् मणि बागि निर्मल्
गंगा नदीर् पानि ।
सेतार् सोरोत् भित्रे छने जेतेबेल्,
मिसिजिबा भाइ रे ! तोर्
छाइ कलिआ बरन् ।
जना पड़्बा जमुना नदी संगे त,
अल्गा ठाने मिशि गंगा
मोहि नउछे मन् ॥
*
[55]
तार् परे तुइ पुहुँचि य़िबु हिमालय गिरि,
बहि जाउछे गंगा नएद् सेठानुँ बाहारि ।
बरफ्-धला पथर् उप्रे
केते दल्दल् हेर्ना,
बसिथिबे, महकुथिबा
कस्तूरी बासना ।
बाटर् थकान् दूर् कर्बु सेलगे,
तुइ उँचा शुर्ङ्गे बसि
गिरि हिमाचलर् ।
माहादेबर् धोब्ला षँड़र् शिंगेथि,
लट्किथिला कादो मुड़ा
बागि दिश्बु सुन्दर् ॥
*
देख्बु छिना केन्सि उँचा उपर् महल् छाते,
दल्-दल् हेइ शुइ थिबे पण्का परुआ केते ।
सेन राएत् कटेइ देबु
तोर् बिज्ली सुन्द्री,
थाकि थिबा जह बेल् तक्
लीला खेला करि ।
सूरुज् दिश्ले तर्तरानु उठ्बु रे,
उस्रेबाके अछे आरु
बाकी जेते रास्ता ।
राजि हेइ बन्धुर् कारज् कर्बाके,
केभेहेले केन्सि लोक
नाइँ हुए सुस्ता ॥
*
[42]
घरे रुषि बसिथिबे खँड़िता नायिका,
ताँकर् प्रेमी सेत्किबेले फिरि आसि एका ।
आँखिर् पाएन् पोछि देबे
बुझेइ करि मन,
तुइ सूरुजर् रास्ता जल्दि
छाड़ि देबु घन !
से सकाले फिर्बे सूरुज् पद्मिनीर्,
पद्म-मुहुँन् काकर्-लह
पोछि देबार् लागि ।
छेक्बु नाइँ ताँकर् किरन्-हातके,
नेहेले से त तोर् उप्रे
य़िबे बहुत् रागि ॥
*
[43]
बाटे तुइ देख्बु भाइ ! बहुछे गंभीरा,
अति पर्छल् सेतार् पानि निर्मल् मन् परा ।
सहजे सुन्दर् आए जलधर् !
तोर् उजल् छाइ,
समिय़िबा से निर्मल्
पानि भित्रे जाइ ।
गंभीरार् शफरी-डेगा चाहाँनी,
बड़ा चञ्चल् कइँ फुल
बागिर् धोब् उजल् ।
दम् धरिकरि तुइ निज्के सँभालि,
हेने सेतार् चाहाँनीके
कर्बु नाइँ बिफल् ॥
*
[44]
दोहोलुथिबा बेतशाखा खँड़िथि से नदीर्,
धार्के अलप् छुउँथिबा हाते धर्ला बागिर् ।
से पिन्धिछे नीली रंगर्
पाएन्-धारा-शाढ़ी,
खोला अछे खएँड़्-चुतल्
रस नेबु बाढ़ि ।
लमा हेइ पाएन् पिइ सेठानुँ,
जल्दि टिके जिबार् चेष्टा
कर्बु डेरि हेले ।
रसर् सुआद् चाख्ला लोक किए भैल्,
छाड़ि पार्सि संगिनीके
अँटा मेला थिले ॥
*
[45]
देब्गिरिके य़िबा लागि सेनुँ तुइ मुहेँले,
आस्ते आस्ते शीतल् पबन् बहेबा सेतेबेले ।
तोर् बर्षा धारा पाइ
ताजा थिबा माटि,
तार् बास्ना संगे धरि
य़िबा से त चहटि ।
निजर् नाकर् कणाथि से पबन्के,
शुंघुथिबे सुन्दर् शबद्
करि हातीमाने ।
लाग्सि मिठा सेन जंग्ली डुमेर् फल्,
पाच्बा लागि हेइ पबन्
सेहेज् कर्सि बने ॥
*
[46]
देबगिरिर् बासिन्दा य़े कुमार् पर्भु अछन्,
पुष्प-मेघर् आकार् तुइ कर्बु सेने धारन् ।
सरग्-गंगार् पाएन्-भिजा
फुल् बर्षा करि,
ताँके धीरे गोधेइ देबु
मने शर्धा भरि ।
अमर्-रजा इन्द्रदेबर् सेनाके,
रख्या कर्बा लागि शिब
प्रभु मुर्तुञ्जय ।
अग्नि-मुहेँ अर्पि देले निजर् तेज्,
सूरुज् ठानुँ अधिक्-तेजा
से इ कार्तिकेय ॥
*
[47]
घड़्घड़िके लमेइ करि सेने गुफा भित्रे,
कार्त्तिकेयर् मजूर्के तुइ नचेइ देबु धीरे ।
माहादेबर् मुँड़र् चन्दर्
किरन् बाजि निर्मल्,
से मजूरर् आँखिर् कोना
दिश्सि भारि उजल् ।
माँ भबानी घरे थिले
करि केते जतन्,
काने ताँकर् नीला पदम्
फुल् खोचिथिसन् ।
खस्रि गले पर् मजूर् देहिनुँ,
उजल् रेखा गोल् आकार्
चक्चकिआ सुन्दर् ।
उठेइ ताके काने निजर् लगैसन्,
केते प्रेम् अछे बलि
पुओ कार्त्तिकेयर् ॥
*
[48]
शरजन्मा कुमार् प्रभुर् पूजा सारि देइ,
सेनुँ तुइ चाल्बु आगे रास्ता पार् हेइ ।
सिद्ध-जुगल्-माने बीणा
धरिथिबे हाते,
पाएन् बुन्दार् डरे बाट
छाड़ि देबे तते ।
चर्मण्वती-नदीने तुइ उतर्बु,
रन्तिदेबर् कीर्ति सेटा
कर्बु ताके सत्कार् ।
रजा गोमेध् जज्ञ कर्ले सेथिनुँ,
रुधिर् झरि पुर्थीने त
हेइछे नएद् आकार् ॥
*
[49]
कृष्ण भलिआ कलिआ बरन्
तुइ त बड़ा अएन्,
मुहुँ तल्के कर्बु सेने
पिइबा लागि पाएन् ।
आकाश्चारी- माने देख्बे
आँखि तल् करि उपरुँ,
नदीर् ओसार् धार् हेलेबि
साँकुर् दिश्बा दूरुँ ।
जना पड़्बा पुर्थी-रानीर् गलाथि,
सरु मुक्ता हार बागिर्
लमा धारा नएदर् ।
सेत्किबेले दिश्बु तुइ भाइ रे !
मझिर् मोटा नीलम् पदक्
बागिर् बड़े सुन्दर् ॥
*
[50]
दश्पुरे तुइ खेट्बु य़ाइ पार् हेले से धारा,
सेन सुन्द्री नारीमाने देख्बे तोर् चेहेरा ।
भूर्लताके नचेइ नचेइ
सेमान्कर् आएँक्,
केते भंगी करुथिबा रे
मन् रस्बा छनेक् ।
पता उठ्ले छन्छनिआँ से आँखि,
उपर् भागे कलिआ-धला
तेजे दिश्बा सुन्दर् ।
एने तेने हलुथिले कुन्द फुल्,
सेतार् पछे पछे जेन्ता
धाइँ बुल्सि भमर् ॥
*
[51]
तेन्के छाया रूप धरि ए जलधर् भाइ !
ब्रह्माबरत् जनपदे प्रबेश् कर्बु य़ाइ ।
तार् उतारु कुरुक्षेत्रे पुहुँचि य़िबु आसि,
क्षेतर् से त क्षत्रिलोकर् जुद्ध-सूच्ना देसि ।
सेन अर्जुन् धरि धनु गाण्डिब,
शअ शअ शर् बिन्धिथिले
मुहेँ क्षत्रिमन्कर् ।
दर्लि देइ मुसल् धारा य़ेन्ता कि,
तुइ पदम्- फुल्मान्के
घोटि देसु पर्खर् ॥
*
[52]
मधुर् बास सरस् मद करि केते आराम्,
पिउथिले नंगल्धारी माहापुरु बल्राम् ।
मुहेँ नेबार् बेले ताँकर्
से मदेथि निर्मल्,
रेब्ती देबीर् आँखिर् छबि
दिशुथिला ढल्ढल् ।
बन्धुर् प्रेम् देखि निजे पर्भु बलभदर्,
बिमुख् हेले कर्बा लागि महाभारत् समर् ।
हेइ मद्के तिआग् करि
सेत्किबेले अधीर्,
पिइथिले मधुर् पाएन् सरस्वती नदीर् ।
जानिथा से नदीर् पाबन् पानिके,
सुन्दर् बादल् भाइ ! सेने
कर्बु तुइ सेबन् ।
बाहारे देहे कला बरन् हेले बि,
भित्रे निश्चे शुद्ध हेबु
तोर् निर्मल् मन् ॥
*
[53]
य़िबु सेनुँ भेट्बु गंगा, पाखे अछे कन्खल्,
हिमालयुन् उत्रि करि बहि जाउछे खल्खल् ।
सगर्-रजार् पोओमान्कर्
सरग- निसानी,
गति-मुक्ति- दायिनी से
जन्हु ऋषिर् ननी ।
गौरीदेबीर् मुहुँर् भूरु-भंगीके,
फेणा- हँसि देखेइ निजर्
खिजेइ करि सते ।
धरि पकैला माहादेबर् मुँड़र् बाल्,
चन्दर्के से छुइँ करि
कहँल् लहरि-हाते ॥
*
[54]
लमेइ देबु तुइ आकाशे देहि-पछ्के निजर्,
सरग्-हाती अएराबतर् परा दिश्बु सुन्दर् ।
पैन् पिइबा लागि मुहेँ
कर्बु बँका ठानि,
फटिक् मणि बागि निर्मल्
गंगा नदीर् पानि ।
सेतार् सोरोत् भित्रे छने जेतेबेल्,
मिसिजिबा भाइ रे ! तोर्
छाइ कलिआ बरन् ।
जना पड़्बा जमुना नदी संगे त,
अल्गा ठाने मिशि गंगा
मोहि नउछे मन् ॥
*
[55]
तार् परे तुइ पुहुँचि य़िबु हिमालय गिरि,
बहि जाउछे गंगा नएद् सेठानुँ बाहारि ।
बरफ्-धला पथर् उप्रे
केते दल्दल् हेर्ना,
बसिथिबे, महकुथिबा
कस्तूरी बासना ।
बाटर् थकान् दूर् कर्बु सेलगे,
तुइ उँचा शुर्ङ्गे बसि
गिरि हिमाचलर् ।
माहादेबर् धोब्ला षँड़र् शिंगेथि,
लट्किथिला कादो मुड़ा
बागि दिश्बु सुन्दर् ॥
*
[56]
धुका आस्ले सरल् गछर्
खान्दि केते लट्कि,
घषि हेइ हेइ जुए बाहार्बा,
अंग्रा य़िबा छिट्कि ।
चमरी-लेञ्जर् पुञ्जा पुञ्जा
बाल् पोड़ेइ जदि,
जुए सेने हिमालय्के पीड़ा देबा लदि ।
खँपेइ देबु उत्पातिआ निआँके,
तुइ सेठाने जोर् ठोकि
मुषल् धारा गहन् ।
दुखीर् पीड़ा दूर् कर्बा लागि त,
सफल् भाबे साहा हेसि
उत्तम् लोकर् धन् ॥
*
[57]
हिमालय्थि निजर् देहे मुड़ामुड़ि लागि,
शरभ् दल् करुथिबे रागे डेगाडेगि ।
तुइ हेलगे सेमन्कर्
बाट् देले बि छाड़ि,
तोर् आड़्के उदुर्माएत्
आएबे य़दि माड़ि ।
मुहाँमुहिँ एक्ला तुइ सेमन्के,
करा-पखान् जबार् दुर्मि
करि देबु छिन्छतर् ।
सेमाने केँ नाइँ हुअन् हीनस्ता,
बेकार् कामे य़ेन्माने
धन्दि हेसन् तर्तर् ॥
*
[58]
गुटे पथ्रे देख्बु सेन तुइ निर्मल्मना,
चन्द्रशेखर् माहापुरुर् थिबा पाद-चिह्ना ।
शुद्ध मने पूजा कर्सन्
सिद्ध मुनि सबे,
तुइ प्रदक्षिन् कर्बु ताके
लहिँ भक्ति भाबे ।
शर्धा रखि केते केते उपासक्,
धोइ देसन् पाप्राशि
करि ताके दर्शन् ।
मरन् परे सेमाने त सबुदिन्,
‘गण’ पद्बी प्रापत् हेइ
सुखे बसा कर्सन् ॥
*
[59]
कणा भित्रे पबन् सम्ले सेनर् बउँश्माने,
मधुर् शबद् केते कर्सन् बने लाग्सि काने ।
छुमे किन्नर्- धांग्रीमाने
संगे मिशि करि,
त्रिपुर्-जय् गीत् गाएसन्
भक्ति भाब् भरि ।
गुफा भित्रे भेदिकरि तोर् घड़्घड़ि,
जदि मुर्दुङ्ग् बागिर् बाएद्
कर्बा बड़ा मधुर् ।
सेत्कि बेले निश्चे तुइ जानिथा,
पूरन् हेबा पूजा-संगीत्
शिब माहापुरुर् ॥
*
[60]
हिमालयर् तरातरा इ पर्कार् सबु,
दर्शनीय जागामन्के पार् हेइ चाल्बु ।
क्रौञ्च-गिरिर् सुड़ंग् पड़्बा
तुइ देख्बु तेने,
हेइ बाटे त मानस् हरद्
जाएसन् हँस् माने ।
काँड़् बिन्धि से पर्बत्के भेद्ले भुर्गुपति,
हेतिर् गुने सुड़ुंग् आए पर्शुरामर् कीर्ति ।
उत्तर् दिगे य़िबु तुइ से बाटे,
अलप् तेर्छा हेइ करि
देहिके लमेइ देबु ।
चापिदेबार् बेले बलि-रजाके,
बामन् माहापुरुर् कलिआ
पाद् बागिर् दिश्बु ॥
*
[61]
उपर्के तुइ गले तेन्के
देख्बु गिरि कएलास्,
कुनुआँ हेबु सेतार् घरे
मने भरि उल्लास् ।
धोब् परबत् चक्चकिआ
ताके भाबि दर्पन्,
सरग् पुरर् सुन्द्रीमाने
चेहेराके देख्सन् ।
बाहाँ-धापे राबण् ताके
हल्हलेइ थिला,
सेथिर् लागि पथर्-सएँन्ध्
हेइछे टिके ढिला ।
आकाश् छुइँ ठिआ हेइछे कएलास्,
कइँ फुल बागिर् धोब् शुरुंग् टेकि करि ।
माहादेबर् बड़् हँसेइ पर्तिदिन्,
ठुल् हेइछे परबतर् रूप् सते धरि ॥
*
[62]
तुइ कलिआ जेन्ता चिकन् रेताहेला कजल्,
कएलासर् तटे य़ाइ पहँचिय़िबु बादल् !
ताजा कटा हेइथिला
हाती-दाँतर् परा,
चक्चकुछे इ पर्बत्
गागर् उजल् गोरा ।
मोर् बिचारे इने शोभा पाएबा,
थिर् आँखिने देख्ला लेखेँ
कएलास गिरि ।
कला रंगर् कप्ड़ा निजर् खन्देथि,
पकेइथिले य़ेन्ति सुन्दर्
पर्भु हलधारी ॥
*
[63]
हात निजर् बढ़ेइ देले
माहादेब भोला,
गौरी-देबी डरि य़िबे
देखि साँपर् बला ।
से हातके छाड़ि देइ पर्बत-दुलाली,
बुल्बे जदि सेन कोमल् पादे चालि चालि ।
पुहुँचि आघे पाहाच्-आकार् हेबु तुइ,
पानि जमाट् बन्धेइ करि
तोर् देहि भित्रे ।
से दाहाँथि पाहाँ रखि गिरिजा,
कएलासर् मणि-तटे
चघिय़िबे धीरे ॥
*
[64]
तोर् देहिथि हातर् बला-
सूच्का-टिपि कोच्कि,
पाएन् झरैबे सेन देब्ता-
धांग्रीमाने सउकि ।
तके जन्तर्-धारा भबन् बनेइ करि सबे,
सुन्द्रीमाने कएलासे केते मजा कर्बे ।
खेल्बा लागि चुल्चुलिएन् हेमाने,
खरा बेले तके पाइ
नाइँ छाड़्बे जदि ।
डरेइ देबु चम्केइ करि घड़्घड़ि,
कड़ा शबद् कँपेइ देबा
ताँकर् काने भेदि ॥
*
[65]
मानस् हर्दे पूरिथिबा सुना कमल् फुटि,
सेथिर् पाएन् धरि तुइ मधुर् बास लुटि ।
अएराबतर् मुहेँ पातल्
कप्ड़ा ढाँकि छने,
निश्चे तुइ बड़ा खुसि
देबु सेतार् मने ।
कलप् तरुर् कअँलिआ पतर्के,
हलेइदेबु पबन् चलेइ
सरु लुगा बागि ।
मन् उलासे कएलास पर्बते,
बुल्बु तुइ बादल् भाइ !
मजा कर्बा लागि ॥
*
[66]
अल्कापुरीर् उज्ला मुहुँ
सात् मझ्ला महल्,
बर्षा काले मुँड़े बहेसि
गहन् कला बादल् ।
बुन्दा बुन्दा पाएन् सुन्दर्
ढल्ढल्सि बाद्ले,
खोच्ला मोति- पुञ्जा जेन्ति
झुल्सि कला बाले ।
कएलासर् कोले शोभा से अलका पुरी,
प्रियर् कोले जेन्ति प्रिया रसबती गुरी ।
बेढ़ि करि लमा शाढ़ी गंगा-धार्,
केड़े रंगे खस्रि जाइछे
से अलकार् देहे ।
मन् इच्छा तुइ बुलि पार्सु भाइ रे !
देख्ले ताके नाइँ चिन्बु,
हेन्ति कथा नुहे ॥
धुका आस्ले सरल् गछर्
खान्दि केते लट्कि,
घषि हेइ हेइ जुए बाहार्बा,
अंग्रा य़िबा छिट्कि ।
चमरी-लेञ्जर् पुञ्जा पुञ्जा
बाल् पोड़ेइ जदि,
जुए सेने हिमालय्के पीड़ा देबा लदि ।
खँपेइ देबु उत्पातिआ निआँके,
तुइ सेठाने जोर् ठोकि
मुषल् धारा गहन् ।
दुखीर् पीड़ा दूर् कर्बा लागि त,
सफल् भाबे साहा हेसि
उत्तम् लोकर् धन् ॥
*
[57]
हिमालय्थि निजर् देहे मुड़ामुड़ि लागि,
शरभ् दल् करुथिबे रागे डेगाडेगि ।
तुइ हेलगे सेमन्कर्
बाट् देले बि छाड़ि,
तोर् आड़्के उदुर्माएत्
आएबे य़दि माड़ि ।
मुहाँमुहिँ एक्ला तुइ सेमन्के,
करा-पखान् जबार् दुर्मि
करि देबु छिन्छतर् ।
सेमाने केँ नाइँ हुअन् हीनस्ता,
बेकार् कामे य़ेन्माने
धन्दि हेसन् तर्तर् ॥
*
[58]
गुटे पथ्रे देख्बु सेन तुइ निर्मल्मना,
चन्द्रशेखर् माहापुरुर् थिबा पाद-चिह्ना ।
शुद्ध मने पूजा कर्सन्
सिद्ध मुनि सबे,
तुइ प्रदक्षिन् कर्बु ताके
लहिँ भक्ति भाबे ।
शर्धा रखि केते केते उपासक्,
धोइ देसन् पाप्राशि
करि ताके दर्शन् ।
मरन् परे सेमाने त सबुदिन्,
‘गण’ पद्बी प्रापत् हेइ
सुखे बसा कर्सन् ॥
*
[59]
कणा भित्रे पबन् सम्ले सेनर् बउँश्माने,
मधुर् शबद् केते कर्सन् बने लाग्सि काने ।
छुमे किन्नर्- धांग्रीमाने
संगे मिशि करि,
त्रिपुर्-जय् गीत् गाएसन्
भक्ति भाब् भरि ।
गुफा भित्रे भेदिकरि तोर् घड़्घड़ि,
जदि मुर्दुङ्ग् बागिर् बाएद्
कर्बा बड़ा मधुर् ।
सेत्कि बेले निश्चे तुइ जानिथा,
पूरन् हेबा पूजा-संगीत्
शिब माहापुरुर् ॥
*
[60]
हिमालयर् तरातरा इ पर्कार् सबु,
दर्शनीय जागामन्के पार् हेइ चाल्बु ।
क्रौञ्च-गिरिर् सुड़ंग् पड़्बा
तुइ देख्बु तेने,
हेइ बाटे त मानस् हरद्
जाएसन् हँस् माने ।
काँड़् बिन्धि से पर्बत्के भेद्ले भुर्गुपति,
हेतिर् गुने सुड़ुंग् आए पर्शुरामर् कीर्ति ।
उत्तर् दिगे य़िबु तुइ से बाटे,
अलप् तेर्छा हेइ करि
देहिके लमेइ देबु ।
चापिदेबार् बेले बलि-रजाके,
बामन् माहापुरुर् कलिआ
पाद् बागिर् दिश्बु ॥
*
[61]
उपर्के तुइ गले तेन्के
देख्बु गिरि कएलास्,
कुनुआँ हेबु सेतार् घरे
मने भरि उल्लास् ।
धोब् परबत् चक्चकिआ
ताके भाबि दर्पन्,
सरग् पुरर् सुन्द्रीमाने
चेहेराके देख्सन् ।
बाहाँ-धापे राबण् ताके
हल्हलेइ थिला,
सेथिर् लागि पथर्-सएँन्ध्
हेइछे टिके ढिला ।
आकाश् छुइँ ठिआ हेइछे कएलास्,
कइँ फुल बागिर् धोब् शुरुंग् टेकि करि ।
माहादेबर् बड़् हँसेइ पर्तिदिन्,
ठुल् हेइछे परबतर् रूप् सते धरि ॥
*
[62]
तुइ कलिआ जेन्ता चिकन् रेताहेला कजल्,
कएलासर् तटे य़ाइ पहँचिय़िबु बादल् !
ताजा कटा हेइथिला
हाती-दाँतर् परा,
चक्चकुछे इ पर्बत्
गागर् उजल् गोरा ।
मोर् बिचारे इने शोभा पाएबा,
थिर् आँखिने देख्ला लेखेँ
कएलास गिरि ।
कला रंगर् कप्ड़ा निजर् खन्देथि,
पकेइथिले य़ेन्ति सुन्दर्
पर्भु हलधारी ॥
*
[63]
हात निजर् बढ़ेइ देले
माहादेब भोला,
गौरी-देबी डरि य़िबे
देखि साँपर् बला ।
से हातके छाड़ि देइ पर्बत-दुलाली,
बुल्बे जदि सेन कोमल् पादे चालि चालि ।
पुहुँचि आघे पाहाच्-आकार् हेबु तुइ,
पानि जमाट् बन्धेइ करि
तोर् देहि भित्रे ।
से दाहाँथि पाहाँ रखि गिरिजा,
कएलासर् मणि-तटे
चघिय़िबे धीरे ॥
*
[64]
तोर् देहिथि हातर् बला-
सूच्का-टिपि कोच्कि,
पाएन् झरैबे सेन देब्ता-
धांग्रीमाने सउकि ।
तके जन्तर्-धारा भबन् बनेइ करि सबे,
सुन्द्रीमाने कएलासे केते मजा कर्बे ।
खेल्बा लागि चुल्चुलिएन् हेमाने,
खरा बेले तके पाइ
नाइँ छाड़्बे जदि ।
डरेइ देबु चम्केइ करि घड़्घड़ि,
कड़ा शबद् कँपेइ देबा
ताँकर् काने भेदि ॥
*
[65]
मानस् हर्दे पूरिथिबा सुना कमल् फुटि,
सेथिर् पाएन् धरि तुइ मधुर् बास लुटि ।
अएराबतर् मुहेँ पातल्
कप्ड़ा ढाँकि छने,
निश्चे तुइ बड़ा खुसि
देबु सेतार् मने ।
कलप् तरुर् कअँलिआ पतर्के,
हलेइदेबु पबन् चलेइ
सरु लुगा बागि ।
मन् उलासे कएलास पर्बते,
बुल्बु तुइ बादल् भाइ !
मजा कर्बा लागि ॥
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[66]
अल्कापुरीर् उज्ला मुहुँ
सात् मझ्ला महल्,
बर्षा काले मुँड़े बहेसि
गहन् कला बादल् ।
बुन्दा बुन्दा पाएन् सुन्दर्
ढल्ढल्सि बाद्ले,
खोच्ला मोति- पुञ्जा जेन्ति
झुल्सि कला बाले ।
कएलासर् कोले शोभा से अलका पुरी,
प्रियर् कोले जेन्ति प्रिया रसबती गुरी ।
बेढ़ि करि लमा शाढ़ी गंगा-धार्,
केड़े रंगे खस्रि जाइछे
से अलकार् देहे ।
मन् इच्छा तुइ बुलि पार्सु भाइ रे !
देख्ले ताके नाइँ चिन्बु,
हेन्ति कथा नुहे ॥
= = = = = = =
[ Here ends ‘Purba Megha’ of KOSHALI MEGHADUTA
Authored by Dr. Harekrishna Meher ]
*
For 'Uttara Megha' please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-2-uttara-megha.html
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[ Here ends ‘Purba Megha’ of KOSHALI MEGHADUTA
Authored by Dr. Harekrishna Meher ]
*
For 'Uttara Megha' please see :
http://hkmeher.blogspot.com/2008/02/kosali-meghaduta-part-2-uttara-megha.html
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